टीकमगढ़. शहर में संचालित आसरा गोसेवा केंद्र घायल गोवंश की सेवा की पहचान बन गया है। पिछले 15 सालों से इस सेवा में लगे शहर के एक दर्जन युवा अब तक कई घायल गायों की जान बचा चुके है। वर्तमान में आसारा गोशाला में 85 ऐसे गोवंश की सेवा की जा रही है जो दुर्घटनाओं में अपंग हो चुके हैं। आलम यह है कि जिले में कभी भी सड़क दुर्घटना में गायों के घायल होने पर लोग पशु चिकित्सकों को फोन न करते हुए इन गोसेवकों को याद करते हैं। आए दिन सड़क हादसों में घायल हो रहे गोवंश की पीड़ा से कुछ युवा इस कदर द्रवित हुए कि उन्होंने गोसेवा को अपना लक्ष्य बना लिया।
मऊचुंगी पर संचालित आसरा गोसेवा केंद्र जिले भर में गंभीर रूप से घायल गोवंश का स्थाई ठिकाना बन गया है। यहां पर हर घायल गोवंश की सेवा के साथ ही पूरा उपचार किया जाता है। लगातार सेवा करने वाले यह युवा अब इतने निपुण हो गए हैं कि गायों के जटिल ऑपरेशन तक करना अब इनके बाएं हाथ का खेल हो गया है।
गोशाला से जुड़े सुदीप मिश्रा बताते हैं कि वह और पूरी टीम प्रतिदिन कम से कम 6 घंटे का समय गोशाला में देते हैं। दुर्घटना की जानकारी होते ही यह लोग न तो दिन देखते हैं और न ही रात। अपना सामान उठाकर गोमाता की सेवा के लिए पहुंच जाते हैं।
कई संत कर चुके हैं निरीक्षण इनकी गोसेवा से हर संत प्रभावित है। गोशाला का हर बड़े संत ने निरीक्षण किया। गोसेवा की अलख जगाने वाले मलूकपीठाधीश्वर देवाचार्य राजेंद्रदास महाराज से लेकर वृंदावन और अयोध्या धाम के अनेक संत यहां आ चुके हैं। बुंदेलखंड पीठाधीश्वर सीतारामदास महाराज तो इन गोसेवकों के साथ सदैव खड़े रहते हैं।
टीम के प्रदीप मिश्रा, शिवम असाटी, गोलू नायक, साकेत नायक, सार्थक जैन, सिद्धार्थ असाटी, शुभम जैन, पंकज जैन एवं सुरेंद्र यादव बताते हैं कि गोसेवा अब उनकी दिनचर्या का अनिवार्य हिस्सा सा बन गया है।
हर किसी के पास इनका नंबर गोसेवा से जुड़े वरुण मिश्रा का कहना है कि पूरे जिले में लोगों के पास पशु चिकित्सकों का नंबर हो या न हो इन गोसेवकों का नंबर जरूर होगा। कभी दुर्घटना होने या गाय के बीमार होने पर लोग पशु चिकित्सकों को फोन न कर इन गोसेवकों को फोन करते हैं। प्रतेंद्र ङ्क्षसघई का कहना है कि यदि यह गोसेवक न हो तो कई गाएं तो सड़क पर ही बिना उपचार के दम तोड़ देती।