आधार ईंधन अधिभार और कोयला का सही प्रबंधन, दोनों विषय एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। ईंधन अधिभार की अधिकतम सीमा के बराबर 52 पैसे प्रति यूनिट की आधार ईंधन अधिभार का अतिरिक्त भार औद्योगिक और अघरेलू विद्युत उपभोक्ताओं पर डाला गया है, वहीं घरेलू और कृषि कनेक्शन की छूट राशि राज्य सरकार की ओर से वहन की जा रही है। इसकी जरुरत ही नहीं पड़े, यदि कोयले का अनावश्यक आयात रोककर देशी कोयले का सही प्रबंध हो। विशेषज्ञ रिटायर्ड इंजीनियर्स ने नियामक आयोग से पत्राचार कर आपत्ति दर्ज कराई है।
दरों में फर्क की स्थिति 21000 करोड़ प्रति टन कोयला लागत राजस्थान में 1100 करोड़ से अधिक का कोयला गतवर्ष खरीदा405 करोड़ का कोयला इस वर्ष खरीदने की प्रक्रिया इन मापदंडों पर अलग है आयातित कोयला
– आयातित कोयला अत्यधिक ज्वलनशील है। कोल स्टॉक यार्ड में आग की घटनाओं के कारण भंडारण की अधिक हानि होती है।- आयातित कोयले में सल्फर की मात्रा लगभग एक प्रतिशत है, जो स्वदेशी कोयले में 0.5 प्रतिशत से कम है, जिससे एसओ-2 गैस अधिक होती है।
– आयातित कोयले के लिए भंडारण और हैंडलिंग सुविधा नहीं होने से आयातित कोयले की जरुरत मात्रा को स्वदेशी कोयले के साथ मिश्रित करना संभव नहीं- दस प्रतिशत आयातित कोयले को मिश्रित करने के लिए 90 प्रतिशत स्वदेशी कोयले की जरुरत है, जो कि स्वदेशी कोयले की कमी की अवधि के दौरान संभव नहीं हो सकता है।
– आयातित कोयले से उत्पादन की लागत बहुत अधिक है, जिसके परिणामस्वरूप उपभोक्ताओं पर ईंधन अधिभार का बोझ पड़ता है। बिजली उत्पादन और कोयले का विश्लेषण – राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम के 7580 मेगावॉट के बिजली घर है। कोटा, सूरतगढ़ व छबड़ा को मिलाकर 3240 मेगावॉट के लिए कोल इंडिया से कोयला आपूर्ति आवंटित होती है।
– सूरतगढ़, छबड़ा, कालीसिंध इकाईयों की कुल क्षमता 4340 मेगावॉट है। 85 प्रतिशत उत्पादन के लिए छत्तीसगढ़ में खानों से कोयला मिलती है।- केंद्र सरकार ने वर्ष 2022-23 में 10 और 2023-24 में 6 प्रतिशत आयात के निर्देश दिए। यह घरेलू कोयले में मिलाकर कमी पूर्ति के लिए होता है।
– राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम के तापीय बिजली घरों का उत्पादन क्षमता के 50 प्रतिशत तक ही हो रहा है। कोटा में 63 प्रतिशत, छबड़ा में 52 प्रतिशत, सूरतगढ़ में मात्र 30 प्रतिशत व अन्य में 52 प्रतिशत उत्पादन है।- पिछले साल बिना जरुरत जांचे एकल निविदा पर अडानी एसोसिएट्स को 21 हजार रुपए प्रति टन की दर पर आयातित कोयले की आपूर्ति का आदेश दिया, जबकि देशी कोयली की औसत दर मात्र 4500 प्रति टन है।
– ऐसे में देशी कोयले से उत्पादित बिजली 3.60 प्रति यूनिट की तुलना में दर 13 रुपए प्रति यूनिट हो गई। कमियों के ये बिंदु भी अहम – देशी कोयले में आयातित कोयला मिलाने की व्यवस्थाएं नहीं है
– आयातित कोयले की पूरी मात्रा 1-2 माह में आ जाती है, जबकि बिजली घरों के पास भंडारण की सीमित क्षमता के कारण आयातित कोयला ही उपयोग में लेते हैं।- आयातित कोयले की लागत का भुगतान अग्रिम दिया जाता है व साइट पर गुणवत्ता जांच के बिना ही भुगतान कर दिया जाता है।