उदयपुर जोन के अतिरिक्त निदेशक दीपक तंवर ने बताया कि प्रकरण इंडियन ब्यूरो ऑफ माइन्स की अनुमोदित खनन योजना के तहत हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड के राजसमंद स्थित खनन पट्टे से जुड़ा है। संबंधित खनन पट्टे से 25 लाख टन उत्पादन का अनुमोदन था, इसके विरुद्ध 29.68 लाख टन का उत्पादन किया। इसे अवैध खनन मानते हुए कॉस्ट ऑफ मिनरल वसूल की जाती है। सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2017 में कॉमन जजमेंट में अनुमोदन से अधिक खनन पर अतिरिक्त खनन की 100 प्रतिशत कॉस्ट पेनल्टी के रूप में वसूलने के आदेश दिए थे।
तंवर ने बताया कि लैड एवं जिंक की कॉस्ट का एसेसमेंट लंदन मेटल एक्सचेंज प्राइज के आधार पर किया जाता है। कुल अतिरिक्त खनन 4.68 लाख टन का एसेसमेंट करने पर यह राशि लगभग 311.96 करोड़ आंकी गई। हिन्दुस्तान जिंक ने इसमें से 4.98 करोड़ की राशि वर्ष 2020 में जमा कराई, लेकिन शेष पर न्यायालय से स्थगन ले लिया था। स्थगन हटाने को लेकर सरकार ने प्रकरण को रिवीजन ले रखा था।
गुरुवार को सर्वोच्च न्यायालय में करीब 2 घंटे तक इस विषय पर बहस चली। सरकार की ओर से अधिवक्ता ने तथ्य प्रस्तुत किए। इस पर न्यायालय ने स्थगन हटाने के आदेश दिए। आदेश के तत्काल बाद विभाग ने संबंधित इकाई पर बकाया पेनल्टी 306.98 करोड़ चार्ज करते हुए उसके खाते से राशि वसूल कर राज कोष में जमा करवा दी।