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मुंशी प्रेमचंद जयंती : उनके साहित्य के सभी पात्र आज भी जीवंत, वे युग प्रवर्तक कथाकार थे

अपने अभावों और संघर्षों से भरे जीवन की कठिनाइयों के चलते उन्होंने जनजीवन से एकात्म बना कर साहित्य की पूंजी कमाई। यह उनकी निष्ठा, प्रतिबद्धता और साधना की मिसाल है।

उज्जैनJul 31, 2019 / 12:33 am

Lalit Saxena

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उज्जैन. मुंशी प्रेमचंद….एक एेसा नाम, जिसे हर किसी ने सुना व पढ़ा है। लेखन के विविध विधाओं के बीच वे मूलत: युग प्रवर्तक कथाकार थे। अपने अभावों और संघर्षों से भरे जीवन की कठिनाइयों के चलते उन्होंने जनजीवन से एकात्म बना कर साहित्य की पूंजी कमाई। यह उनकी निष्ठा, प्रतिबद्धता और साधना की मिसाल है। देश के लिए उनके देखे सपने की आकांक्षा अभी खत्म नहीं हुई है। इसलिए प्रेमचंद का प्रासंगिक होना स्वाभाविक है। वे अपनी सर्जना और विचारों के साथ आज के संघर्षों और चुनौतियों के मार्गदर्शक हैं। उनकी जयंती पर पत्रिका ने शहर के साहित्यकारों के जरिए उनके विराट जीवन व्यक्तित्व पर प्रकाश डालने की कोशिश की।

ठोस भारतीय जमीन पर खड़े कथाकार हैं प्रेमचंद

प्रेमचंद के बिना भारतीय भाषाओं के कथा-साहित्य की वह छलांग संभव नहीं थी, जिस पर हम आज अभिमान करते हैं। वे सही अर्थों में ठोस भारतीय जमीन पर खड़े कथाकार हैं। उन्हें आयातित विचारों के पूर्वाग्रही सांचे में जकड़ा नहीं जा सका। वे सहज भारतीय मनुष्य के साथ गतिशील रचनाकार रहे हैं। मानवीय चिंताओं को लेकर वे आजीवन क्रियाशील बने रहे। प्रेमचंद की सबसे बड़ी सार्थकता है। उनकी दृष्टि मानवता पर टिकी है।

भारतीय परिवेश में वंचित, शोषित वर्ग, किसान और स्त्री जीवन से जुड़ी विसंगतियों को लेकर उन्होंने निरन्तर लिखा। ऐसे विषयों पर गहरी समझ को देखते हुए उनकी प्रासंगिकता और अधिक बढ़ जाती है। किसान जीवन की दृष्टि से अगर प्रेमचन्द के कथा साहित्य को पुन: देखा जाए तो कई अर्थों में प्रेमचन्द अपने समय से आगे दिखाई देते हैं। किसान और शोषित वर्ग के जीवन के यथार्थ चित्रण में वे हिन्दी साहित्य में अद्वितीय दिखाई देते हैं। हाल के दशकों में उभरे कई विमर्शों के मूल सूत्र प्रेमचंद के यहां मौजूद हैं। उन्हें पूर्वनिर्धारित वाद या विचारधारा के दायरे में बांधा नहीं जा सकता है। उनकी अधिकांश कहानियों और उपन्यासों में इन विसंगतियों का तीखा प्रतिकार दिखाई देता है।
प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा, कुलानुशासक, विक्रम विवि

प्रेमचंद की रचनाओं का विदेशों में भी है बोलबाला

प्रेमचंद आधुनिक हिंदी साहित्य की चेतना रूपांतरण के बड़े लेखक हैं। उन्होंने अपने परवर्ती लेखकों का मानस विस्तार कर सर्वाधिक प्रभावित किया। अकारण नहीं कि कथा साहित्य में उनके नाम की परंपरा कायम हुई। क्यों साहित्य की इतनी विविधता और विस्तार के बावजूद प्रेमचंद ही बार-बार याद आते हैं। यह सवाल अक्सर किया जाता है। उनकी राष्ट्रीयता और पराधीन देश की मुक्ति के आशय अपने समकालीनों से सर्वथा भिन्न हैं। उसमें जाति, धर्म, संप्रदाय या किसी भेदभाव के बिना भारतीय समाज की बहुलता के मद्देनजर सभी वर्गों की सहभागिता निहित है।

प्रेमचंदजी की रचनाओं में तत्कालीन इतिहास बोलता है। वे सर्वप्रथम उपन्यासकार थे जिन्होंने उपन्यास साहित्य को तिलस्मी से बाहर निकाल कर उसे वास्तविक भूमि पर ला खड़ा किया। उन्होंने अपनी रचनाओं में जन साधारण की भावनाओं, परिस्थितियों और उनकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण किया। उनकी कृतियां भारत के सर्वाधिक विशाल और विस्तृत वर्ग की कृतियां हैं। प्रेमचंद की रचनाओं को देश में ही नहीं विदेशों में भी आदर प्राप्त है। प्रेमचंद और उनकी साहित्य का अंतरराष्ट्रीय महत्व है। आज उन पर और उनके साहित्य पर विश्व के उस विशाल जन समूह को गर्व है। जो साम्राज्यवाद, पूंजीवाद और सामंतवाद के साथ संघर्ष में जुटा हुआ है।
वर्षा जोशी, शिक्षिका हिंदी साहित्य

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