पुरातत्वविद बताते हैं कि प्रदेश का हाड़ौती क्षेत्र प्रागैतिहासिक काल से मानव सभ्यता की मौजूदगी का साक्षी रहा है। यहां कई स्थानों पर आदिमानव की ओर से निर्मित पाषाण युग के पत्थरों के औजारों के साथ ही गुफाओं में शैल चित्र मिलते हैं। हाल ही में उदयपुर इन्टैक चेप्टर के अध्ययन दल को बूंदी जिले के अस्तोली गांव का दौरा किया, जहां स्थित एक नाले में पुरापाषाण युग के पत्थरों के औजार मिले। अध्ययन दल में पुरातत्वविद डॉ. ललित पाण्डेय, भूवैज्ञानिक डॉ.विनोद अग्रवाल एवं डॉ. हेमन्त सेन तथा स्थानीय पुरा अन्वेषक ओमप्रकाश शर्मा शामिल थे।
शिकार के लिए अहम थे हथियार इन प्राप्त पत्थरों के औजारों को देखने से पता चलता है कि औजार एश्यूलियन उपकरण श्रेणी के हैं, जिनकी आयु लगभग 1 लाख 70 हजार वर्ष से भी पूर्व (पुरापाषाण युग) की मानी जाती है। पुरापाषाण काल में आदिमानव प्राय: गुफाओं में रहता था। उसके जीवन का आधार शिकार करके भोजन करना था। इन्ही पत्थरों के औजारों की सहायता से जंगली जानवरों का शिकार करता था।
ये रहे अध्ययन के बिन्दु – अस्तोली के पास नाले में पुरापाषाण युग के 21 पाषाण औजार मिले हैं। ज्यादातर हस्त कुल्हाडिय़ां हैं, जो विभिन्न आकार की है। – मुख्यत: त्रिभुजाकार, अण्डाकार, बादामाकार, बरछाकार, हृदयाकार औजार शामिल है।
– इसके साथ ही दुर्लभ क्रोड का नमूना भी मिला है, जिसके फलकों को हटाकर उनसे औजार बनाए जाते थे। – पत्थरों के औजार स्थानीय स्तर पर पाए जाने वाले विन्ध्यन काल के बलुआ पत्थरों से ही तैयार किए गए हैं।
– अधिकांश पुरास्थलों पर पत्थर के औजार क्वार्टजाईट, चर्ट, फ्लिन्ट, ओब्सिडियन आदि के हैं, क्योंकि इन्हें बलुआ पत्थर के मुकाबले कठोर माना जाता है। संरक्षण की सख्त जरुरत प्रागैतिहासिक कालीन पत्थर के औजारों के बारे में स्थानीय प्रशासन तथा पुरातत्व विभाग को जानकारी है, लेकिन संरक्षण नहीं किया गया है। ऐसे में धरोहर नष्ट होती जा रही है। स्थानीय लोग इन पत्थरों को मकान चुनाई के काम में उपयोग कर रहे हैं, जो चिन्ता का विषय है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ प्रागैतिहासिक मानव का इतिहास जानने का स्त्रोत मात्र उस काल के मानव की ओर से बनाए पाषाण के औजार हैं। अस्तोली में मिले औजारों की निर्माण शैली एश्यूलियन श्रेणी की मानी जा सकती है, जो कि पुरापाषाण युग की है। इसकी कुल्हाडिय़ों में लकड़ी अथवा लोहे का उपयोग नहीं था। ये औजार पंजे में दबाकर इस्तेमाल किए जाते थे। देश के बहुत कम स्थानों पर इस काल के औजार मिले हैं।
डॉ. ललित पाण्डेय, पुरातत्वविद् एवं समन्वयक, इन्टैक अस्तोली में मिले औजार स्थानीय स्तर पर मिलने वाले विन्ध्यन काल के बलुआ पत्थरों से तैयार किए गए थे। औजार नाले के कगार एवं तल से प्राप्त हुए हैं। हजारों वर्षों से वर्षाजल के प्रभाव एवं ढलान पर लुड़कने के कारण औजारों का प्रारम्भिक तीखापन कुछ हद तक प्रभावित हुआ है। पुरातत्व विज्ञान की दृष्टि से यह स्थल अत्यन्त महत्वपूर्ण है। सरकार को इसके संरक्षण के लिए कदम उठाने चाहिए।
डॉ. विनोद अग्रवाल, भूवैज्ञानिक एवं सदस्य इन्टैक