अगर आप सस्ते बजट में विदेश घूमने का प्लान बना रहे हैं ताे पहाड़ों से अठखेलियां करते रूई के फाहे जैसे बादलों, हरियाली में सिमटा, कलकल करती नदियाें, पगपग पर गिरते झरनों से सराबोर भूटान आपको एक रोमांचकारी यात्रा का अनुभव दे सकता है।
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टेढ़ेमेढ़े पहाड़ी रास्ते, चावल के हरेभरे खेत, फलों से लदे सेब के बगीचे, भव्य, सुंदर चित्रकारी से सजे बौद्ध मंदिर, मठ, स्तूप, पारंपरिक स्थापत्य शैली में बनी इमारतें, भव्य प्रवेशद्वार, शानदार पुल और भी बहुत कुछ। ये सब नजारे भूटान की खासीयतें हैं। यहां के लोग अपनी विरासत, संस्कृति, परंपराओं और रीतिरिवाजों पर न केवल गर्व करते हैं बल्कि उन का दिल से सम्मान भी करते हैं। जिसकी वजह से पर्यटक यहां आने उत्सुक रहते हैं।
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हिमालय के पहाड़ों में बसे भूटान का कुल क्षेत्रफल 38,390 वर्ग किलोमीटर और आबादी 7,53,900 है। आमतौर पर पर्यटक थिंपू, पुनाखा एवं पारो तक ही घूमने आते हैं। इन तीनों जगहों को अच्छी तरह से घूमने के लिए 7 दिन का समय काफी है। 2 दिन थिंपू, 1 दिन पुनाखा और 3 दिन पारो में रुक कर पर्यटक इन जगहों के मनोरम स्थलों को आसानी से देख सकते हैं।
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थिंपू- भूटान की राजधानी थिंपू वांगछू नदी के किनारे समुद्रतल से 2,400 मीटर की ऊंचाई पर बसा है। शहर में सड़कों पर मुख्य बाजार, होटल, रेस्तरां, शासकीय कार्यालय, स्टेडियम, बगीचे हैं। थिंपू में कई देखने लायक जगह हैंं।
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मैमोरियल चोरटन : इस स्तूप का निर्माण भूटान के तीसरे राजा जिगमे दोरजी वांगचुक की स्मृति में 1974 में कराया गया। राजा जिगमे दोरजी वांगचुक को आधुनिक भूटान का जनक माना जाता है। इस स्मारक की मूर्तियां एवं चित्र पर्यटकों को अपनी आेर आर्कषित करती है।
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सिमटोका जोंग : इस बौद्ध मंदिर का निर्माण 1627 में शबदरूंग नगवांग नामग्याल द्वारा कराया गया। मंदिर के बाहरी कौरिडोर में प्रार्थनाचक्रों के पीछे लगे 300 से ज्यादा बौद्ध धर्म के कलात्मक चित्र इस मंदिर की खासीयतें हैं।
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ताशीछोए जोंग : 1641 में बनी इस इमारत का पुनर्निर्माण राजा जिगमे दोरजी वांगचुक द्वारा 1965 में कराया गया। वर्तमान में इस इमारत में दरबार हौल एवं सचिवालय हैं। शनिवार एवं रविवार को पर्यटकों के लिए यह पूरे दिन खुला रहता है। बाकी दिनों में शाम 5 बजे के बाद ही पर्यटक इस में प्रवेश कर सकते हैं।
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बुद्धा पौइंट : थिंपू शहर के निकट एक ऊंची पहाड़ी पर बुद्ध की 51.5 मीटर की विशालकाय धातु प्रतिमा एक ऊंचे अधिष्ठान पर स्थापित है। इसे बुद्धा पौइंट कहते हैं। यहां से थिंपू शहर काफी सुंदर दिखाई देता है।
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नेचर पार्क : बुद्धा पौइंट के पास ही नेचर पार्क है। यह पार्क भूटान के हालिया राजा के शाही विवाह को समर्पित है। पर्यटक इस उद्यान के प्राकृतिक परिवेश में कुछ समय गुजार सकते हैं।
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द फौक हेरीटेज म्यूजियम : इस संग्रहालय में भूटान की ग्रामीण संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। संग्रहालय में 19वीं सदी के एक तीनमंजिला घर को उस के मूल स्वरूप में ही संरक्षित किया गया है। यह घर मिट्टी एवं लकड़ी से बना है। संग्रहालय में एक म्यूजियम एवं कैंटीन भी है।
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तकशांग लहखांग : भूटान का राष्ट्रीय स्मारक और टाइगर नैस्ट के नाम से मशहूर बौद्ध मठों का यह समूह पारो घाटी की सतह से लगभग 900 मीटर की ऊंचाई पर एक दुर्गम पहाड़ी के आखिरी सिरे पर बना है। यहां तक पहुंचने के लिए पहाड़ी चढ़ाई वाला दुर्गम रास्ता है जो पर्यटकों को पैदल ही तय करना होता है। पर्यटक चाहें तो आधी चढ़ाई टट्टू द्वारा कर सकते हैं।
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दोचूला पास : थिंपू से पुनाखा के रास्ते पर 25 किलोमीटर दूर दोचूला पास है. समुद्रतल से इस स्थान की ऊंचाई 3,020 मीटर है। यहां पहुंचते ही ठंडी हवा के झोंके पर्यटकों का स्वागत करते हैं। यहां पर बौद्ध मंदिर एवं 108 स्तूपों का समूह देखने लायक है। पर्यटक यहां से खुले मौसम में हिमालय की बर्फीली चोटियों का दिलकश नजारा देख सकते हैं।
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भारतीय पर्यटकों को भूटान घूमने के लिए टूरिस्ट परमिट लेना जरूरी है। सड़क मार्ग से भूटान जाने वाले पर्यटकों को भारतभूटान सीमा पर स्थित भूटानी शहर फुनशोलिंग से टूरिस्ट परमिट लेना होता है। इस के लिए पर्यटकों के पास पासपोर्ट या मतदाता परिचयपत्र होना अनिवार्य है। साथ ही, पर्यटक के 2 पासपोर्ट साइज के फोटो होने अनिवार्य हैं। यहां से पर्यटकों का पारो एवं थिंपू के लिए 7 दिन की अवधि का टूरिस्ट परमिट जारी किया जाता है।