इनका 99 से 100 प्रतिशत अंक के आधार पर चयन हुआ। अन्य राज्यों के अभ्यर्थी इनके आसपास भी नंबर नहीं ला पाए। बड़ी बात ये है कि टॉपर रहने के बावजूद किसी ने आगे पढ़ाई नहीं की। सभी ने देश के विभिन्न राज्यों में डाक महकमे में नौकरी भी जॉइन कर ली। अकेले राजस्थान में इनकी संख्या 150 से ज्यादा बताई जा रही है। महकमे में जब डाक छंटनी- वितरण का नंबर आया तो अधिकांश को पढ़ना-लिखना ही नहीं आया। अधिकांश क्षेत्रीय भाषा के जानकार भी नहीं निकले।
उदयपुर में चयनित हरियाणा का एक डाक सेवक तो फलासिया क्षेत्र में डाक को सुनसान जगह छोड़कर भाग निकला, जांच होते ही वह यहां से गायब हो गया। ऐसे कई मामले में राज्य में अलग-अलग जगह से सामने आ रहे हैं। इस संबंध में चयनित अभ्यर्थियों को विश्वास में लेकर जानकारी ली तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए।
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अब तक जिला स्तर पर होने वाली इस भर्ती में स्थानीय युवा काफी पिछड़ गए और उनमें से एक का भी चयन नहीं हो पाया। राजस्थान के ग्रामीण डाक सेवक (जीडीएस) संघर्ष समिति ने इस संबंध में संचार मंत्री, मुख्यमंत्री को जांच के लिए पत्र लिखा है। संघर्ष समिति के संयोजक अनिल रामावत ने बताया कि कोविड काल में 10 वीं के एग्जाम नहीं हुए थे। उस समय हरियाणा के स्कूलों ने कई अभ्यर्थी के शत प्रतिशत अंक बोर्ड को भेज दिए। मेरिट के आधार पर उनका चयन हो गया। विभाग में ऐसे कई अभ्यर्थी आ गए, जिन्हें पढ़ना-लिखना नहीं आ रहा है।चौंकाने वाले तथ्य आ रहे सामने
माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की फर्जी मार्कशीट बनाने वाले हरियाणा,पंजाब में गिरोह सक्रिय।कोरोना काल में हुआ पूरा खेल, पुनर्मूल्यांकन के नाम पर कइयों के नंबर बढ़े।
हरियाणा-पंजाब में माध्यमिक शिक्षा बोर्ड में अच्छे नम्बर के बावजूद किसी ने आगे प्रवेश नहीं लिया।
अधिकांश ने पढ़ाई छोड़ने का कारण आर्थिक तंगी बताया।
संघर्ष समिति ने उठाई जांच की मांग
जीडीएस भर्ती के नियम में बदलाव किया जाए, 2010 की भर्ती को पुन:बहाल किया जाए।कोरोना काल वर्ष 2019 से 2022 की 10वीं मार्कशीट के आधार पर जो भर्ती हुए है, उनकी सर्कल स्तर पर 10वीं के विषयों के आधार पर लिखित परीक्षा करवाई जाए।
जिन अभ्यर्थियों के कम अंक आए उनकी भर्ती रद्द की जाए।
पेपर लीक मामले की जांच की तरह ही इस परीक्षा की भी जांच करवाई जाए।