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देवी दर्शन: ब्रह्माणी माता से है बरवास की पहचान

देवी दर्शन: ब्रह्माणी माता से है बरवास की पहचान
 

टोंकOct 23, 2020 / 06:52 pm

pawan sharma

देवी दर्शन:  ब्रह्माणी माता से है बरवास की पहचान

देवी दर्शन: ब्रह्माणी माता से है बरवास की पहचान

बरवास. बरवास के जयपुर रियासत का गांव बरवास जिसे जयपुर महाराजा काफी पसन्द करते थे। यहां 22 गांवों का तालुका लगता था, जिसमें जयपुर दरबार द्वारा मनोनीत मुखिया बैठते थे। 22 गांवों द्वारा मिलने वाला लाटा (अनाज) चारभुजानाथ नाथद्वारा भेजा जाता था। बरवास गांव की पहचान ब्रह्माणी माता मंदिर से है।

ब्रह्माणी माता की प्रतिमा 1300 वर्ष पूर्व बरवास स्थित गढ़ में नींव खुदाई के दौरान निकली। यहां के मुखिया के हाथों तालाब पाल पर मंदिर बनवाकर प्रतिमा को विराजमान किया गया। आस-पास के दर्जनों गांवों के लोग कोई भी शुभ कार्य मातारानी के मंदिर में पूजा अर्चना के बाद ही प्रारम्भ करते हैं।
वर्तमान समय में ग्रामीणों के सहयोग से पुराने मंदिर के स्थान पर सुन्दर मंदिर का निर्माण किया गया है। बरवास गांव स्थित ब्रह्माणी माता मंदिर टोंक मुख्यालय से 20 किलोमीटर व टोडारायसिंह उपखण्ड मुख्यालय से 20 किलोमीटर डामरीकरण रोड से जुड़ा हुआ है।
लोगों का मानना है कि माता रानी की कृपा से यहां हमेशा खुशहाली बनी रहती है। आस-पास के दर्जनों गांवों के लोग यहां ढोक लगाकर अपने परिवार की कुशलता की कामकना करते हैं। श्रद्धालुओं ने बताया कि मातारानी के मंदिर का निर्माण ब्रह्माणी माता की कृपा व ग्रामीणों की अटूट आस्था विश्वास व सहयोग से हो पाया है।

वीरान जंगल में है चामुंड़ा माता का मंदिर

पीपलू (रा.क.). पीपलू तहसील के ग्राम कठमाणा का प्राचीन एवं ऐतिहासिक चामुंड़ा माता के मंदिर जन-जन की आस्था का केंद्र है। यहां वर्ष भर माता के दर्शन करने पहुंचने वाले श्रद्धालुओं के कारण चहल पहल बनी रहती है। कठमाणा के मेवा गुर्जर ने बताया माता के मंदिर में नवरात्रों में सुख समृद्धि शांति की कामना को लेकर आसपास दूरदराज के भक्तों की भीड़ उमड़ती है।
इस बार वैश्विक महामारी कोरोना के चलते मंदिर में कम संख्या में श्रद्धालु पहुंचे हैं। श्रद्धालु हाथों में घी, मठड़ी, प्रसाद, नारियल, अगरबती आदि लेकर मां की पूजा अर्चना करने के लिए पहुंचे हैं, जिन्हें सरकार की गाइडलाइन के मुताबिक मां के दरबार में पूजा अर्चना कराते हुए दर्शन कराए जा रहे हैं।
कई श्रद्धालु समूह बनाकर मां के दरबार में लोक गीतों की प्रस्तुतियां देकर मनौती कर रहे हैं। नवरात्रों में मंदिर में नवान्ह रामायण, भजन कीर्तन, सत्संग, रात्रि जागरण, अनुष्ठान के धार्मिक आयोजन शुरू हुए हैं। हालांकि इस बार कोरोना महामारी के चलते यहां लगने वाला चतुर्दशी का एक दिवसीय मेला स्थगित किया गया है।
मनौती पूर्ण होने पर श्रद्धालु जडूले उतारने, जात ढोकने, सवामणी करने, ध्वजपताका चढ़ाने पहुंचते है तथा कई हवन पूजन, महाप्रसादी के आयोजन भी करते हैं।चामुंड़ा मंदिर परकोटे के प्रवेश द्वार पर पांच फीट ऊंची निराला हनुमान की प्रतिमा सुशोभित है। मंदिर में कुएं की खुदाई के दौरान 45 वर्ष पूर्व भूगर्भ से शिवनन्दी की प्रतिमा सहित कई प्राचीन अवशेष मिले थे, जो इस बात को इंगित करते है कि यहां पहले कोई नगरी बसी हुई थी, जो बाद में लुप्त हो गई।
मंदिर परिसर के एक चबूतरे पर शीतला माता तथा दूसरे चबूतरे पर काल भैरवनाथ की प्रतिमाएं विराजित हैं। मंदिर में वर्षों से अखंड़ ज्योत जल रही है। इस स्थान पर टोंक व जयपुर जिले के ग्रामीण अंचल के श्रद्धालुओं के दर्शन मनौती करने पहुंचने से दो जिलों की अध्यात्म संस्कृति का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।

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