परीक्षणों में सामने आया कि ‘चेतक’ में न केवल मॉर्फिन बल्कि डोडा-पोस्त में भी अपेक्षाकृत ज्यादा उत्पादन मिलेगा। एमपीयूएटी के अनुसंधान निदेशक डॉ. अरविन्द वर्मा ने बताया कि इस किस्म का विकास अखिल भारतीय औषधीय एवं सगंधीय पौध अनुसंधान परियोजना के तहत डॉ. अमित दाधीच की टीम ने किया है। औषधीय एवं सगंधीय अनुसंधान निदेशालय बोरीयावी आणंद गुजरात, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली की ओर से नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या में 7-9 फरवरी को 31वीं वार्षिक समीक्षा बैठक में इस किस्म (चेतक अफीम) की पहचान भारत में अफीम की खेती करने वाले राज्य राजस्थान, मध्यप्रदेश एवं उत्तरप्रदेश के लिए की गई है। डॉ. दाधीच ने बताया कि यदि किसान वैज्ञानिक तकनीक को आधार मानकर चेतक की फसल का उत्पादन करता है तो औसत 58 किलोग्राम अफीम प्रति हैक्टेयर साथ ही औसत मॉर्फिन उपज 6.84 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर तक प्राप्त की जा सकती है। इसमें मॉर्फिन की मात्रा औसतन 11.99 प्रतिशत है।
चेतक किस्म की अफीम से किसानों को लाभ मिलेगा। पैदावार अच्छी मिलेगी। नई किस्म के इजाद होने से देश के अन्य किसान भी इस किस्म का लाभ उठाकर बेहतर पैदावार ले सकेंगे।
डॉ. अजीत कुमार कर्नाटक, कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर
चेतक अफीम पर एक नजर
58 किलोग्राम अफीम प्रति हैक्टेयर उत्पादन
6.84 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर औसत मॉर्फिन की उपज
10-11 क्विंटल औसत अफीम बीज प्रति हैक्टेयर
09-10 क्विंटल औसत डोडा-पोस्त प्रति हैक्टेयर
100 से 105 दिनों बाद अफीम के लिए चीरा लगाना
11.99 प्रतिशत चेतक अफीम में मॉर्फिन की मात्रा
135 से 140 दिन में बीज परिपक्व हो जाता है
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विदेशों में भी जाती है उदयपुर की अफीम
उदयपुर संभाग के चित्तौड़गढ़ और प्रतापगढ़ जिले में बड़े पैमाने पर अफीम की खेती होती है। यहां की अफीम विदेशों में भी भेजी जाती है। चित्तौड़गढ़ जिले को अफीम उत्पादन की श्रेणी में अव्वल माना जाता है। अफीम की एक हेक्टेयर में पैदावार करीब 50 से 60 किलो तक होती है। सरकार इसे 1800 रुपए प्रति किलोग्राम के हिसाब से खरीदती है।
इन स्थानों पर होती है पैदावार
राजस्थान के कुछ जिले ऐसे हैं, जहां अफीम की पैदावार की जाती है। चित्तौडगढ़, प्रतापगढ़, उदयपुर, भीलवाड़ा, कोटा, बारां एवं झालावाड़ जिलों में खेती बहुतायत में की जाती है। भारत सरकार के केन्द्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो की ओर से जारी लाइसेंस के आधार पर इसकी खेती की जा रही है।