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उदयपुर

gangaur mela news : 67 साल से गोगुंदा में गणगौर मेला, कई संस्कृतियों का होता है मिलाप

दो वर्ष कोरोना काल के चलते मेला स्थगित रहा

उदयपुरApr 04, 2022 / 06:02 pm

jagdish paraliya

Gangaur fair in Gogunda for 67 years, there is a reconciliation of many cultures

67 साल से गोगुंदा में गणगौर मेला, कई संस्कृतियों का होता है मिलाप

लकी गणगौर की प्रतिमा को कोटा से उदयपुर लेकर आए थे
देवी गौरी व शिव के गण, भगवान ब्रह्मा के पुत्र ईसर से जुड़े पर्व को पूरे भारत के कई राज्यों में मनाया जाता है। हर जगह इनका अलग महत्व है। परन्तु उदयपुर जिले के गोगुंदा कस्बे में गणगौर मनाने का अलग ही इतिहास है। इस पर्व की यादें जुड़ी रहे इसलिए पिछले 67 वर्षों से पर्व के शुरू के दिन से तीन दिन तक बड़े स्तर पर मेले का आयोजन होता है, इतने वर्षों में केवल दो वर्ष कोरोना काल के चलते मेला स्थगित रहा। आज भी मेले में कई संस्कृतियों का मिलाप होता है, इसीके चलते मेले को पर्यटन विभाग ने मेवाड़ महोत्सव में लिया है। कस्बे में गणगौर पर्व मनाने की शुरुआत राज राणा लालङ्क्षसह के समय में हुई, पहले राजस्थान में कोटा की गणगौर प्रसिद्ध थी, 1855 में उदयपुर महाराणा के कहने पर राज राणालाल ङ्क्षसह व कलजी का गुड़ा के कल जी झाला कोटा गए व वहां से लकी गणगौर की प्रतिमा को उदयपुर लेकर आ गए, जिस पर प्रसन्न हो महाराणा ने कुछ मांगने को कहा। राजराणा लालङ्क्षसह ने गोगुन्दा में गणगौर की सवारी निकालने व मेला लगाने की अनुमति मांगी, जिस पर महाराणा ने अनुमति दे दी तभी से इस पर्व को मनाया जाने लगा। कुछ समय तक मेला तालाब पर लगता था बाद में 1955 को तत्कालीन सरपंच भैरूङ्क्षसह मकवान ने इसे बसस्टैण्ड चौगान प्रांगण में लगवाना शुरू कर दिया, तभी से आज तक यह मेला इसी जगह लगता है।
मेले में लगातार तीसरी पीढ़ी लाती है झूला
तीन दिवसीय गणगौर मेला अपने आप में विविधता का प्रतीक है। मेले में अजमेर जिले से टटोली से 90 वर्ष पूर्व सलीमुद्दीन शेख बैलगाड़ी में एक लकड़ी का झूला लेकर आते थे, आज उनके परिवार में 50 से अधिक सदस्य हैं और तीसरी पीढ़ी के सदस्य 11 झूले लेकर मेले में आते हैं।
तीन दिन चलता है मेला
तीन दिवसीय पर्व में कस्बे के चारभुजा मंदिर से मेला प्रांगण तक ऊंट, घोड़ों व बैण्डबाजों के साथ गणगौर की सवारी निकाली जाती है। जहां मेला प्रांगण में महिलाएं गणगौर की प्रतिमाओं को सिर पर रख नृत्य करती हैं। शाम को पुन: सवारी के साथ गणगौर प्रतिमाएं जाती हैं।
मेले में लगातार तीसरी पीढ़ी लाती है झूला
तीन दिवसीय गणगौर मेला अपने आप में विविधता का प्रतीक है। मेले में अजमेर जिले से टटोली से 90 वर्ष पूर्व सलीमुद्दीन शेख बैलगाड़ी में एक लकड़ी का झूला लेकर आते थे, आज उनके परिवार में 50 से अधिक सदस्य हैं और तीसरी पीढ़ी के सदस्य 11 झूले लेकर मेले में आते हैं।

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