उदयपुर शहर से 35 किलोमीटर दूरी पर राष्ट्रीय राजमार्ग आठ पर टीडी चौराहे से पांच किलोमीटर दूर स्थित जावर कभी समृद्ध नगर हुआ करता था। जावर के इतिहास पर समय-समय पर शोध किए गए हैंं। हाल ही जावर के इतिहास पर पीएचडी करने वाले अरविन्द कुमार ने अपनी पुस्तक में जावर के इतिहास पर साक्ष्यों के आधार पर विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराई है। जावर गत तीन हजार वर्र्ष से सीसा व चांदी जैसे धातुओं का स्रोत रहा है। वैज्ञानिक आधार पर यह प्रमाणित किया जा चुका है कि जस्ता जैसे वाष्पीकृत होने वाले धातु का प्रगलन पूरे विश्व में सर्वप्रथम जावर में एक हजार वर्ष पूर्व हुआ था जो हमारे पूर्वजों के तकनीकी कौशल को परिलक्षित करता है। प्राचीन काल में इस क्षेत्र में व्यापक स्तर पर धातु का खनन एवं प्रगलन हुआ है जिसके फलस्वरूप मेवाड़ आर्थिक प्रगति की ओर अग्रसर हुआ।
जावर धातु उत्पादन क्षेत्र में ही नहीं, मेवाड़ के धार्मिक एवं राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र भी रहा है। विश्व प्रसिद्ध जावर माता का मंदिर आज भी सीना ताने खड़ा है व कई मंदिरों की जीर्ण-शीर्ण अवस्था उनके इतिहास को बयां कर रही है। प्रताप खदान मेवाड़ के राजनीतिक एवं ऐतिहासिक महत्व को इंगित करती है। ब्रिटिश म्यूजियम के डॉ. पोल के्रडोक की टीम ने अस्सी के दशक में जावर में कार्बन डेटिंग से ज्ञात किया कि जावर की खदानें करीब तीन हजार वर्ष पुरानी हैं। तब जावर एक उन्नत शहर हुआ करता। शहर पर राज करने के लिए राजा ने गढ़ का निर्माण करवाया जिसे लोग हरिण्यागढ़ कहते हैं।
रमास्वामी मंदिर, जिसे एक कुण्ड के साथ बनाया गया है। शिलालेख के आधार पर मेवाड़ के राजा रायमल की बहन रमाबाई ने पांच सौ वर्ष पूर्व इस मंदिर का निर्माण करवाया था। क्षेत्र में जैन सम्प्रदाय के कई जीर्ण-शीर्ण मंदिर हैं। वर्तमान में इस क्षेत्र में हिन्द जिंक (वेदान्ता) कम्पनी वृहद स्तर पर खनन कर रही है। इतिहासकार अरविन्द कुमार ने बताया कि हजारों वर्ष पुरानी जावर की सभ्यता आज भी मिट्टी में दबी हुई है, आवश्यकता है खुदाई कर इसे ढूंढ़ निकालने की।
जावर धातु उत्पादन क्षेत्र में ही नहीं, मेवाड़ के धार्मिक एवं राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र भी रहा है। विश्व प्रसिद्ध जावर माता का मंदिर आज भी सीना ताने खड़ा है व कई मंदिरों की जीर्ण-शीर्ण अवस्था उनके इतिहास को बयां कर रही है। प्रताप खदान मेवाड़ के राजनीतिक एवं ऐतिहासिक महत्व को इंगित करती है। ब्रिटिश म्यूजियम के डॉ. पोल के्रडोक की टीम ने अस्सी के दशक में जावर में कार्बन डेटिंग से ज्ञात किया कि जावर की खदानें करीब तीन हजार वर्ष पुरानी हैं। तब जावर एक उन्नत शहर हुआ करता। शहर पर राज करने के लिए राजा ने गढ़ का निर्माण करवाया जिसे लोग हरिण्यागढ़ कहते हैं।
रमास्वामी मंदिर, जिसे एक कुण्ड के साथ बनाया गया है। शिलालेख के आधार पर मेवाड़ के राजा रायमल की बहन रमाबाई ने पांच सौ वर्ष पूर्व इस मंदिर का निर्माण करवाया था। क्षेत्र में जैन सम्प्रदाय के कई जीर्ण-शीर्ण मंदिर हैं। वर्तमान में इस क्षेत्र में हिन्द जिंक (वेदान्ता) कम्पनी वृहद स्तर पर खनन कर रही है। इतिहासकार अरविन्द कुमार ने बताया कि हजारों वर्ष पुरानी जावर की सभ्यता आज भी मिट्टी में दबी हुई है, आवश्यकता है खुदाई कर इसे ढूंढ़ निकालने की।