उदयपुर

Rajasthan Bypolls: भाजपा विधायक के निधन के बाद त्रिकोणीय मुकाबले में उलझी ये सीट, इन नेताओं के बीच होने वाला है मुकाबला

Salumber Assembly bypoll 2024: सलूम्बर विधानसभा सीट पर अमृतलाल मीणा के निधन के बाद विधानसभा उपचुनाव हो रहा है। यहां महिला से महिला का मुकाबला होगा जिसे लेकर चुनावी प्रचार चरम पर पहुंच चुका है।

उदयपुरNov 11, 2024 / 03:11 pm

Supriya Rani

पंकज वैष्णव. त्रिकोणीय मुकाबले में फंसी भाजपा का गढ़ कही जाने वाली सलूम्बर विधानसभा सीट पर गांवों से लेकर शहर तक चुनावी चर्चा है। भाजपा ने दिवंगत विधायक अमृतलाल मीणा की पत्नी शांता देवी मीणा को मैदान में उतारकर सहानुभूति से सीट बचाए रखने की तैयारी की है।

महिला से महिला का मुकाबला

इधर, कांग्रेस ने महिला से महिला का मुकाबला कराने और नया चेहरा उतारने की सोच से रेशमा मीणा को टिकट दिया। दोनों नए चेहरों से ज्यादा चर्चा क्षेत्रीय दल बीएपी के प्रत्याशी जितेश कुमार कटारा की है, जिसने पिछले चुनाव में 51 हजार से ज्यादा वोट लेकर दोनों दलों का गणित बिगाड़ दिया था और कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा।
चुनावी हाल जानने के लिए मैं उदयपुर से निकलकर केवड़ा, ओड़ा, पलुना, पलोदड़ा पहुंचा। इस बीच दो जगह पुलिस चेकपोस्ट देख लग रहा था कि चुनाव को लेकर निगरानी सख्त है। आगे बढ़कर अमरपुरा पहुंचा। एक थड़ी पर चाय के साथ चुनावी चर्चा उबाल पर थी। हर किसी का मत था कि आरक्षित सीट है, चेहरा कोई भी हो, वोटिंग पार्टी आधारित होगी। सलूम्बर के बाजार में पहुंचा तो हर किसी का मानना था कि टक्कर कांटे की रहेगी। व्यापारी कमल गांधी ने कहा कि जनजाति क्षेत्र के वोट आपस में बंट रहे हैं। सलूम्बर शहर और मेवल क्षेत्र के वोटर निर्णायक भूमिका में रहेंगे, जहां सामान्य जाति के परिवार अधिक हैं।

कुछ इस तरह के समीकरण

आरक्षित सीट सलूम्बर में 55 फीसदी आबादी जनजाति वर्ग की है। तीनों प्रत्याशी आरक्षित वर्ग से हैं तो इस वर्ग के वोट भी तीनों मेें बंटते नजर आ रहे हैं। प्रभावित करने वाले मुस्लिम मतदाता भी इस बार जगह छोड़ सकते हैं। ऐसे में भाजपा-कांग्रेस अपनी विचारधारा मजबूत करने पर जोर दे रही है। पिछले चुनाव में नवोदित विचारधारा के साथ कदम रखने वाली बीएपी ने इस बार सर्व समाज को साथ लेकर चलने का संदेश दिया है।

रूठकर माने नेताओं पर नजर

पूर्व सांसद, पूर्व विधायक रघुवीर मीणा के रूठकर फिर मान जाने को लेकर भी चर्चा है। भाजपा से नरेंद्र मीणा के आंसुओं के निशान भी मिटे नहीं है। ऐसे में दोनों नेताओं की भूमिका को लेकर कार्यकर्ताओं-मतदाताओं में मौसमी बदलाव-सा असर दिख रहा है।
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