ईश्वर पूजे पार्वती पार्वती का आला लीला गोर को सोना का टीला टीला दे टपका रानी व्रत करे गोरा दे रानी….’’ ‘‘खेलण द् यो गिणगौर भंवर म्हाने पूजण दो दिन चार
ओ जी म्हारी सहेल्यां जोवे बाट भंवर म्हाने खेलण द् यो गिणगौर’’ गणगौर पूजन के इन पारम्परिक गीतों के साथ सजी-धजी ईसर-पार्वती की प्रतिमाओं को सिर पर उठा कर गणगौर घाट ले जाती महिलाओं व युवतियों की टोलियां, ढोल-नगाड़ों के साथ आराध्य गणपति की सवारी को लाते समाजजन और शिव की सेना के रूप में नंदी, हनुमान, भूत-प्रेत, अघोरी बाबा बन कर साथ चलते नन्हे बहुरूपिये। घंटाघर से करीब साढ़े चार बजे से विभिन्न समाजों की गणगौरों की झांकियां निकलनी शुरू हुई। झांकी घंटाघर, जगदीश चौक, गणगौर चौक होते हुए गणगौर घाट पर पहुंचीं।
बीच-बीच में रुक-रुक कर गणगौर के आसपास महिलाओं ने घूमर नृत्य किया तो लोक कलाकारों ने पारम्परिक गेर नृत्य की प्रस्तुतियां भी दीं। मेवाड़ की इस गौरवशाली विरासत और संस्कृति में इतने रंग देखने को मिले जैसे इंद्रधनुषी छटा बिखर गई हो । कुछ इसी तरह का नजारा दिखा गणगौर पर्व के उपलक्ष्य में पर्यटन विभाग व जिला प्रशासन की ओर से हुए मेवाड़ महोत्सव में।
पारम्परिक वेशभूषा में खिला गणगौरों का रूप, झांकियां भी अद्भुत जितनी आकर्षक गणगौरें थीं, उतनी ही महिलाएं भी। पारम्परिक वेशभूषा में सजी-धजी महिलाओं का भी आकर्षण कुछ कम नहीं था। महिलाएं सिर पर गणगौर की प्रतिमाएं उठाए आई और ईसर व कानूड़ा को भी लेकर पहुंची। गणगौर उत्सव में विभिन्न् समाजों की गणगौरों ने हिस्सा लिया। इसके अलावा कई समाजों ने भगवान शिव की बारात निकाली। इसमें कई बच्चे भूत व गण बनकर शामिल हुए। झांकियों में ही श्रीनाथजी की झांकी भी नजर आई। सभी झांकियां बहुत अद्भुत थीं। विभिन्न समाज पहले दिन लाल चूंदड़ी में और सोलह-श्रृंगार कर गणगौर की प्रतिमाएं लेकर आए। महिलाओं के अलावा छोटी-छोटी बालिकाएं भी परम्परागत वेशभूषा में दिखीं। गणगौर घाट पर पहुंचकर महिलाओं ने गणगौर, ईसर की प्रतिमाओं को फूलों से जल कुसुंभे दिए। कई महिलाओं ने पूजा-अर्चना कर प्रसाद वितरण भी किया। वहीं, गणगौर नाव पर शाही गणगौर की झांकी भी निकाली गई। वहीं, शाम को सांस्कृतिक आयोजन हुए जिसमें लोक कलाकारों ने आकर्षक प्रस्तुतियां दीं।