उज्जैन

यहां युद्ध करते बाली-सुग्रीव के पीछे बाण लिए खड़े हैं श्रीराम, 1000 साल पुरानी दुर्लभ प्रतिमा

राजवास हो या वनवास, मिलाप हो या विरह, उल्लास हो या शोक… परिस्थिति अनुरूप आदर्श चरित्र कैसा होना चाहिए, यह भगवान श्री राम का जीवन सिखाता है। मित्र धर्म का पालन सिखाती श्रीराम की ऐसी ही एक दुर्लभ प्रतिमा उज्जैन विक्रम विश्वविद्यालय के पुरातत्व संग्रहालय में है, जानें इस दुर्लभ प्रतिमा के बारे में ये इंट्रेस्टिंग फैक्ट्स…

उज्जैनJan 22, 2024 / 01:08 pm

Sanjana Kumar

राजवास हो या वनवास, मिलाप हो या विरह, उल्लास हो या शोक… परिस्थिति अनुरूप आदर्श चरित्र कैसा होना चाहिए, यह भगवान श्री राम का जीवन सिखाता है। मित्र धर्म का पालन सिखाती श्रीराम की ऐसी ही एक दुर्लभ प्रतिमा उज्जैन विक्रम विश्वविद्यालय के पुरातत्व संग्रहालय में है। यहां बाली वध का चित्रण करता अद्भुत पाषाण फलक है, जो करीब एक हजार वर्ष पुराना है। कीर्तिमंदिर परिसर स्थित पुरातत्व संग्रहालय में भगवान श्रीराम के जीवनकाल के एक प्रसंग को दर्शाती पाषाण प्रतिमा उपलब्ध है।

पुरातत्वविद् डॉ. रमण सोलंकी बताते हैं कि यह श्रीराम जी का एक हजार साल पुराना महत्वपूर्ण परमार कालीन फलक है। इस फलक में प्रदर्शित दृश्य बाली-सुग्रीव युद्ध का है। फलक के अग्र भाग पर बाली और सुग्रीव के बीच चल रहे युद्ध और पीछे धनुष बाण लिए खड़े राम दिखाई देते हैं। फिलहाल पुरातत्व संग्रहालय का जीर्णोद्धार कार्य किया जा रहा है। इसलिए इस दुर्लभ फलक की सुरक्षा के लिए इसे पैक कर दिया गया है। इसलिए इसका चित्र फिलहाल उपलब्ध नहीं हो सका है।

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ढाई फीट ऊंचा है फलक

यह दुर्लभ फलक महाकाल परिक्षेत्र से मिला था। पद्मश्री डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर वर्ष 1975 के दौरान इसे संग्रहालय लाए थे। तब से यह प्रतिमा यहां सुरक्षित है। इसकी लंबाई और चौड़ाई 75-75 सेंटीमीटर (लगभग 2.5-2.5 फीट) और मोटाई 60 सेंटीमीटर है।

वरदान की रक्षा करने परिदृश्य में नहीं आए श्री राम

वनवास के दौरान भगवान श्रीराम वानरराज सुग्रीव की मित्रता हुई थी। सुग्रीव ने उन्हें भाई बाली द्वारा राजपाट से बेेदखल करे की पीड़ा बताते हुए मित्रवत सहयोग मांगा था। श्रीराम ने उन्हें बाली से युद्ध में सहयोग का वचन दिया था। चूंकि बाली को वरदान था कि जो उनके सामने आएगा, उसका आधा बल बाली को मिल जाएगा। डॉ. सोलंकी बताते हैं कि इस वरदान की रक्षा करने श्रीराम युद्ध के परिदृश्य में आए बिना अन्य स्थान से बाली को बाण मारकर उसका वध करते हैं। यह घटना संकट में मित्र का सहयोग करने धर्म के पालन को दर्शाती है।

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