मेवाड़ के लिए बहाया खून- रामशाह तोमर- एवेंजर्स के सुपरहीरो ब्लैक पैंथर युद्धनीति का जानकार हैै, वह रामशाह तोमर में था। वे ग्वालियर के राजा विक्रमादित्य के बेटे थे। बाबर के कब्जा करने पर मेवाड़ आ गए थे। उस समय जब कई राजा मुगल झंडे तले आ गए थे, तब ये ऐसे राष्ट्रवादी राजा साबित हुए जो प्रताप के नेतृत्व में यकीन करते थे। अपने 800 सैनिकों के साथ ये हल्दीघाटी का युद्ध लड़े, महाराणा ने इन्हें मंदसौर और बारां की जागीर दी। हल्दीघाटी की रणनीति रचने का काम इनका था। प्रताप की सेना कम थी जिस बात का ये ध्यान रखते थे। वे युद्ध विशारद थे और दुश्मन की सेना को जानते थे। प्रताप को आमने-सामने का युद्ध नहीं करने और दुश्मन को पहाड़ों के बीच लाकर युद्ध करने की सलाह दी। ये हरावल में अग्रिम मोर्चे पर इनके बेटे भवानी सिंह, प्रतापसिंह और शालीवाहन के साथ लड़े और काम आए।
प्राण चले गए फिर भी नहीं छूटी हाथ से तलवार- हकीम खां सूर- एवेंजर्स के सुपरहीरो थॉर जिस तरह अपने हाथ में अपना हथियार हथौड़ा थामे रखता है, उसी तरह ये भी हाथ मे हमेशा तलवार थामे रहते थे। ये कौन थे और कहां के थे इसके बार में नहीं कहा जा सकता लेकिन इन्होंने खुद को मेवाड़ का सिद्ध कर दिया। प्रताप का इन पर इतना यकीन था कि सेना में हरावल का एक मोर्चा उन्हें दे दिया। उन्होंने जो जौहर दिखाया था उस बारे में मुल्ला कादिर बदायूंनी ने लिखा है कि उन्होंने कयामत ढा दी थी। वे 350 मुसलमान सैनिकों के साथ हल्दीघाटी में दुश्मन पर टूट पड़े थे। हकीम खां कहते थे, मैं मर जाऊंगा लेकिन मेरे हाथ से तलवार नहीं छूटेगी। जब उन्हें दफन किया तब भी उनके हाथ में तलवार थी। उन्होंने सैनिकों को खूद (लोहे के शिरप्राण) पहना कर सेना में नवाचार किया था।
महाराणा की मौत को अपने सिर पर लिया- झाला बीदा – एवेंजर्स के सुपरहीरो आयरन मैन ने भी फिल्म में ब्रह्मांड को बचाने के लिए अपनी जान दे दी थी जो कि इसलिए इन्हें झाला मानसिंह, झाला बीदा और झाला मन्ना के नाम से जाना जाता है। ये उस झाला कुल से था जिसके पहले की दो पीढिय़ां महाराणा की जान बचाते हुए काम आई थीं। ये झाड़ोल के थे और बाद में इनके वंशजों को बड़ी सादड़ी में ठिकाना मिला। प्रताप जब युद्ध में गिर गए तो उनके हिस्से की मौत झाला मान ने अपने सिर पर ले ली। उनका छत्र और चंवर उन्होंने ग्रहण किए और ‘मैं प्रताप हूं’ चिल्लाते हुए सेना पर टूट पड़े और दूसरी तरफ महाराणा प्रताप को सुरक्षित निकाल लिया गया।
महाराणा को समर्पित कर दी थी अपनी जमापूंजी- दानवीर भामाशाह- एवेंजर्स के कैप्टन अमरीका ने अपनी शील्ड जिसमें उसकी पावर थी, वह एक साथी को दे दी थी, इसी तरह भामाशाह ने भी अपनी जमा पूंजी प्रताप की सेना के लिए दे दी थी। भामाशाह अपने भाई ताराचंद कावडिय़ा के साथ लगभग 60 सैनिकों को लेकर लड़े। उनके एक हाथ में खाते लिखने के लिए कलम रहती थी तो दूसरे हाथ में दुश्मन के खात्मे के लिए तलवार भी थी। कहा जाता है कि जब महाराणा प्रताप अपने परिवार के साथ जंगलों में भटक रहे थे, तब भामाशाह ने अपनी सारी जमा पूंजी महाराणा को समर्पित कर दी थी। वह बेमिसाल दानवीर एवं त्यागी पुरुष थे। आत्मसम्मान और त्याग की यही भावना उन्हें स्वदेश, धर्म और संस्कृति की रक्षा करने वाले देश-भक्त के रूप में शिखर पर स्थापित कर देती है।
तीर-कमान थामे भीलों की सेना ने मुगलों से ली थी टक्कर- भीलू राणा पूंजा- एवेंजर्स के सुपरहीरो हॉक आई के हाथ में भी तीरकमान रहता है जैसा राणा पूंजा रखते थे। राणा का पूरा नाम भीलू राणा पूंजा सोलंकी था। वे भीलों का नेतृत्व करते थे। वे ओगणा पानरवा से भीलों की बड़ी संख्या लेकर युद्ध में शामिल हुए थे। वे सेना के चंद्रावल का हिस्सा संभालते थे, उनकी भील सेना लाठियां, तीर-धनुष, भाटे और गोफण चलाने में माहिर थी। ऐसा कहते हैं कि युद्ध शुरू होते ही वे युद्ध में शामिल होने निकल गए थे। सेना में घायलों की मरहम पट्टी करने का दायित्व भी उनका ही था। इनके अलावा मानसिंह सोनगरा, डोडिया भीलसिंह, पुरोहित जगन्नाथ, रामा सांधू, राठौड़ वीर, सोलंकी वीर आदि की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही। वहीं, चेतक घोड़े के योगदान को भूला नहीं जा सकता।