कौन थे नरसिम्हा रेड्डी
नरसिम्हा रेड्डी ने वर्ष 1847 में किसानों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई थी और अंग्रेजों से लोहा लिया। वह उटियालावाड़ा गांव के सीतम्मा और मल्लारेड्डी के पुत्र थे। नरसिम्हा रेड्डी को अल्लागड्डा क्षेत्र में अपने दादा से कर वसूलने की जिम्मेदारी मिली। किसानों पर अंग्रेजों के जुल्म बढ़ते जाप रहे थे। नरसिम्हा ने इसका विरोध किया।
रैयतवाड़ी वयवस्था के खिलाफ उठाई आवाज
मद्रास प्रेसीडेंसी जो आज के समय में आंध्रप्रदेश का हिस्सा है,वहां अंग्रेजों ने रैयतवाड़ी व्यवस्था की शुरुआत की। इस व्यवस्था से अंग्रेजो को कर के रूप में काफी पैसा मिलता था। मुनरो ने 1820 में इसे पूरे मद्रास में लागू कर दिया। इस व्यवस्था के तहत अंग्रेजों और किसानों के बीच सीधा समझौता था। इसमें किसानों को कर सीधा ब्रिटिश कंपनी को देना होता था। लेकिन अगर कोई किसान कर नहीं दे पाता था तो कंपनी उसकी जमीन छीन लेती थी। नरसिम्हा रेड्डी ने इस व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाई।रैयतवाड़ी व्यवस्था से दुखी होकर कई किसानों ने आत्महत्या कर ली थी। लेकिन इसके खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत किसी में नहीं थी। नरसिम्हा रेड्डी से किसानों की यह हालत देखी नहीं गई। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ किसानों को एकजुट करना शुरू किया। किसानों को उनका हक दिलाने के लिए नरसिम्हा ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया।
सरेआम दी फांसी
5 हजार किसानों को साथ लेकर नरसिम्हा ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। वे अंग्रेजों के खजानों को लूटने लगे। उस खजाने को वे गरीबों में बांट देते थे। नरसिम्हा का बढ़ता रुतबा देख अंग्रेज परेशान हो गए थे। ऐसे में उन्होंने नरसिम्हा को खत्म करने की ठान ली। अंग्रेजों ने नरसिम्हा की टोली के 1000 लोगों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट निकाला। इनमें से 112 लोगों को मौत की सजा सुनाई गई, जिसमें नरसिम्हा का भी नाम शामिल था। 22 फरवरी 1847 को लोगों के मन में भय पैदा करने के लिए अंग्रेजों ने नरसिम्हा को सरेआम फांसी दे दी। नरसिम्हा तो शहीद हो गए लेकिन वे लोगों के मन में क्रांति की ज्वाला जगा गए।