इस उपचार में वेन्टीलेटर से लेकर महंगे इंजेक्शन व अन्य दवाइयों सहित करीब 80-85 लाख का खर्चा हो चुका है, लेकिन परिजनों की जेब पर एक रुपए का आर्थिक भार नहीं पड़ा। राज्य सरकार की जनकल्याणकारी मां योजना में अब तक नारायण का सम्पूर्ण इलाज निशुल्क हुआ है और अब वह स्वास्थ्य लाभ ले रहा है। चिकित्सकों ने अब उसके शीघ्र ही घर लौटने की उम्मीद जताई है। मरीज का डॉ. ओ.पी.मीना, डॉ.गौतम बुनकर व डॉ. अरुण सोलंकी ने मरीज का उपचार किया तो नर्स मरसीह के.एम.,सुमित स्वर्णकार, नरेश प्रजापत व जीतेन्द्र मय टीम ने सेवा की।
जीबीएस बीमारी से पीड़ित था मरीज
चिकित्सकों ने बताया कि नारायण को गुलियन बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) हुआ था। जीबीएस एक दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है, जिसमें शरीर का इम्यून सिस्टम, जो आमतौर पर बीमारियों से बचाता है, अचानक शरीर को ही अटैक करना शुरू कर देता है। इसी वजह से इसे ऑटो इम्यून डिसऑर्डर कहा जाता है। इस सिंड्रोम से जूझ रहे व्यक्ति को बोलने, चलने, निगलने, मल त्यागने में या रोज की आम चीजों में दिक्कत आती है। यह भी पढ़े:
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नारायण पुत्र वरदाराम मूलत: पाली जिले के रानी स्टेशन के बरकाना गांव का रहने वाला है। उदयपुर में ही वह निजी कॉलेज से नर्सिंग कर रहा था। 30 जून 2024 को अचानक वह बीमार हुआ और उसके बाद उसने चलना- फिरना व बोलना भी बंद कर दिया। कोमा की हालत में परिजन उसी रात करीब 9 बजे एमबी चिकित्सालय के आईसीयू में लेकर पहुंचे।
चिकित्सकों ने बताया कि भर्ती होनेे के दिन से वह वेन्टीलेटर पर है। इलाज के दौरान 20 दिन उसके शरीर में कोई मूवमेंट नहीं हुआ। उम्मीद टूटती गई, लेकिन किसी ने हार नहीं मानी। इलाज के दौरान धीरे-धीरे उसने शरीर के एक-एक अंग को हिलाना शुरू किया। सांस लेने में तकलीफ होने पर गले में छेद किया गया। लगातार सोने से अलग-अलग समय में उसके फेफेड़ों में हवा भर गई और वह फट गए और नया संकट खड़ा हो गया। फेफड़ों के इलाज के लिए एक बार तो परिजनों ने भी सहमति देने से इनकार कर दिया, लेकिन मरीज नारायण की सहमति ने चिकित्सकों में भी हिम्मत ला दी, और उन्होंने उसे सही कर दिया।
नाम मिला आईसीयू बॉय, मनाया बर्थ डे : अस्पताल में स्वस्थ्य होने पर आईसीयू में स्टाफ ने उसे वार्ड के बच्चे का नाम दिया। हाल ही 12 जनवरी 2025 को नारायण का जन्मदिन होने पर चिकित्सकों व नर्सिंग स्टॉफ ने आईसीयू में केक काटा। गुब्बारे आदि सजाकर नारायण का जन्मदिन सेलिब्रेट कर उसके चेहरे पर मुस्कान ला दी। कुल मिलाकर स्टाफ ने उसे आईसीयू ब्याय का नाम भी दे दिया। पांच भाइयों में वह चौथे नम्बर पर है।
मां योजना में हुआ इलाज
मरीज को जीबीएस हुआ था। भर्ती होने के बाद से चिकित्सकों ने अथक प्रयास कर उसे बचाया। सात माह से निरंतर चिकित्सक व स्टाफ उसका उपचार कर रहे है। अब तक महंगे से महंगे इंजेक्शन व दवाइयों उसके काम आ चुकी है। यह सम्पूर्ण इलाज मां योजना में पूरी तरह से निशुल्क किया गया। डॉ. आर.एल.सुुमन, चिकित्सालय अधीक्षक