न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) हेमा ने 2017 में विजयन सरकार द्वारा नियुक्त किए जाने के बाद 2019 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट को तैयार करने में 1.50 करोड़ रुपये का खर्च आया। इसे जारी करने के लिए पांच साल का इंतजार करना पड़ा, और लंबी कानूनी लड़ाई के बाद नामों और संवेदनशील तथ्यों को हटाते हुए इसे जारी किया गया।
सतीशन ने कहा, “यह विजयन सरकार द्वारा किया गया एक गंभीर अपराध है और हम जानना चाहते हैं कि इस रिपोर्ट (Justice Hema Committee Report) को ठंडे बस्ते में क्यों रखा गया। क्या यह शोषण करने वालों को बचाने के लिए था? समय की मांग है कि एक शीर्ष महिला आईपीएस अधिकारी की अध्यक्षता में एक विशेष पुलिस जांच दल का गठन किया जाए और सभी गलत काम करने वालों को सजा मिले, चाहे वे कोई भी हों और कहीं भी हों।”
पिछले तीन वर्षों से मेरे पास किसी भी शोषण की कोई शिकायत नहीं आई: राज्य के संस्कृति और फिल्म मंत्री
इस बीच, राज्य के संस्कृति और फिल्म मंत्री साजी चेरियन Kerala Culture Minister Saji Cherian) ने कहा कि वह पिछले तीन वर्षों से मंत्री हैं और आज तक उनके पास किसी भी शोषण की कोई शिकायत नहीं आई है। उन्होंने कहा, “अब एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है और उसमें ऐसी बातें कही गई हैं। लेकिन अगर कोई शिकायत है तो मैं जांच का आदेश देने के लिए तैयार हूं। मैं सभी को बताना चाहता हूं कि किसी को भी चिंतित होने की जरूरत नहीं है और शिकायत लेकर आने वाली किसी भी महिला को किसी तरह के दबाव का सामना नहीं करना पड़ेगा।”
चेरियन ने कहा, “हम अगले कुछ महीनों में एक कॉन्क्लेव आयोजित कर रहे हैं, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों से फिल्म उद्योग के सभी प्रमुख लोगों को आमंत्रित किया जाएगा और गहन चर्चा की जाएगी तथा सभी ज्वलंत मुद्दों पर विचार किया जाएगा।”
289 पृष्ठों की Justice Hema Report में बड़ा खुलासा
हेमा समिति (Hema Commission) की 289 पृष्ठों की रिपोर्ट की शुरुआत में लिखा है: “आसमान रहस्यों से भरा है; जिसमें टिमटिमाते सितारे और खूबसूरत चांद भी है। लेकिन, वैज्ञानिक जांच से पता चला है कि तारे टिमटिमाते नहीं हैं और न ही चांद सुंदर दिखता है। इसलिए, अध्ययन में चेतावनी दी गई है: ‘जो आप देखते हैं उस पर भरोसा न करें, नमक भी चीनी जैसा दिखता है’।” समिति (Hema Commission) ने कहा है, “सिनेमा में कई महिलाओं ने जो अनुभव किए हैं, वे वाकई चौंकाने वाले हैं और इतने गंभीर हैं कि उन्होंने अपने करीबी परिवार के सदस्यों को भी इसके बारे में नहीं बताया। आश्चर्यजनक रूप से, हमारे अध्ययन के दौरान, हमें पता चला कि कुछ पुरुषों को भी उद्योग में कई समस्याओं का सामना करना पड़ा था और उनमें से कई, जिनमें कुछ बहुत ही प्रमुख कलाकार भी शामिल थे, को काफी लंबे समय तक अनधिकृत रूप से सिनेमा में काम करने से प्रतिबंधित कर दिया गया था। यह जानना चौंकाने वाला था कि इस तरह के अनधिकृत प्रतिबंध का एकमात्र कारण बहुत ही मूर्खतापूर्ण था – उन्होंने जानबूझकर या अनजाने में ऐसा कुछ किया होगा जो इंडस्ट्री में शक्तिशाली लॉबी के किसी न किसी व्यक्ति को पसंद नहीं आया होगा, ऐसे व्यक्ति को जो इंडस्ट्री पर शासन करता है।”
डर के साए में महिला कलाकार
रिपोर्ट (Justice Hema Committee Report ) में कहा गया है, “फिल्म उद्योग (film industry) में महिलाओं के सामने सबसे बड़ी समस्या यौन उत्पीड़न है। यह सबसे बड़ी बुराई है जिसका सामना सिनेमा में महिलाएं करती हैं। सिनेमा में ज़्यादातर महिलाएं, जो बहुत बोल्ड मानी जाती हैं, अपने बुरे अनुभवों, ख़ास तौर पर यौन उत्पीड़न, के बारे में बताने में हिचकिचाती हैं। वे सिनेमा में अपने सहकर्मियों को भी इसके बारे में बताने से डरती हैं। उन्हें डर है कि उन्हें इसके नतीजे भुगतने पड़ सकते हैं। उन्हें डर है कि अगर वे अपनी समस्या दूसरों को बताएंगी, तो उन्हें सिनेमा से प्रतिबंधित कर दिया जाएगा और अन्य उत्पीड़नों का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि ऐसे लोग सिनेमा में शक्तिशाली हैं और सिनेमा में सभी पुरुष उत्पीड़न करने वालों का ही साथ देंगे। फैन्स और फैन्स क्लबों का के माध्यम से सोशल मीडिया पर उनके (महिला कलाकारों के) खिलाफ़ गंभीर ऑनलाइन उत्पीड़न किया जाएगा। कई गवाहों ने कहा कि उन्हें न केवल खुद के लिए बल्कि उनके करीबी परिवार के सदस्यों के लिए भी जान का ख़तरा होगा। इस तरह, उन्हें सिनेमा में चुप करा दिया जाता है।” रिपोर्ट में आगे कहा गया है, “सिनेमा में काम करने वाली महिलाओं ने बताया कि शुरुआत ही उत्पीड़न से होती है। समिति के समक्ष जांचे गए विभिन्न गवाहों के बयानों से पता चला है कि प्रोडक्शन कंट्रोलर या जो भी व्यक्ति सिनेमा में किसी भूमिका के लिए सबसे पहले प्रस्ताव देता है, वह महिला/लड़की से संपर्क करता है, या कोई महिला सिनेमा में मौका पाने के लिए किसी व्यक्ति से संपर्क करती है, तो उसे बताया जाता है कि उसे ‘एडजस्टमेंट’ और ‘कॉम्प्रोमाइज’ करना होगा। ये दो शब्द हैं जो मलयालम फिल्म उद्योग (Malayalam film industry) में महिलाओं के बीच बेहद परिचित हैं और उन्हें ‘सेक्स ऑन डिमांड’ के लिए खुद को हाजिर करने के लिए कहा जाता है।”
रिपोर्ट में कहा गया है, “सहमति से यौन संबंध बनाने के उदाहरण हो सकते हैं, लेकिन सिनेमा में काम करने वाली महिलाएं आम तौर पर सिनेमा में काम पाने के लिए बिस्तर साझा करने को तैयार नहीं होती हैं। समिति के समक्ष एक अन्य गवाह ने कहा कि ऐसी महिलाएं भी हो सकती हैं जो मांगों के साथ तालमेल बिठाने को तैयार हों और उसने खुद कुछ माताओं को देखा है जो मानती हैं कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है। गवाह ने कहा कि यह एक चौंकाने वाली सच्चाई है। सिनेमा में काम करने वाली महिलाओं के अनुसार, यह एक दुखद स्थिति है कि एक महिला को सिनेमा में काम पाने के लिए यौन मांगों के आगे झुकना पड़ता है जबकि किसी अन्य क्षेत्र में ऐसी कोई स्थिति नहीं है। समिति के समक्ष गवाही देने वाली कई महिलाओं ने इस ओर इशारा किया।”