जब दर्शक कभी हैरत में पड़े तो कभी रोमांच से भर उठे। मुगल टुकड़ी पर विजय के प्रतीक इस जश्न में रणबांकुरे (रणजीत) ढोल की थाप पर गेरिए घेर-घेर घूमते नाचे। कभी खंडे टकराए तो कभी टन्न-टन्न की आवाज करती तलवारें खनकीं। जब-तब हवाई फायर के साथ बंदूकों और सलामी की तोपों ने आग उगली। आधी रात बाद तक यही नजारे चलते रहे। बन्दूकों की हवाई फायर तोपों से गोले दागे गए ।
शौर्य पर्व जमरा बीज पर जबरी गेर में शामिल होने और साक्षी बनने हजारों लोग आधी रात में मेनार पहुंचे, जो भोर तक डटे रहे। गांव का मुख्य चौराया ओंकारेश्वर चौक सतरंगी रोशनी से सजाया गया। ओंकारेश्वर चौराहे पर दिनभर रणबांकुरे रंजीत ढ़ोल बजते रहे। शाही लाल जाजम बिछी, जिस पर अम्ल कुस्लमल की रस्म के साथ रात्रि को जनसमूह कमर तलवार हाथों में बंदूक और मशाल लिए चबूतरे पर पहुंचे।
5 रास्ते-5 दल, बंदूकें दागते एक साथ पहुंचे मुख्य चौराहा
रात करीब 10 बजे पांच मशालची गांव के पांचों मुख्य मार्गों पर तैनात हुए। आधा घंटे बाद पांचों समूह ठाकुरजी मंदिर ओंकारेश्वर चबूतरे के यहां पहुंचे और एक साथ एक समय पर हवाई फायर और आतिशबाजी करते निकले। मुख्य चौक पर इतने पटाखे छूटे कि आग के बड़े गोले से दिखने लगे। बंदूकें गरजीं और शमशीरें भी चमचमाईं। महिलाएं सिर पर कलश धारण किए वीर रस के गीत गाती चल रही थी।
मुख्य चौक में आतिशबाजी के बाद 5 दलो के सदस्यों ने हवाई फायर किए। गुलाल बरसने के साथ रंजीत ढोल ओंकारेश्वर जब उसे उतारे गए उनकी थाप पर पांच दल जमरा घाटी की ओर बढ़े, जहां थम्भ चौक स्थित होली की आग को ठंडा करने के साथ शहीदों को अर्घ्य दी गई। जमरा घाटी पर कतारबद्ध जनसमूह के बीच मेनार और मेनारिया समाज के इतिहास का वाचन किया गया। पुनः ढोल के साथ यह सभी ओंकारेश्वर चबूतरा आए और तलवारे लिए घेरे में गोल गोल नाचते हुए गेर नृत्य शुरू किया। इस बीच आग के गोलों और दोनों हाथों में तलवारों से कारनामों ने भी रोमांचित किया।
रणबांकुरों में दिखी रजवाड़ी रंगत
जबरी गेर का एक और बड़ा आकर्षण नौजवानों की वेशभूषा भी थी। झक सफेद धोती-कुर्ता या चूड़ीदार-कुर्ता के साथ हर कोई कसूमल लाल पाग में शामिल हुए जिन पर पछेवड़ी, कलंगी, चन्द्रमा आदि भी बने थे।