
सावित्री को पहली बार लीड रोल मिला देवदास में। जिसमें उन्होंने पार्वती की भूमिका निभाई थी। इससे पहली की दो फिल्मों में उन्हें साइड रोल मिला था। इस फिल्म ने जबरदस्त सफलता हासिल की। इसके बाद तमिल सिनेमा की स्टार बनकर उभरने लगी। इस बीच उनके और जेमिनी गणेशन की नजदीकियां बढ़ी। गणेशन पहले से शादी-शुदा थे, लेकिन वो उनसे शादी करना चाहती थीं। उन्होंने अपने प्यार जेमिनी गणेशन को पाने के लिये अपनी मां, चाचा और चाची को छोड़कर शादी कर ली।
यह प्यार के लिए उनकी कुर्बानी थी। शादी के बाद उन्होंने माया बाजार में काम किया। इस फिल्म ने उनकी शोहरत में चार चांद लगा दिए। एक के बाद एक फिल्में मिलने से वो बड़े-बड़े स्टार्स के साथ काम करने लगी। सावित्री की डिमांड हर फिलमों में होने से उनकी फीस भी बढ़ चुकी थी। वहीं, गणेशन (सावित्री के पति) उस वक्त तक साधारण अभिनेता ही थे। सावित्री के दो बच्चे थे। जब उनको बेटा हुआ, गणेशन उनसे दूर होने लगे। उन्हें सावित्री की शोहरत से चिढ़ होने लगी।

जेमिनी गणेशन को लोग उनके अभिनय से नही बल्कि सावित्री के पति के रूप में जानने लगे। दोनों की बीच दूरिया बढ़ने लगी। रिश्तों की खाई इतनी चौड़ी हो गई कि वो एक-दूसरे से अलग हो गए। नशा, अकेलापन और संबंध टूटने से वे काफी टूट गईं। उन्हें फिल्म निर्माण में घाटा लगा। इनकम टैक्स के रेड पड़े। अंत में उन्होंने अपनी संपत्ति को दान देने का फैसला किया। उन्होंने जरूरतमंदों की मदद के लिए अपने गहने और कपड़े तक नीलाम कर दिए। बाद में जब उन्हें इनकी जरूरत पड़ी तो किसी ने उनकी सुध भी नहीं ली। आखिरकार वह कोमा में चली गईं, जिसके बाद उनकी मौत हो गई। जानकारी के मुताबिक जिस देवदास से उन्हें शोहरत मिली थी, वो उसी देवदास की तरह प्यार की तड़प में मर गईं।