उज्जैन

क्रांतिकारियों के लिए रैन बसेरा था भारती-भवन, यहीं पर पुजारी के भेष दिन काटते थे सेनानी

अंग्रेजों के अत्याचार का जवाब देने वाले स्वतंत्रता संग्राम की गौरव गाथा का साक्षी है महाकाल मंदिर से लगा पं. व्यास का मकान

उज्जैनAug 15, 2022 / 02:17 pm

aashish saxena

अंग्रेजों के अत्याचार का जवाब देने वाले स्वतंत्रता संग्राम की गौरव गाथा का साक्षी है महाकाल मंदिर से लगा पं. व्यास का मकान

उज्जैन. उज्जैन में महाकाल मंदिर के नजदीक स्थित एक भवन आजादी पूर्व देश के कई स्वतंत्रा सेनानियों की शरण स्थली रहा है। भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद के साथी क्रांतिकारी अंग्रेजो को चकमा देकर इसी भारती-भवन में हफ्तो गुजारते और देश की आजादी की रणनीति तैयार करते। अग्रेंज फोज को शक न हो इसलिए इन क्रांतिकारियों को महाकाल मंदिर के पुजारी के भेष में रखा जाता था।

अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ चले स्वतंत्रा संग्राम की गौरवगाथा का साक्षी यह ऐतिहासिक भवन ख्यात ज्योतिर्विद व स्वतंत्रता सेनानी पं. सूर्यनारायण व्यास का है। वर्तमान में यहां उनके पौते अंकित व्यास व अन्य परिजन रहते हैं। अंकित बताते हैं, परतंत्रता के दिनों में दादाजी (पं. सूर्यनारायण व्यास) ने देश की आजादी के लिए तो संघर्ष किया ही अन्य क्रांतिकारियों का भी खुलकर सहयोग किया था। उनके गुरुकुल में बड़ी संख्या में शिष्य ज्ञान प्राप्त करते वहीं कई क्रांतिकारी भी भेष बदलकर रहते थे। काकोरी केस के एक अभियुक्त क्रांतिकारी विश्वंभरनाथ शर्मा पं. व्यास के भारती भवन में 6 महीने तक सुरक्षित रहे। खुफिया पुलिस से बचाकर छैलबिहार उर्फ मि. छगनलाल भी यही सुरक्षित रहे थे।

इसी भवन में चला था गुप्त रेडियो स्टेशन

वर्ष 1942 के आंदोलन में पं. सूर्यनारायण व्यास भागीदार बने। उन्होंने 42 मीटर बैंड पर गुप्त रेडियो स्टेशन चलाने की बड़ी जिम्मेदारी ली। इसमें मध्यम भारत के एक महाराज का भी सहयोग था। रेडियो संचालन में बनारस कॉटन एंड सिल्क मिल्स के मैनेजर सरदारसिंह ने काफी मदद की थी।

आपातकाल में जयनारयण यहां आए

पं. सूर्य नारायण व्यास के पुत्र राजशेखर व्यास ने अपनी पोस्ट में बताया है कि आपातकाल के दिनों में जयप्रकाश नारायण हमारें घर भारती भवन आयें ( पत्र में उन्होंने लिखा भी हैं ) देर रात ग्यारह बजे लगभग दो घंटे रुके अर्थात रात एक बजे तक। पूज्य पिता पद्म भूषण पंडित सूर्यनारायण व्यास और उनके मध्य एकांत में गुप्त मंत्रणा हुई , क्या? किसी को आज तक कुछ पता नहीं , इतना भर याद हैं चलते चलते दोनों मित्र गले लग कर रोये भी , एक साथ जन्मे थे एक साथ गये भी , इतना और याद आता हैं दूसरे दिन से हमारे घर के सारे फ़ोन टेप होने लगे और जन्मना मेरे क्रांतिकारी पिता और निर्भीक बोलने लगे , घर के आसपास रोज़सीआइ ी और सीबीआइ के लोग सादी वर्दी में घूमते।

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