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फल खाने के पहले यह सोचा राजा ने
चमत्कारी फल देकर गुरु गोरखनाथ वहां से चले गए। राजा ने फल लेकर सोचा कि उन्हें जवानी और सुंदरता की क्या आवश्यकता है। चूंकि राजा अपनी तीसरी पत्नी पर अत्यधिक मोहित थे, अत: उन्होंने सोचा कि यदि यह फल पिंगला खा लेगी तो वह सदैव सुंदर और जवान बनी रहेगी। यह सोचकर राजा ने पिंगला को वह फल दे दिया।
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कोतवाल पर फिदा थी रानी
रानी पिंगला भर्तृहरि पर नहीं, बल्कि उसके राज्य के कोतवाल पर मोहित थी। यह बात राजा नहीं जानते थे। जब राजा ने वह चमत्कारी फल रानी को दिया तो रानी ने सोचा कि यह फल यदि कोतवाल खाएगा, तो वह लंबे समय तक उसकी इच्छाओं की पूर्ति कर सकेगा। रानी ने यह सोचकर चमत्कारी फल कोतवाल को दे दिया। वह कोतवाल एक वैश्या से प्रेम करता था और उसने चमत्कारी फल उसे दे दिया। ताकि वैश्या सदैव जवान और सुंदर बनी रहे। वैश्या ने फल पाकर सोचा कि यदि वह जवान और सुंदर बनी रहेगी तो उसे यह गंदा काम हमेशा करना पड़ेगा। नरक समान जीवन से मुक्ति नहीं मिलेगी। इस फल की सबसे ज्यादा जरूरत हमारे राजा को है। राजा हमेशा जवान रहेंगे, तो लंबे समय तक प्रजा को सभी सुख-सुविधाएं देते रहेंगे। यह सोचकर उसने चमत्कारी फल राजा को दे दिया। राजा वह फल देखकर आश्चर्यचकित रह गए।
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तुम्हें यह फल कहां से मिला
राजा ने वैश्या से पूछा कि तुम्हें यह फल कहांं से प्राप्त हुआ। वैश्या ने बताया कि यह फल उसे कोतवाल ने दिया है। भर्तृहरि ने तुरंत कोतवाल को बुलवा लिया। सख्ती से पूछने पर कोतवाल ने बताया कि यह फल उसे रानी पिंगला ने दिया है। जब भर्तृहरि को पूरी सच्चाई मालूम हुई, तो वह समझ गए कि रानी पिंगला उसे धोखा दे रही है। पत्नी के धोखे से भर्तृहरि के मन में वैराग्य जागा और वे अपना संपूर्ण राज्य विक्रमादित्य को सौंपकर उज्जैन की एक गुफा में तपस्या करने आ गए। उस गुफा में भर्तृहरि ने 12 वर्षों तक तपस्या की। उज्जैन में आज भी राजा भर्तृहरि की गुफा दर्शनीय स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। राजा भर्तृहरि ने वैराग्य पर वैराग्य शतक नामक ग्रंथ की भी रचना की, जो काफी प्रसिद्ध है। राजा भर्तृहरि ने शृंगार शतक और नीति शतक की भी रचनाएं कीं।