उदयपुर

Maharana Pratap Jayanti 2023: महाराणा प्रताप ने युद्धकाल में कहां कहां बनाए ठिकाने, पढि़ए रोचक जानकारी

Maharana Pratap Jayanti 2023: महाराणा प्रताप का बलुआ ग्राम को युद्धकाल के लिए अपना आवास स्थल बनाने का एक अन्य महत्वपूर्ण कारण इस क्षेत्र के सर्वमान्य और प्रतापी भील सेना नायक जयसिंघ कोटड़िया का होना भी रहा होगा, कोटड़िया एक समृद्ध जमीदार था और इसके स्वत्व में विशाल उपजाऊ कृषि भूमि के अलावा पर्याप्त पशुधन भी था जो महाराणा केलिए युद्धकाल में सामरिक महत्व रखता था।

उदयपुरMay 22, 2023 / 12:45 am

Rudresh Sharma

Maharana Pratap Jayanti 2023 in India will be celebrated on May 22

Maharana Pratap Jayanti 2023: महाराणा प्रताप ने 1585 ई में चावण्ड में अपनी राजधानी स्थापित की, लेकिन चावण्ड के समीपवर्ती भूभाग का सर्वेक्षण करने से यह धारणा अधिक बलवती होती है कि संभवतः चावण्ड में आने से पूर्व महाराणा ने मुगलों का सफलतापूर्वक मुकाबला करने के लिए उदयपुर जिला मुख्यालय से 75 किमी की दूरी पर दक्षिण दिशा में बलुआ नामक गांव में स्थित उदैय की पहाडियों को उनकी सामरिक दृष्टि से उपयोगिता को मध्यस्थ रखते हुए अपना युद्धकालीन निवास बनाया होगा. इस बात की पुष्टि उदैय की पहाडियों तक पहुंचने के अति संकरे और दुर्गम मार्ग से होती है। महाराणा का बलुआ ग्राम को युद्धकाल के लिए अपना आवास स्थल बनाने का एक अन्य महत्वपूर्ण कारण इस क्षेत्र के सर्वमान्य और प्रतापी भील सेना नायक जयसिंघ कोटड़िया का होना भी रहा होगा, कोटड़िया एक समृद्ध जमीदार था और,इसके स्वत्व में विशाल उपजाऊ कृषि भूमि के अलावा पर्याप्त पशुधन भी था जो महाराणा केलिए युद्धकाल में सामरिक महत्व रखता था।

उदैय की पहाड़ियों के चारों ओर निर्मित सुरक्षा दीवार का होना तथा समीपस्थ अन्य तीन पहाड़ियों में सामंतो, सैनिकों और प्रजा के लिए निर्माण भी कराया इसकी पुष्टि क्षेत्र के सर्वेक्षण के दौरान प्राप्त भोतिक अवशेषों से भी हो जाती है। इस क्षेत्र से तीन बावड़ियों का मिलना भी इस भूभाग में बसासत को सिद्ध करता है। इन उदैय की पहाड़ियों में अपने निवास को सम्पूर्णरूप से सुरक्षित करने के प्रमाण इसकी समीपवर्ती धजोल और बठौड़ी की पहाड़ियों पर बनी.सैनिक छावनियों से भी होती है।

इसकी बहुत अधिक संभावना प्रतीत होती है.कि उदैय की पहाड़ियों से अपनी सामरिक सुरक्षा का सम्पूर्ण बंदोबस्त कर महाराणा ने चावण्ड को अपनी राजधानी बनाया और विकास.और.समृद्धि के साथ शाति के युग को प्रारंभ किए। चावण्ड उदयपुर जिला मुख्यालय से 60किमी की दूरी पर उदयपुर-अहमदाबाद.राजमार्ग संख्या8 पर परसाद.सै12किमी पूर्वदिशा में गरगल नदी के बाएं किनारे पर बसा हुआ है। वर्तमान चावण्ड ग्राम से 1/2किमी की दूरी पर दक्षिण दिशा में गरगल नदी के दायीं ओर स्थित एक मगरी पर अपनी नवीन राजधानी का निर्माण कराया था।

इस स्थान के पुरातात्विक सर्वेक्षण के दौरान प्राप्त अवशेषोंं से भी होती है।ऐसा प्रतीत होता है.कि मगरी की चोटी पर महल रहा होगा और मगरी की ढलान और तलहटी पर सामंतो के रहने के लिए भवन आदि बनाए होंगे।सर्वेक्षण के आधार पर यह कहना काफी तर्कसंगत प्रतीत होता है कि महल.की पूर्व दिशा मे प्रताप की आराध्या मां चामुण्डा की अत्यंत नयनाभिराम मूर्ति है तथा राजमहल के उत्तर में काफी बड़ी भवन संरचना के अवशेष मिलते है.जो संभवतः भामाशाह का आवास रहा होगा।इसके साथ ही यह संभावना भी काफी सवक्त.है कि महल की एक किमी की परिधि में सामान्य.प्रजा रहती होगी क्योंकि यहां से खपरैलों के अवशेष बड़ी संख्या में मिले हैं।यहां पर एक कटावला का तालाब भी है जो खेती हेतु पानी का प्रधान स्रोत रहा था।आज भी यहां कि मिट्टी अत्यंत उर्वरा है जो उस समय में भी कृषि उपज की दृष्टि से महत्वपूर्ण था।

चावण्ड की उत्तर-पूर्व दिशा में लगभग 10किमी की दूरी पर स्थित नठारा-की-पाल का अधिकांश भाग पहाड़ियों की श्रृंखलाओं से चहुंओर घिरा हुआ है।इस क्षेत्र का व्यापक सर्वेक्षण करने.से इस क्षेत्र में बसासत के प्रमाण प्राप्त हुए है, इसकी पुष्टि बसासत के अवशेषों और स्थानीय भील समुदाय में प्रचलित जनश्रुतियों के आधार पर यह कहना उचित होगा कि इस क्षेत्र में महाराणा के समय बस्ती थी और यहां के भील मुखिया पूंजा कटारा के नेतृत्व में एक सैनिक टुकड़ी सदैव सहायता के लिए रहती थी, संभवत इस टुकड़ी के सैनिक गुप्त सूचनाएं एकत्र करने का भी कार्य करते रहे होंगे। गांव के मुखियाओं से वार्ता करने से यह जानकारी मिली कि नठारा-की-पाल के मौकात फलां में रियासत काल में लोहा निकाला जाता था। इसके अतिरिक्त्त इस क्षेत्र के पुरातात्विक सर्वेक्षण के दौरान एकत्र मृद्भांडों और खपरेलों के अवशेषों में काफी समानता है जो नठारा के प्रतापकालीन होने की पुष्टि करते हैं।

नठारा में बस्ती के प्रमाणों की पुष्टि आलेख के लेखक द्वारा किए गए पुरातात्विक उत्खनन से मिले अवशेषों से भी होती है।इन पुरावशेषों मे यहां से प्राप्त गद्धिया सिकको से भी होती है जो चांदी के है। ऐसे सिक्के सातवीं आठवीं शताब्दी से लगभग ग्याहरवीं तक प्रचलन में रहे थे।इसके अलावा यहां से प्राप्त भग्नावशेषों और लोहा गलाने की भट्टी के आधार तथा एक टेराकोटा निर्मित छिद्रित पाइपों से होती है.जो.संभवतःहवा के प्रवाह.को निरंतर बनाए रखने.के.लिए प्रयुक्त किए जाते थे।

चावण्ड से दक्षिण-पश्चिम दिशा मेंलगभग आठ किमी की दूरी पर स्थित गांव पाल-लिम्बोदा से भी होती है।यह गांव तीन ओर.से पहाड़ियों से.घिरा हुआ है तथा यह चावण्ड और.उदैय.की पहाडियों के मध्य.स्थित होने से बहुत महत्वपूर्ण रहा होगा तथा युद्धकाल में महाराणा को आवश्यक.सामग्री उपलब्ध.कराने के अलावा.सुरक्षा कीदृष्टि से भी अत्यंत महत्व.का रहा होगा।इसकी पुष्टि.यहां के बुजुर्गों में ब्रचलित.कथाओं.से भी.होती है जिनका सारांश यह.है.कि आज भी इन लोगों के मन-मस्तिष्क में प्रताप के.शौर्यऔर धर्मरक्षक स्वरूप की छवि विद्यमान है।
सन्2001में भारतीय पुरातत्व विभाग की जयपुर.शाखा के द्वारा डॉक्टर डिमरी के नेतृत्व में बी आर सिंह,राजेंद्र.यादव.औरविपिन.उप्पल.आदि के.दल.ने यहां वैज्ञानिक तरीके.से उत्खनन कराया जिससे यह.पता चला कि यह.सम्पूर्ण.संरचना का निर्माण तीन अवस्थाओं में कराया गया होगा।यहां किए गए उत्खनन के आधार.पर यह.निष्कर्ष निकलता है कि इस निर्माण पकी हुई मिट्टी की ईंटों,प्रस्तर.खंडों को प्रयुक्त किया गया था तथा मसाले में चूना प्रमुख रूप से उपयोग में.लिया गयाथा।
इस स्थल के उत्खनन द्वारा एक अत्यंत विलक्षण और आश्चर्यजनक संरचना प्राप्त हुई.है जो प्रताप कालीन उच्च अभियांत्रिकी का और.जल.संग्रहण.के प्रबंधन.का अद्वितीय उदाहरण.है।यह संपूर्ण जल संरचना 8.85×6.70 मीटर की है।इसके के मध्य में एक केंद्रीय कक्ष है जो 29.5x 18मीटर का है और इसके चारों ओर 26 वर्गाकार कक्ष है जिनकी माप 74×74सेमी है।यह सभी कक्ष आपस में टेराकोटा पाईप से जुड़े हुए हैं।इन कक्षों की विभाजक दीवार समँपूर्णतःपकी ईंटों से निर्मित है जिसके दोनों ओर.चूने.का.प्लास्टर किया घया है.और.सम्पूर्ण संरचना की फर्श बहुत.पक्की और.प्रस्तर खंडों से.निर्मित है ताकि पानी का रिसाव.नहीँ हो।यह सम्पूर्ण जल संरचना एक अत्यंत मजबूत दीवार से चारों ओर.से घिरी हुई है,संभवतः इसका कारण सुरक्षात्मक रहा होगा।उत्खनन के दौरान.यह.भी.दृष्टिगोचर हुआ कि वर्गाकार कक्षों में अत्यंत.महीन रेत का जमाव.है जो केंद्रीय कक्ष में एकदम.से अनुपस्थित है।इससे जल शुद्धिकरण की प्रक्रिया.को आसानी से.समझा जा.सकतख है। इस.संरचना में पानी के.प्रवेशकी सुविधा तो है.लेकीन निकासी नहीं है जो इसकी उपयोगिता को.स्वतः सिद्ध करता है।इसके अतिरिक्त चावण्ड.के.उत्खनन से राखिए रंग के.मृदभांड मुख्यरूप से मिले.है,दूसरे प्रमुख मृद्भांडों में लाल रंग के मृद्भांडों के अवशेष मिलते.है।इसके अतिरिक्त यहां से अत्यंत.अल्प संख्या
सारांशतः ,उक्त सभी तथ्यात्मक विवरण से यह कहना पूर्णतः समीचीन है कि प्रातःस्मरणीय प्रताप एक असाधारण प्रतिभा के ऐसे वीर योद्धा थे जिसकी तुलना करना असंभव.ही है;साथ.ही उनमें संगठनात्मक एकता विकसित कर रचनात्मक कार्य.करने की अप्रतिम.क्षमता थी।वह एक कुशल प्रशासक,वास्तुविद और अभियांत्रिकी के जानकार भी थे जिसकी पुष्टि चावण्ड को राजधानी बनाने.से.होती है। अत्यंत विषम परिस्थितियों.में अल्प समय.का समुचित उपयोग.करने.की तमाम विलक्षण प्रतिभा उनमें थी।उन्होंने जिस तरीके से चावण्ड के चारों ओर सेटेलाईट बस्तियां बसाकर स्थानीय निवासियों में पारस्परिक विश्वास की भावना विकसित कर अपने चारों ओर.जो सुरक्षात्मक दीवार बना न केवल सामरिक दृष्टि से अपने राज्य को कंटकाविहीन तो किया ही साथ ही स्थानीय संसाधनों का उपयोग कर अपने राज्य को शक्तिसंपन्न बनाया।इसप्रकार से महाराणा में आपदकाल को अवसर.में बदलने.की अप्रतिम क्षमता तो थी ही,साथ.ही वह मानवीय.प्रयासों से भौगोलिक विषमताओं पर विजय प्राप्त करने.का ऐसे गुणसंपन्न व्यक्तित्व के धनी थे जिसका दूसरा उदाहरण इतिहास में मिलना असंभव.ही.है।और.इसी कारण वे देश काल की सीमाओं.से परे जाकर अनेक राष्ट्रों द्वारा स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने का प्रेरणापुंज बन गए।

आलेख – प्रो. ललित पांडेय

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