नाले भी गंदगी से भरे हर साल हो जाता है शहर जलमग्न टोंक. ‘सूत न कपास, फिर भी लठ्म लठ्ठाÓ वाली कहावत हर साल बरसात के मौसम में नगर परिषद पर सठीक बैठती है। दरअसल नगर परिषद मानसून पर नालों की सफाई तो कराती है, लेकिन यह सफाई हर बार फोरी तौर पर होती है। नतीजन बरसात के पानी का निकास नहीं हो पाता और पानी बाजार व मकानों में भर जाता है।
ऐसे में प्रशासन और जनप्रतिनिधियों के दबाव में सड़कों और पुलिया को तोड़कर पानी का निकास हर साल कराना पड़ता है। जबकि इसका निस्तारण नालों पर किए गए अतिक्रमण और रियासतकाल में बने नालों को मूलरूप तक साफ नहीं करना है। चौंकाने वाली बात तो यह है कि शहर के कई इलाके तो ऐसे हैं जहां नाला कहां से कहां तक है, इसे देखना तक मुश्किल है।
इसका कारण है कि उन पर या तो सीसी सड़क बना दी गई या फिर कई जगह तो स्थायी अतिक्रमण हो गए हैं। ऐसे में इनकी सफाई नहीं हो पाती और पानी का निकास नहीं हो पाता। इसके चलते शहर के बड़े इलाके में पानी भर जाता है। यह स्थिति कई सालों से शहर में बनी हुई है।
मानसून पूर्व सालों से नालों की सफाई होती है और कीचड़ निकाला जाता है, लेकिन पुलिया, सड़क तथा निर्माण के नीचे दबे नाले की सफाई नहीं हो पाती। वहीं कई नाले तो संकरे हो चुके हैं। ऐसे में पानी पूरे दबाव से नहीं बह पाता। वहीं पुरानी टोंक से आने वाले पानी के मुख्य नाले में बीसलपुर परियोजना की मुख्य लाइन, जलदाय विभाग की लाइन और बीएसएनएल की केबल डाली गई है। ऐसे में यहां कचरा जम जाता है और पानी का निकास रुक जाता है। नाले में आगे भी अवरोधक आ जाते हैं।
ऐसे आता है पानी
सिविल लाइन रोड स्थित रेडियावास तालाब में आधे शहर का पानी आता है। यह पानी यहां से बनास नदी में जाता है। इसमें कालीपलटन, सुभाष बाजार, घंटाघर, बड़ाकुआं, पांचबत्ती समेत अन्य बड़े इलाकों का बरसात का पानी नालों के जरिए रेडियावास में पहुंचता है।
सिविल लाइन रोड स्थित रेडियावास तालाब में आधे शहर का पानी आता है। यह पानी यहां से बनास नदी में जाता है। इसमें कालीपलटन, सुभाष बाजार, घंटाघर, बड़ाकुआं, पांचबत्ती समेत अन्य बड़े इलाकों का बरसात का पानी नालों के जरिए रेडियावास में पहुंचता है।
इसके अलावा मोतीबाग, कालीपलटन, कृषि मण्डी समेत आस-पास के इलाकों का पानी धन्नातलाई में आता है। यहां से हाउसिंग बोर्ड होते हुए हाइवे पर निकल जाता है।
इसके अलावा छावनी, कैप्टन कॉलोनी समेत हाइवे से जुड़ी एक दर्जन कॉलोनियों का पानी अन्नपूर्णा तालाब में आता है। पुरानी टोंक का पानी छोटा बाजार, महाराणा प्रताप, बाबरों का चौक, मालपुरा दरवाजा, काला बाबा होते हुए मोरिया के नाले से होकर बहीर की ओर जाता है। यहां से वह श्मशान मार्ग होते हुए बनास नदी में जाता है।
रियासत काल में 7 फीट थी गहराई
शहर में पानी निकास की व्यवस्था रियासत काल में काफी बेहतर थी। पुरानी टोंक और नई टोंक में रियासत काल के समय तीन दर्जन से अधिक कदमी नाले बनाए गए थे।
शहर में पानी निकास की व्यवस्था रियासत काल में काफी बेहतर थी। पुरानी टोंक और नई टोंक में रियासत काल के समय तीन दर्जन से अधिक कदमी नाले बनाए गए थे।
इनकी गहराई 5 से 7 फीट के करीब थी। इसकी नियमित सफाई होती थी। ऐसे में पानी का निकास सही होता था। अब कई नालों की गहराई महज दो से तीन फीट ही रह गई है।
व्यापारी परेशान हैं
नालों पर अवरोधक व अतिक्रमण हटाया जाए। नाले थे पहले अब नालियां बन गई है। सुभाष बाजार से लेकर नौशे मियां का पुल तक सड़क लबालब हो जाती है। ऐसे में पानी दुकानों में भर जाता है। इससे व्यापारियों को हर साल नुकसान होता है।
– मनीष बंसल, अध्यक्ष श्रीव्यापार महासंघ टोंक
नालों पर अवरोधक व अतिक्रमण हटाया जाए। नाले थे पहले अब नालियां बन गई है। सुभाष बाजार से लेकर नौशे मियां का पुल तक सड़क लबालब हो जाती है। ऐसे में पानी दुकानों में भर जाता है। इससे व्यापारियों को हर साल नुकसान होता है।
– मनीष बंसल, अध्यक्ष श्रीव्यापार महासंघ टोंक
सही है जल्द ही उचित कदम उठाएंगे
कई जगह नाले छपे हुए हैं और कई जगह अतिक्रमण भी है। जल्द ही इनके लिए उचित कदम उठाया जाएगा।
– धर्मपाल जाट, आयुक्त नगर परिषद, टोंक
कई जगह नाले छपे हुए हैं और कई जगह अतिक्रमण भी है। जल्द ही इनके लिए उचित कदम उठाया जाएगा।
– धर्मपाल जाट, आयुक्त नगर परिषद, टोंक