यूं बन सकती है संभावनाएं
वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार कुंभलगढ़ टाइगर रिजर्व के अस्तित्व में आने के बाद उदयपुर जिले की सायरा रेंज, अमरखजी लेपर्ड कंजर्वेशन रिजर्व, कुराबड़, जयसमंद अभयारण्य, प्रतापगढ़ जिले के सीतामाता अभयारण्य, चित्तौडग़ढ़ जिले के बस्सी और भैंसरोडगढ़ अभयारण्य होते हुए कोटा के मुकुंदरा टाइगर रिजर्व से जोड़ा जा सकता है। इसके आगे मुकुंदरा, बूंदी जिले का रामगढ़ विषधारी, सवाई माधोपुर का रणथम्भौर तथा करौली-धौलपुर टाइगर रिजर्व आपस में जुड़े हुए हैं। ऐसे में मेवाड़ के कुंभलगढ़ से लेकर मत्स्य प्रदेश के धौलपुर – करौली तक टाइगर कॉरिडोर की संभावनाएं बनती है।
वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार कुंभलगढ़ टाइगर रिजर्व के अस्तित्व में आने के बाद उदयपुर जिले की सायरा रेंज, अमरखजी लेपर्ड कंजर्वेशन रिजर्व, कुराबड़, जयसमंद अभयारण्य, प्रतापगढ़ जिले के सीतामाता अभयारण्य, चित्तौडग़ढ़ जिले के बस्सी और भैंसरोडगढ़ अभयारण्य होते हुए कोटा के मुकुंदरा टाइगर रिजर्व से जोड़ा जा सकता है। इसके आगे मुकुंदरा, बूंदी जिले का रामगढ़ विषधारी, सवाई माधोपुर का रणथम्भौर तथा करौली-धौलपुर टाइगर रिजर्व आपस में जुड़े हुए हैं। ऐसे में मेवाड़ के कुंभलगढ़ से लेकर मत्स्य प्रदेश के धौलपुर – करौली तक टाइगर कॉरिडोर की संभावनाएं बनती है।
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मध्यप्रदेश में भी पगफेरायही नहीं कुंभलगढ़ में बाघों की आबादी बढ़ती है तो पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश तक भी इनका पगफेरा बढ़ेगा। एक ओर जहां रणथम्भौर और करौली- धौलपुर के जंगलों का जुड़ाव कूनो नेशनल पार्क है। वहीं, प्रतापगढ़ जिले के जंगल नीमच और चित्तौडग़ढ़, कोटा के जंगल गांधी सागर अभयारण्य से जुड़े हैं। ऐसे में बाघों के मध्यप्रदेश तक पगफेरे की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता। राजस्थान में फिलहाल सबसे पुराना रणम्भौर, सरिस्का, मुकुंदरा हिल्स, रामगढ़ विषधारी और करौली-धौलपुर टाइगर रिजर्व है। इनमें बाघों की आबादी 100 से ज्यादा है। सर्वाधिक 80 से ज्यादा बाघ अकेले रणथम्भौर में हैं।
कुंभलगढ़ टाइगर रिजर्व बनने के बाद भविष्य में ऐसे कॉरिडोर की संभावनाओं को तलाशा जा सकता है, जो मेवाड़ को करौली- धौलपुर टाइगर रिजर्व से जोड़ सके। हालांकि, यह एक दूरगामी सोच है।
- एस.आर. वैंकटेश्वर मुर्थि, मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव), उदयपुर