ऐसे बीता 58 वर्ष का सफर
पढ़ने में माहिर थे, शिक्षकों के थे फेवरेट
मोहन यादव की स्कूली शिक्षा सरकारी स्कूल में हुई। शासकीय स्कूल बुधवारिया तक 5वीं और इसके बाद जीवाजीगंज स्कूल से 12वीं की। यादव के पिता पूनमचंद यादव का कहना है कि पढ़ाई में बेहतर होने से मोहन को शिक्षक शालिगराम ने अपने पास रखा और पढ़ाई का खर्चा उठाया। साइंस कॉलेज में भूविज्ञान अध्यनशाला के डॉ. आरएम तिवारी ने बताया मोहन छात्र राजनीति के साथ पढ़ाई के प्रति गंभीर थे। उन्हें जो भी असाइमेंट देते थे, समय पर पूरा करते थे। मेरे ही नहीं अन्य शिक्षकों का भी उनसे लगाव था। आज भी यादव रोजाना एक घंटा पढ़ते हैं। लगातार पढ़ने की आदत से हर क्षेत्र में उनका दखल है।
17 साल की उम्र में बने कॉलेज में सह सचिव
मोहन यादव ने अपना पहला चुनाव 1982 में माधव साइंस कॉलेज में एबीवीपी से सहसचिव के रूप में लड़ा था। उनके साथ ओम जैन बताते हैं कि उस समय अध्यक्ष लोकेश शर्मा का फार्म निरस्त हो गया था। मोहन और साथियों ने मिलकर एक बड़ा आंदोलन खड़ा किया था, उज्जैन तक बंद करवा दिया था। यहीं से मोहन के जुझारूपन और राजनीति में उनकी ताकत पता चल गई थी। दो वर्ष बाद ही 1984 में अध्यक्ष का चुनाव लड़े ओर जीते। उनके चुनाव लडऩे और जीतने में एक ही बात थी सब को साथ में लेना और विश्वास करना। इसी के बाद से वह कभी चुनाव नहीं हारे। यहीं उनका संघर्ष और मिलनसारिता को दिखाता है।
स्वयंसेवक से प्रदेश में संवारा पर्यटन
मोहन यादव का राजनीतिक सफर 1993 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से शुरू हुआ। संघ के दायित्व निभाने के बाद भारतीय युवा मोर्चा के विभिन्न पदों पर जिम्मेदारी संभाली। राजनीतिक साथी व विधायक अनिल जैन कालूहेड़ा बताते हैं कि राजनीति में पारदर्शिता यादव से सीखना चाहिए। जिस चीज को ठान लेते हैं, उसे पूरा करके दम लेते हैं। जिन पदों पर रहे, उससे जुड़े लोग आज भी संपर्क में हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, भूपेंद्र यादव, धर्मेंद्र प्रधान उनके साथ के एबीवीपी में थे। २००४ में बतौर यूडीए अध्यक्ष शहर विकास की नई इबारत लिखी तो पर्यटन निगम के अध्यक्ष बन प्रदेश में पर्यटन को नया रूप दिया।
ठुकरा दी टिकट, विपरित परिस्थिति में बने विधायक
मोहन यादव का जनप्रतिनिधि के रूप में विधायक बनने का रास्ता 2008 में ही प्रशस्त हो गया। कार्यकर्ताओं के मना करने पर बडऩगर से विधानसभा का टिकट लौटा दिया। इसके बाद 5 साल तक इंतजार किया और 2013 में जब दक्षिण से टिकट मिला तो कार्यकर्ताओं की जमावट उनके पक्ष में नहीं थे। जीवित संपर्क अपनत्व की भावना और सब को साथ लेकर चलने के कारण चुनाव जीते। वर्ष 2013 में जो लोग यादव के साथ जुड़े थे आज भी उनके साथ है। आनंदसिंह खिंची बताते हैं कि कार्यकर्ताओं के सुख-दुख में हमेशा खड़े रहते हैं। मिलनसारिता ऐसी है कि एक बार मिल ले तो दोबारा भूलते नहीं है।
परिवार संस्कारित तो धर्म में अटूट आस्था
मोहन यादव राजनीति ही नहीं परिवार व धर्म के मामले में भी हटकर हैं। 10 साल से विधायक व मंत्री है लेकिन उनके परिवार को कोई सदस्य कभी भोपाल बंगले पर नहीं रुका। दो बच्चे डॉक्टर बने तो एक एलएलएम कर रहा है। बहन कलावती यादव का कहना है संयुक्त परिवार के कारण संस्कार कूट-कूट कर भरे है। बच्चों को पढ़ाई के संस्कार दिए गए। यादव किसी प्रकार व्यसन नहीं करते हैं। राजेश सिंह कुशवाह बताते हैं कि धार्मिक आस्था ऐसी है कि दोनों नवरात्र, चातुर्मास के साथ एकादशी व प्रदोष का व्रत रखते हैं। भगवान अंगारेश्वर में अगाध आस्था है। भगवान श्रीकृष्ण और उनसे जुड़े साहित्य का पूरा ज्ञान है।
ऐसा रहा राजनीतिक सफर
कॉलेज- 1982 से 1992 तक 12 वर्ष
संगठन- 1993 से 2004 तक 14 वर्ष
यूडीए-पर्यटन- 2004 से 2012 तक 12 वर्ष
विधायक-मंत्री- 2013 से निरंतर
मुख्यमंत्री – 2023