मैं अपने उपवन की नन्हीं कली थी
इठलाती, नाचती परी थी,
पापा, मम्मी की लाडली,
नाजों से पली थी,
पर मैं तो भूल गई कि मैं एक लड़की थी,
क्रूर वासना की शिकार बनी,
मेरी आत्मा चित्कार रही थी,
क्या मैं भी इंसान नहीं थी,
अपराध बोध हुआ जब मेरे टुकड़े किए,
मेरा स्त्री होना ही? क्या मैं खुद अपराधी थी ?
इठलाती, नाचती परी थी,
पापा, मम्मी की लाडली,
नाजों से पली थी,
पर मैं तो भूल गई कि मैं एक लड़की थी,
क्रूर वासना की शिकार बनी,
मेरी आत्मा चित्कार रही थी,
क्या मैं भी इंसान नहीं थी,
अपराध बोध हुआ जब मेरे टुकड़े किए,
मेरा स्त्री होना ही? क्या मैं खुद अपराधी थी ?
टिप्पणी के साथ न्यायालय ने निर्णय में लिखा कि आरोपी कमलेश उर्फ करण के द्वारा इस प्रकरण में किया गया अपराध एक सोची समझी योजना के तहत कारित किया था। अपराधी द्वारा कोई भी पछतावा नहीं दिखाया गया। अभियुक्त द्वारा ऐसा पैशाचिक रीति से दृष्टतापूर्ण दुर्बुद्धियुक्त, कूर विकृत मानसिकता के साथ एवं विभत्स घृणास्पद घिनौना, नृशंस मानवता के विरुद्ध घृणित अपराध किया है।