उज्जैन जिले के अंतर्गत आने वाले भिड़ावद, लोहारिया में लोग गांव की मुख्य मार्ग पर लेट जाते हैं, जिसके बाद उनके ऊपर से सैकड़ों गायों को गुजारा जाता है। गोवर्धन पूजा के नाम पर इन परंपरा को यहां बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। स्थानीय लोगों का मानना है कि अगर वो लोग इस परंपरा का निर्वहन करते हैं तो गांव पर कोई आपदा नहीं आती। इसके अलावा वो लोग भी इस परंपरा का पालन करते हैं, जिनकी मन्नत पूरी हो जाती है।
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पांच दिन पहले से शुरू हो जाती है विशेष पूजा
स्थानीय लोगों का कहना है कि, इस परंपरा का निर्वहन करने के लिए दिवाली से पांच दिन पहले ही पशुओं की पूजा शुरू कर दी जाती है और दिवाली के अगले दिन सुबह लोग ढोल धमाके के साथ गांव के मुख्य मार्ग पर लोग इकट्ठे होकर खड़े हो जाते हैं। इसके बाद गांवों की खुशहाली के लिए कुछ लोग और कुछ वो लोग जिनकी कोई मन्नत पूरी होती है, सड़क के बीचों बीच लेट जाते हैं। इसके बाद उनके ऊपर मवेशियों को छोड़ दिया जाता है। इस दौरान सभी मवेशी ऊनके ऊपर से दौड़ते हुए गुजर जाते हैं। हर साल दिल दहला देने वाले इस नजारे को देखने आस पास के गांवो से हजारों की संख्या में लोग यहां जुटते हैं। गांव की महिलाएं भी इस परंपरा को सुख शांति और समृद्धि का प्रतीक मानती हैं।
गांव गौरी पूजा का दिया है नाम
ग्रामीणों का कहना है कि इस अनूठी परंपरा को गांववासियों ने गौरी पूजा का नाम दिया है। गांव गौरी पूजा में शामिल होने वाले लोग नियम और संयम का पालन करते हैं, जो लोग मुख्य मार्ग पर पशुओं के सामने लेटते हैं वो भी कई दिनों पहले से पूजा अर्चना में जुट जाते हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार, वैसे तो इस परंपरा को निभाने में कोई गंभीर घायल नहीं हुआ है, लेकिन कुछ लोगों को थोड़ी बहुत चोट आ जाती है।
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वर्षों से चली आ रही परंपरा
इस बार गांव के 4 लोगों ने मन्नत रख उपवास किया था। परंपरा के अनुसार दीवाली के पांच दिन पहले सभी ने ग्यारस के दिन अपना घर छोड़ दिया था। इसके बाद गांव में स्थित माता भवानी के मंदिर में आकर रहने लगे थे। दीवाली के अगले दिन मन्नतधारियों को गायों के सामने जमीन पर लेटाया गया। उसके बाद ढोल बजाकर एक साथ गायों को इनके ऊपर से निकाला गया। गांव में ये परंपरा कब शुरू हुई किसी को याद नहीं, लेकिन यहां के बुजुर्ग हों या जवान सभी इसे देखते हुए बड़े हुए हैं।