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दो महीने में दवा तैयार करने के मिले निर्देश
फिलहाल, इस दवा पर काम शुरु कर दिया गया है। इस खास दवा को कैप्सूल या सायरप के रूप में बाजार में उतारा जाएगा। जिसका पेटेंट महाविद्यालय खुद करेगा। दवा बनाने के लिए शासन की ओर से महाविद्यालय को दो महीने का समय दिया गया है। अब तक की तैयारी के तौर पर ये उम्मीद जताई जा रही है कि, दवा आगामी दो महीनों से पहले ही या यूं कहें कि, तय समय में ही तैयार हो जाएगी। प्राचार्य डॉ. जेपी चौरसिया की निगरानी में इस खास दवा पर शोध करने के लिए विशेषज्ञों की एक टीम बनाई है।
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बेहतर कार्य के आधार पर धन्वंतरि को मिली जिम्मेदारी
शोधकर्ता टीम में महाविद्यालय के विशेषज्ञ डॉ. सिद्धेश्वर सतुवा, डॉ. नृपेंद्र मिश्र, डॉ. वेदप्रकाश व्यास, डॉ. ओपी व्यास, डॉ. दिवाकर पटेल, डॉ. मुकेश गुप्ता, डॉ. अजयकीर्ति जैन, डॉ. हेमंत मालवीय, डॉ. निर्मला कुशवाह और डॉ. कमलेश धनोतिया को शामिल किया गया है। प्राचार्य डॉ. चौरसिया ने बताया कि, इस खास दवा को बनाने से पहले शासन द्वारा प्रदेश के सभी आयुर्वेदिक संस्थानों के कार्यों पर रिसर्च की थी। इसके बाद शासन ने धन्वंतरि कॉलेज का चयन किया है। धन्वंतरि को ये जिम्मेदारी सौंपने का कारण यहां के बेहतर कार्य हैं। शासन ने कॉलेज को नि:संतानता चिकित्सा का प्रमुख केंद्र बनाने के निर्देश दिये हैं।
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दवा का कोई साइड इफेक्ट नहीं
प्राचार्य ने दावा करते हुए कहा कि, यहां नि:संतान दंपत्तियों का बेहतर इलाज दिया जाएगा। महाविद्यालय द्वारा बनाई जाने वाली दवा प्रदेश के सभी बाजारों में आसानी से उपलब्ध हो सकेगी। दवा आयुर्वेदिक होने के कारण इसके कोई साइडइफैक्ट भी नहीं होंगे। हालांकि, इसकी कीमत क्या होगी ये दवा तैयार किये जाने के बाद तय किया जाएगा।
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हाई एक्सिलेंस सेंटर के रूप में अपग्रेड होगा कॉलेज
महाविद्यालय को 10 करोड़ रुपए की लागत से हाई एक्सिलेंस सेंटर के रूप में अपग्रेड किया जाएगा। ये राशि अनुदान के रूप में प्राप्त होगी। इसका इस्तेमाल इन्फ्रास्ट्रक्चर मजबूत करने पर किया जाएगा। पंचकर्म और क्षरसूत्र यानी पाइल्स, फिश्चुला, फिशर इलाज की विशेषज्ञता बढ़ेगी। तैयारियां पूर्ण होने के बाद आयुर्वेद अस्पताल 100 बेड के बजाए 150 बेड का हो जाएगा।