(इरफान की गाड़ी के ड्राइवर नरपतसिंह आशिया की जुबानी) वर्षों बाद मैं और इरफान ऐसे गले लगे, जैसे कृष्ण-सुदामा’ मेरे किशोरावस्था के साथी इरफान खान बहुत सरल व सज्जन रहे हैं। अहंकार उनमें तब भी नहीं था, आज भी नहीं। आमेर रोड, जयपुर में हम दोनों के घर आसपास हैं। मैं सुभाष क्रिकेट क्लब में सेके्रट्री था। वे बैट्समैन और स्पिनर के रूप में खेलते थे। घर के पास राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान के ग्राउंड में वर्षों तक खेले। समय के पाबन्द थे। सबसे पहले आकर ग्राउंड में विकेट गाड़ते थे। पतंगें भी खूब उड़ाई और लड़ाई। इरफान भाई को वायलिन बजाने का भी शौक था। बाद में वे नाटक थियेटर सीखने दिल्ली चले गए। इधर मैं आयुर्वेद कालेज में। उनके पिता के पास पुराने टायरों की दुकान थी। साधारण घर के होने पर भी स्वयं के दम पर खुद के बलबूते प्रतिभा से शिखर तक पहुंचे ।
अभी करीब 8 महीने पहले ही ‘अंग्रेजी मीडियम’ की शूटिंग के दौरान मुझे याद किया, मिलने बुलवाया। मैं लोक कला मण्डल के निदेशक लईक हुसैन को साथ लेकर मावली के पास मिलने गया। गले मिले, कृष्ण सुदामा से भावुक हुए ,नई पुरानी बातें हुई। मैंने कैंसर होने से विल पावर रखने की सलाह दी तो बहुत आत्मविश्वास से बोले तभी तो शूटिंग कर रहा हूं..अभी भी उनका मनोबल बहुत मजबूत देखा। जल्दी ठीक होकर मेरे घर आने की बात कर ,आयुर्वेद उपचार के बारे में बातें करने लगे। इरफान खान से लॉकडाउन के कारण 5 दिन पूर्व ही बात करने फोन किया तो उनके सेके्रटरी ने बताया कि भाई की तबीयत ठीक नहीं है। बात करने की स्थिति में नहीं है।
(बचपन के मित्र बालकृष्ण शर्मा की जुबानी )
(बचपन के मित्र बालकृष्ण शर्मा की जुबानी )