किसान ने टोंक कृषि विभाग के आत्मा परियोजना निदेशक से नवाचार करके पैदावार बढ़ाने जैविक औषधियों की खेती के बारे में सलाह व जानकारी लेकर नवाचार किया। वैज्ञानिकों की मदद से जैविक खाद और फसल रक्षा के लिए दवा बनानी भी सीखी। सोप कस्बे के युवा और प्रगतिशील किसान मोहन लाल धाकड़ कलौंजी जैसे मसालों की खेती करते हैं। वहीं मल्टीग्रेन में किनोवा,चिया,सीड से भी उन्हें काफी मुनाफा मिल रहा है।
कृषि के क्षेत्र में नवाचार एवं उत्कृष्ट कार्य कर नजीर पेश करने पर मोहन लाल धाकड़ पंचायत समिति स्तर पर सम्मानित भी हों चुके हैं। किनोवा मुख्य तौर पर दक्षिण अफ्रीकी देशों में होता है। इसके पोषण महत्व को देखते हुए प्रदेश के चित्तौड़गढ़,उदयपुर, टोंक,जालोर,पाली और जोधपुर आदि जिलों में इसकी खेती की जा रही है। राज्य सरकार के प्रयासों से प्रदेश में किसानों ने किनोवा की खेती तो शुरू कर दी थी। लेकिन उन्हें अपनी फसल के लिए उपयुक्त मार्केट नहीं मिल पा रहा था। अब जालोर के बावतरा में प्रोसेसिंग प्लांट लगने से पहले यह समस्या काफी हद तक हल हो चुकी है। बहुत कम पानी में सिंचाई से पकने वाली किनोवा की फिलहाल राजस्थान में कोई मंडी नहीं है,मगर मध्यप्रदेश की नीमच मंडी में इसकी अच्छी बोलियां लगती है।
पांच साल कर रहे किनोवा की खेती
टोंक जिले के उनियारा उपखंड क्षेत्र की सोप ग्राम पंचायत निवासी किसान मोहन लाल धाकड़ अपने खेत में सरसों, चना की खेती छोड़कर औषधियां फसलों में किनोवा की फसल बोई है। इन दिनों अमेरिकी औषधीय फसल गोल्ड किनोवा की खेती खासी रास आ रही है। धाकड़ ने बताया कि वे पांच साल से किनोवा की खेती कर रहे है। यह 10 से 15 बीघा के खेत में फसल उगाई जाती है। फसल की बुवाई अक्टूबर में की जाती है। इस फसल की कटाई फरवरी मार्च में की जाती है। यह भी पढ़ें
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खाने और दवा के काम
अमरीक व अन्य देशों में किनोवा को लोग भोजन के रूप में काम लेते हैं। वहां के लोग किनोवा की खिचड़ी चाव से खाते हैं। किनोवा में आयरन, विटामिन सहित कई पोषक तत्व होने से इसका उपयोग दवा बनाने में भी होता है। गोल्ड किनोवा एक वनस्पति है जो बथुआ प्रजाति का सदस्य है।बंजर भूमि में भी पक जाती है किनोवा
किनोवा की फसल को बंजर खेती के नाम से भी जाना जाता है। इस फसल को पशु भी नहीं खाते। इसमें कोई रोग भी नहीं लगता। इससे किसान को कीटनाशक दवाओं का उपयोग भी नहीं करना पड़ता है।ऐसे करें खेती
खेत को अच्छी तरह तैयार करने के लिए 2-3 बार जुताई करनी चाहिए ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए। अंतिम जुताई से पहले खेत में प्रति हेक्टेयर 5-6 टन गोबर की खाद मिला देनी चाहिए और खेत में उचित जल निकासी की व्यवस्था करनी चाहिए। जैविक खेती में किनोवा की बुआई किनोवा की बुआई अक्टूबर, फरवरी,मार्च और कई क्षेत्रों में जून-जुलाई में की जा सकती है। इसका बीज बहुत छोटा होता है। इसलिए प्रति बीघा 400-600 ग्राम बीज पर्याप्त है। इसे कतरों में या सीधे बिखेरकर बोया जा सकता है। बीज को मिट्टी में1.5-2 से.मी. गहराई तक लगाना चाहिए। पौधे 5-6 इंच के हो जाने पर,पौधों के बीच 10-14 इंच की दूरी बना लेनी चाहिए और अतिरिक्त पौधों को हटा देना चाहिए। बुआई के तुरंत बाद सिंचाई करनी चाहिए।