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उदयपुर

देश में 3752 ट्रांसजेंडर मांग रहे नौकरी, राजस्थान के 76 ट्रांसजेंडर शामिल

कई तरह के भेदभाव के बावजूद देश के ट्रांसजेंडर्स में मुख्य धारा से जुड़ने की चाह बलवती हो रही है।

उदयपुरAug 29, 2024 / 06:45 pm

Alfiya Khan

रुद्रेश शर्मा. कई तरह के भेदभाव के बावजूद देश के ट्रांसजेंडर्स में मुख्य धारा से जुड़ने की चाह बलवती हो रही है। यही वजह है कि वे अपने पारम्परिक पेशे को छोड़ सरकारी या प्राइवेट सेक्टर में जॉब की उम्मीद लिए हुए हैं। नेशनल कॅरियर सर्विस (एनसीएस) पोर्टल के पिछले छह माही आंकड़ों के मुताबिक देशभर में 3752 ट्रांसजेंडर सरकार से नौकरी चाह रहे हैं। इसके लिए उन्होंने एनसीएस पोर्टल पर पंजीयन कराया है। इनमें राजस्थान से भी 76 ट्रांसजेंडर शामिल हैं।
भारत सरकार के श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के तहत संचालित एनसीएस की फरवरी से जुलाई 2024 की रिपोर्ट के मुताबिक देशभर में एक करोड़ 27 लाख 83 हजार 951 पुरुषों, एक करोड़ 11 लाख 37 हजार 541 महिलाओं ने पोर्टल पर जॉब के लिए अपना पंजीयन कराया है। इनमें राजस्थान के 5 लाख 48 हजार 981 पुरुष तथा 8 लाख 93 हजार 918 महिलाएं शामिल हैं। राजस्थान में पोर्टल पर पंजीयन कराने में महिलाएं पुरुषों की तुलना में आगे हैं। प्रदेश में पुरुषों के मुकाबले 3 लाख 44 हजार 937 महिलाओं ने अधिक पंजीयन कराया है।
ट्रांसजेंडर्स को नहीं शिक्षा के समान अवसर: एक अनुमान के मुताबिक प्रदेश में ट्रांसजेंडर्स की आबादी करीब 75 हजार से एक लाख के बीच है। इनके लिए कार्य करने वाले संगठनों का मानना है कि उनकी श्रेणी को समान अवसर देने में सरकारों के प्रयास नाकाफी हैं। राजस्थान में स्कूली शिक्षा की पिछले दिनों जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश के सरकारी स्कूलों में कुल 485 ट्रांसजेंडर बच्चे अध्ययनरत हैं। इनमें 451 प्राथमिक कक्षाओं में हैं। जबकि प्रदेश के मात्र 13 जिले ही ऐसे हैं, जहां उच्च प्राथमिक यानी कक्षा 6 से 8 में ट्रांसजेंडर पढ़ रहे हैं। इनकी संख्या केवल 32 है।

फैक्ट फाइल

1,27,83,951 पुरुषों और 1,11,37,541 महिलाओं ने एनसीएस पोर्टल पर जॉब के लिए कराया रजिस्ट्रेशन
5,48,981 पुरुषों ने राजस्थान से किया रजिस्ट्रेशन, वहीं 8,93,918 महिलाओं का पंजीयन
3752 ट्रांसजेंडर को देशभर में रोजगार की दरकार, 76 ट्रांसजेंडर ने राजस्थान से कराया पंजीयन
इनका कहना है… ट्रांसजेंडर वर्ग के अभी भी सरकारों से कई सवाल हैं। क्या सरकारें इस वर्ग को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए गंभीर है? सुप्रीम कोर्ट के 2014 के जजमेंट ने हमें हिम्मत दी। उम्मीद की किरण नजर आई। लेकिन अब भी सामाजिक स्तर पर बहुत भेदभाव झेलना पड़ता है। शिक्षा में समानता के अवसर, बच्चों को स्कॉलरशिप जैसे प्रावधान नहीं है। जो लोग एनसीएस जैसे पोर्टल तक पहुंच पाए, उनकी संख्या बहुत कम है। आज भी एक बड़ा तबका है, जिन्हें सरकार और समाज की ओर से संबल देने की जरूरत है। – पुष्पा माई, महामंडलेश्वर किन्नर अखाड़ा जयपुर एवं संचालक गरिमा गृह

लैंगिक भेदभाव का हो रहे शिकार:

एनजीओ के प्रतिनिधि मानते हैं कि लैंगिक भेदभाव के चलते पढ़ाई की उम्र में इस वर्ग के बालक पिछड़ जाते हैं। जो जैसे-तैसे पढ़ाई को आगे बढ़ा पाने में कामयाब होते हैं, वही रोजगार पोर्टल पर पंजीयन या अन्य तरह के प्रयासों की हिम्मत जुटा पाते हैं।
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