शहीद शम्भू सिंह का जन्म जिले की मालपुरा तहसील के पारली में 30 जुलाई 1943 को हुआ था। शहीद के परिजनों की पीड़ा है कि शहादत के लगभग 60 वर्ष गुजर जाने के बाद भी वीर योद्धा की शहादत को उचित समान नहीं मिल पाया। उनके पैतृक गांव में विद्यालय या उप स्वास्थ्य केंद्र का नामकरण आज भी शहीद के नाम पर नहीं है।
बस स्टैंड पर स्मारक भी राजपूत समाज से सहयोग राशि एकत्र कर बनाया गया है। स्मारक पर शहीद की प्रतिमा परिजनों ने स्वयं के खर्चे पर स्थापित की है। चुनाव प्रचार के लिए आने वाली विभिन्न पार्टियों के नेताओं ने स्मारक पर छतरी बनाने के वादे तो बहुत किए, लेकिन पूरे किसी ने नहीं किए।
छतरी के अभाव में धूप और बारिश के प्रभाव से प्रतिमा का रंग धूमिल पड़ चुका है। शहीद स्मारक पर प्रतिदिन दीपक जलाया जाता है। प्रतिवर्ष 30 जुलाई को जन्मोत्सव व 18 दिसम्बर को बलिदान दिवस कार्यक्रम आयोजित होता है।
नेहरू ने भेजी थी चि_ी: शहीद शम्भू सिंह ने गोवा युद्ध में वीरता पूर्वक युद्ध किया था। उनकी वीरता पूर्ण शहादत से प्रभावित होकर प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने हस्ताक्षर युक्त सांत्वना पत्र शहीद के पिता को लिखा था, जो परिजनों के पास सुरक्षित है।
इसके अलावा तत्कालीन नौसेना प्रमुख रामदास कटारी का पत्र भी है, जिसमें शहीद के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार गोवा में सैन्य समान के साथ किए जाने का उल्लेख है। युद्धपोत आइ.एन.एस. मैसूर के कप्तान जे. कैमरून के पत्र में गोली के घाव से शहीद होने का उल्लेख है।
पारली में हुआ था जन्म: पारली में 1943 में जन्मे शहीद शम्भू सिंह की शुक्रवार को जयंती है। मात्र 18 वर्ष की आयु में राष्ट्र के लिए शहीद होने वाले शम्भू सिंह आर्मी के रिटायर्ड फौजी कल्याण सिंह खंगारोत के पुत्र थे।
पारली में हुआ था जन्म: पारली में 1943 में जन्मे शहीद शम्भू सिंह की शुक्रवार को जयंती है। मात्र 18 वर्ष की आयु में राष्ट्र के लिए शहीद होने वाले शम्भू सिंह आर्मी के रिटायर्ड फौजी कल्याण सिंह खंगारोत के पुत्र थे।
‘ऑपरेशन विजय’ में शामिल थे
देश आजाद होने के बाद कई सालों तक गोवा पर पुर्तगालियों का अधिकार रहा तो तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने 1961 में ‘ऑपरेशन विजय’ के नाम से युद्ध का ऐलान किया था। इसमें तीनों सेनाओं ने संयुक्त रूप से भाग लिया और 2 ही दिन में पुर्तगाली सेना ने हथियार डाल दिए और पुर्तगाली शासन से स्वतंत्रता मिली। इसमें तीनों सेनाओं के 22 सिपाही शहीद हुए थे, जिसमें से 7 भारतीय नौसेना के जवान थे। शहीद शम्भूसिंह उन्हीं में से एक थे।
देश आजाद होने के बाद कई सालों तक गोवा पर पुर्तगालियों का अधिकार रहा तो तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने 1961 में ‘ऑपरेशन विजय’ के नाम से युद्ध का ऐलान किया था। इसमें तीनों सेनाओं ने संयुक्त रूप से भाग लिया और 2 ही दिन में पुर्तगाली सेना ने हथियार डाल दिए और पुर्तगाली शासन से स्वतंत्रता मिली। इसमें तीनों सेनाओं के 22 सिपाही शहीद हुए थे, जिसमें से 7 भारतीय नौसेना के जवान थे। शहीद शम्भूसिंह उन्हीं में से एक थे।