—– कोरोना संक्रमण के शुरुआती दिनों में तो हालात अलग थे। किसी भी जगह से मरीज पॉजिटिव आने पर तत्काल उसकी सुध ली जाती थी। लेकिन जैसे-जैसे गाइड लाइन बदलती गई, सरकार ने भी शिथिलता बरतना शुरू किया। भले ही मरीज पॉजिटिव आ जाए, उसमें लक्षण कम हो या ज्यादा या हो ही नहीं, लेकिन इन तीनों स्थितियों में कई मरीजों को तो कोई संभालने वाला ही नहीं है, उल्टे वह अपने परिजनों की प्रताडऩा भी झेलता है।
—- ये परेशानी उठा रहे है कई मरीज – पहले तो संक्रमण का डर कि वह पॉजिटिव है, अब क्या होगा ? – यदि पूरे परिवार के सभी संक्रमित हो गए तो क्या करेंगे ? – बच्चों में संक्रमण बढ़ गया तो समस्या बढ़ सकती है। – अब उपचार कहां करवाएंगे ?- यदि होम क्वारंटीन हुए तो घर के काम कैसे होंगे ?
—– दूसरी ओर ये हालात – कई मरीज तो घंटों चिकित्सा विभाग की टीम या फोन का इंतजार करते हैं। कई बार फोन जाता है, तब तक काफी दिन हो गए होते हैं।
– कुछ घरों में तो बकायदा चिकित्सा दल होम क्वारंटीन मरीजों को दवा उपलब्ध करवाते हैं, लेकिन कई घरों में कोई नहीं जाता। – कई लोगों को लोकनिंदा का डर भी रहता है कि यदि मेडिकल टीम उनके घर पहुंची तो सभी पड़ौसी उनसे परहेज करेंगे। – कोई सिम्प्टोमेटिक हैं और उसे सर्दी, खासी या बुखार है तो उसे भी कई बार घर पर रहने की सलाह ही दे दी जाती है, जबकि उसे लगता है कि वह भर्ती होना चाहिए।
– कई जो निजी हॉस्पिटलों में खुद ही चले जाते हैं, ना तो उनके पास कोई पीपीई किट होता है और ना ही और सावचेत के साधन ऐसे में रास्ते में अन्य लोगों के संक्रमित होने का डर होता है।
—– प्रयास तो ये रहता है कि हर मरीज को ट्रेस किया जाए, लेकिन कई बार मरीज खुद ही नहीं चाहता कि दल उनके घर तक पहुंचे, कुछ लोग तो फोन पर ही मना कर देते है कि वह व्यवस्था कर लेंगे, ऐसे में हमारे सामने धर्मसंकट पैदा होता है, कि करें तो क्या ?, लेकिन यदि किसी मरीज को समस्या है तो वह चिकित्सा विभाग से संपर्क कर स्वयं परेशानी से मुक्त हो सकता है।
डॉ दिनेश खराड़ी, सीएमएचओ उदयपुर