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करवाई मोक्षप्राप्ति पूजा
परंपरा अनुसार यहां सुबह पूजन कराने वाले व्यक्ति को पंडित पितरों के मोक्ष का संकल्प दिलाते हैं। विकास ने भी यही संकल्प लिया। इसके बाद वो महाकाल मंदिर गया और अगले 24 घंटे में अंजाम तक पहुंच गया। मनोविज्ञानिक आधार पर विकास पहले से ही मौत के खौफ से जूझ रहा था। उसे पहले ही अपने अंजाम मालूम था। इस मनोदशा में कुछ अपराधी देवस्थान अथवा तीर्थस्थलों पर पहुंच जाते हैं। विकास ने भी यही किया।
इसलिए नहीं हुआ किसी को उसपर शक
पांच राज्यों की पुलिस समेद देश की खूफिया एजेंसियों से छुपता-छुपता गैंगस्टर विकास दुबे आखिरकार किसी सामान्य श्रद्घालु की तरह धर्मनगरी पहुंच गया। उसके हावभाव देख शिप्रा तट पर पूजन कराने वाले पंडितों को जरा भी अहसास नहीं हुआ कि, वे दुर्दांत अपराधी के लिए पूजा कर रहे हैं। पुजारियों को इस बात की भनक तक नहीं थी कि, वो जिससे पूजा करवा रहे हैं, उसका अगले 24 घंटे में एनकाउंटर हो जाएगा। शिप्रा पर पूजन करने के बाद विकास सीधा महाकालेश्वर मंदिर पहुंचा। यहां भी उसके चेहरे पर भाव शून्य थे। वो सामान्य दर्शनार्थी की तरह व्यवहार करते हुए जूता स्टैंड पर चप्पल उतारकर अपना बैग स्टोर में रखते हुए दर्शन के लिए निकल पड़ा, यहां उसकी सभी गतिविधियां सामान्य ही थीं, जिसके चलते उसपर शक कर पाना किसी के लिए भी संभव नहीं था।
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ये दो बातें भी करती हैं पुष्टि
महाकाल दर्शन कर लौट रहा गैंगस्टर मंदिर के निर्गम द्वार पर पकड़ा गया। पुलिस के सख्त रवैय्ये के चलते उसने झुंजलाते हुए कुछ ही देर अपनी पहचान बता दी। वो चिल्ला-चिल्लाकर बोलने लगा- ‘मैं विकास दुबे हूं…कानपुर वाला।’ इसके बाद हुई पूछताछ में शामिल एक अधिकारी के मुताबिक, विकास पूरी तरह टूट चुका था। वो पहले से ही एनकाउंटर के खौफ में था। इस बात की पुष्टि विकास की एक और बात से होती है। दरअसल, गैंगस्टर को उत्तर प्रदेश ले जाते वक्त पुलिस टीम उसे लेकर कायथा थाने पर भी रुकी थी। यहां कुछ कागजी कार्रवाई की गई। विकास ने कुछ खाने को मांगा तो उसे नाश्ता भी करवाया गया। यहां से निकलते वक्त दुबे ने कहा था कि अगर जिंदा रहा तो फिर महाकाल दर्शन करने और इस थाने पर जरूर आऊंगा।
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“अपनों” के खत्म होने से था परेशान!
विकास के पास से कोई मोबाइल नहीं मिला। उसके बैग से कपड़े, सैनिटाइजर की बोतल और एक अखबार मिला था। उसे पता था कि एक-एक कर उसके साथी मारे जा रहे हैं। उज्जैन के शासकीय कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग की सहायक प्राध्यापक डॉ. निखित परवीन अहमद का कहना है कि संभव है कि दुबे अपने लोगों के मारे जाने से व्यथित हो गया हो। ऐसा अपराधियों के साथ होता है। उसे अपने मारे जाने का भी डर था। बकौल डॉ. निखित-यह भी हो सकता है कि उसे किसी ने सलाह दी हो कि दर्शन करने के बाद सरेंडर कर देना।
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सिर्फ एक गलती और पूरी प्लानिंग हो गई चौपट
मनोविज्ञानी और प्राध्यापक डॉ. प्रतिभा श्रीवास्तव का कहना है कि दुबे को एनकाउंटर की आशंका थी। वह मौत के भय से जूझ रहा होगा, इसलिए महाकाल मंदिर आ गया। उसे यह भी लगा होगा कि मंदिर में पकड़े जाने पर उसका एनकाउंटर होना संभव नहीं है। यहां से गिरफ्तार होकर मीडिया कैमरों में आने के कारण कम से कम उसकी जान तो बचा जाएगी, फिर भले ही आगे जो कानूनी व्यवस्था होगी उसका सोचेगा। यहां तक उसका प्लान उसकी सोच के मुताबिक काम कर रहा था। लेकिन, उसकी एक जरा सी भाग निकलने की चूक ने उसके एनकाउंटर के संदेह को यकीन में बदल दिया।