महिलाएं नहीं देखती भस्मी चढऩे का दृश्य
प्रतिदिन होने वाली इस महाआरती में शामिल होने वाली महिलाओं के लिए नियम है कि उन्हें साड़ी पहनना जरूरी है। जब भगवान को भस्म चढ़ती है, तो उस समय महिलाओं को घूंघट करने को कहा जाता है, क्योंकि सृष्टि के अधिपति शिव उस वक्त निराकार स्वरूप में होते हैं। भस्म आरती में पुरुष सिर्फ धोती पहनते हैं। यहां एक भस्म कुंड भी है, जहां निरंतर जलती अग्नि से ही भस्म तैयार की जाती है। उल्लेख मिलता है कि प्राचीन समय में जलती चिता की राख भी यहां लाई जाती थी। भस्मी चढ़ाने का कार्य सिर्फ महानिर्वाणी अखाड़े के महंत या उनके प्रतिनिधि द्वारा ही किया जाता है। इन्हीं के द्वारा भस्मी तैयार की जाती है। पंडे-पुजारियों द्वारा पूजन-अभिषेक व शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ किया जाता है।
गोधूलि बेला बाद नहीं चढ़ाते जल
सायंकालीन शृंगार व आरती होने के बाद ज्योतिर्लिंग महाकाल पर जल नहीं चढ़ाया जाता है। उत्तर भारत तथा महाराष्ट्र दोनों पद्धति के श्रावण मास से महाकाल की सवारी प्रति सोमवार को निकाली जाती है। पालकी में रजत प्रतिमा रखकर बैंड, अश्वारोही दल, भजन मंडलियां और लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ के बीच भगवान महाकाल नगर भ्रमण करते हैं और भक्तों का हाल जानते हैं। शिप्रा तट रामघाट पर जलाभिषेक के बाद आरती की जाती है और बाद में सवारी आगे के लिए चल देती है।
प्रतिदिन चढ़ती है 5 किलो भांग
विजिया (भांग) के दीवाने भगवान महाकाल को प्रतिदिन करीब 5 किलो भांग चढ़ाई जाती है। यहां के पुजारी संध्या आरती के पहले भोले का भांग शृंगार करते हैं। यह शृंगार अपने आपमें ही अनूठा होता है। इसमें ड्रायफ्रूट्स का भी उपयोग किया जाता है।