प्रमोद सोनी/ उदयपुर. saheliyon ki badi सहेलियों की बाड़ी के इतिहास एवं मेवाड़ की लोक संस्कृति से पेंटिंग्स के जरिये रूबरू करवाने के लिए उद्यान परिसर में ही बनाई की कलांगन दीर्घा पर दो साल से ताले लटके पड़े है। सहेलियों की बाड़ी में घूमने आने वाले पर्यटक यहां से मायूस लौट रहे है।
राजस्थान राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी) की ओर से संचालित इस दीर्घा में पहले विज्ञान केन्द्र संचालित था, उसे जुलाई 2018 में बंद कर कलांगन दीर्घा बनाई गई, इसकी सार संभाल के लिए एक कर्मचारी लगा हुआ था। 10 से 5 बजे तक यहां पर्यटकों की आवाजाही रहती थी। कार्मिक के सेवानिवृत्त होने व कोरोना काल से यहां ताले लटके पड़े है। कोरोना के बाद सरकार के सभी स्थलों के खोलने के आदेश दे दिए लेकिन कार्मिक के अभाव में कलांगन के अब तक ताले नहीं खुल पाए। सार सम्भाल के अभाव में पूरा परिसर व वहां लगी पेंटिंग्स धूल धूसरित हो रहे हैं।
— शहर के चित्रकारों ने उकेरा है इतिहास को दीर्घा में लगाई गई पेंटिग्स को चित्रकारों ने अपनी कल्पना के आधार पर केनवास, पेपर व कपड़े पर उतारा है। यहां पर करीब 50 से ज्यादा पेंटिंग लगी है। इसमें मेवाड़ की पारम्परिक लघु चित्र शैली, नाथद्वारा की चित्रशैली, फड शैली व मॉडर्न आर्ट की पेंटिंग लगाई गई है। इन पेंटिंग्स में शहर के कई चित्रकारों ने सहेलियों की बाड़ी में रानी व उनकी सहेलियों की बाड़ी में रस्सी कूदते, सितौलिया खेलते, नृत्य करते, फव्वारों में नहाते आदि कई दृश्यों को उकेरा है।