उज्जैन

Boreshwar Mahadev : जलाधारी पर चाहे जितना जल अर्पित कर दो… समा लेते हैं शिवजी

ताम्र पाषाण काल के स्थल दंगवाड़ा का प्रसिद्ध शिव मंदिर बोरेश्वर महादेव, मां चंबल नदी करती है मंदिर की परिक्रमा, लेकिन सोमसूत्र का उल्लंघन नहीं करती…।

उज्जैनJul 22, 2022 / 04:40 pm

Manish Gite

मुकेश मालावत

उज्जैन. मालवा की धरा पर शाक्त धर्म (शक्ति) की पूजा के कई ऐतिहासिक साक्ष्य मौजूद हैं। ताम्र पाषाण काल से लेकर गुप्त काल तक की विरासत संभाले दंगवाड़ा में एक अनूठा शिव मंदिर है। इसका नाम बोरेश्वर महादेव मंदिर है। स्थानीय स्तर पर प्रचलन में है कि बोर जैसी आकृति के कारण इसका नाम बोरेश्वर पड़ा। हालांकि इस अनूठे शिवलिंग के बारे में कहा जाता है कि इनकी जलाधारी से कभी पानी खत्म नहीं होता है। चंबल नदी भी मंदिर की परिक्रमा करके निकलती है, लेकिन शिव के सोमसूत्र का उल्लंघन नहीं करती।

उज्जैन से 36 किलोमीटर और इंगोरिया से 6 किलोमीटर की दूरी पर दंगवाड़ा में बोरेश्वर महादेव का मंदिर (Boreshwer Mahadev Temple)स्थित है। यहां महादेव की विलक्षण और स्वयंभूलिंग मूर्ति है। महंत दीनदयाल गिरी ने बताया, यह मंदिर अतिप्राचीन सिद्ध स्थल है।

 

कई किंवदंतियां प्रचलित हैं

बोरेश्वर महादेव में 12 ज्योतिर्लिंगों का समावेश है। महादेव की जलाधारी से कभी पानी खत्म नहीं होता और हमेशा एक समान बना रहता है। जलाधारी में कितना ही पानी डाल दो वह हमेशा एक जैसा रहता है। न ज्यादा होता है और न कम होता है। महंत गिरी ने बताया कि मां चंबल नदी बोरेश्वर महादेव की परिक्रमा करके गुजरती है, लेकिन महादेव के सोमसूत्र का उल्लंघन नहीं करती है। लोगों का कहना है कि नंदी महाराज भी रात में यहां चलते हुए भक्तों को दर्शन देते हैं। कुछ समय पहले मंदिर में घंटी-घड़ियाल रातभर अपने आप बजते हुए भक्तों को दिखाई देते हैं।

 

शिवरात्रि पर उच्च शिक्षा मंत्री निकालते हैं रैली

उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव हर शिवरात्रि पर उज्जैन से बोरेश्वर महादेव तक रैली निकालते है। मंत्री यादव बोरेश्वर महादेव के चमत्कार सुन मंदिर पहुंचे थे और महादेव के दर्शन किए थे। यह यात्रा वर्षों से चली आ रही है।

 

हर सोमवार को निकलती है सवारी

सावन में बोरेश्वर महादेव का विशेष शृंगार किया जाता है। हर सोमवार को महादेव की सवारी निकलती है। दर्शन के लिए मंदिर भक्तों की भीड़ लगी रहती हैं। रोज कावड़ यात्रियों का आना-जाना लगा रहता है। 12 माह भक्तों का आना-जाना लगा रहता है और भजन-कीर्तन के आयोजन होते रहते हैं।

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