टीकमगढ़

जलस्रोत: सहेजना होगा बारिश और नदियों का पानी, तभी बुझ पाएगी जिले की प्यास

टीकमगढ़. जिले में भूमिगत जल की स्थिति ऐसी नहीं है, कि इससे जिले की प्यास बुझाने के साथ ही खेती की जा सके। यह बात राजशाही दौर के लोग समझ गए थे, इसीलिए जिले में तालाब और बाबडिय़ों का जाल बिछाया गया था। समय के साथ इनका रखरखाव न होने एवं बारिश के पानी को सहेजने के उचित प्रबंध न होने का परिणाम अब यह है, कि जिले में पेयजल के लिए भी पानी जुटाना एक परेशानी हो गया है। आलम यह है कि पूरा शहर जहां पेयजल के लिए यूपी के भरोसे हो गया है तो जिले के 102 गांवों में पानी के स्रोत उपलब्ध न होने से नल-जल योजनाओं को रोकना पड़ा है।

टीकमगढ़Jan 09, 2025 / 06:56 pm

Pramod Gour

टीकमगढ़. बेतवा नदी में बहता अथाह पानी।

राजशाही दौर में विशेषज्ञ समझ गए थे यह परेशानी, इसीलिए किया था तालाबों का निर्माण
टीकमगढ़. जिले में भूमिगत जल की स्थिति ऐसी नहीं है, कि इससे जिले की प्यास बुझाने के साथ ही खेती की जा सके। यह बात राजशाही दौर के लोग समझ गए थे, इसीलिए जिले में तालाब और बाबडिय़ों का जाल बिछाया गया था। समय के साथ इनका रखरखाव न होने एवं बारिश के पानी को सहेजने के उचित प्रबंध न होने का परिणाम अब यह है, कि जिले में पेयजल के लिए भी पानी जुटाना एक परेशानी हो गया है। आलम यह है कि पूरा शहर जहां पेयजल के लिए यूपी के भरोसे हो गया है तो जिले के 102 गांवों में पानी के स्रोत उपलब्ध न होने से नल-जल योजनाओं को रोकना पड़ा है।
समय के साथ जिले में पानी बड़ी परेशानी बनता जा रहा है। इस वर्ष बरीघाट जल संयंत्र का पानी सूख जाने से प्रशासन के साथ ही सरकार को यूपी के सामने हाथ फैलाने पड़े थे और 10 दिन बाद पानी मिल सका था। वहीं अब सामने आया है कि जिले में 102 नल-जल योजनाओं के काम केवल इस कारण नहीं हो पा रहे हैं कि इन गांवों में योजना के लिए पर्याप्त पानी के स्रोत नहीं मिल रहे हैं। वहीं कुछ और योजनाएं ऐसी बताई जा रही हैं, जिनमें भविष्य में पानी की कमी हो सकती है। इस समय भले ही लोग इस समस्या को न समझ रहे हो, लेकिन यह एक संकेत है कि भविष्य में जिले में पानी बड़ी परेशानी बन सकती है।
समस्या से निपटने रोकनी होगी नदियों की धारा

इस समस्या से निपटने का एक ही उपाय है कि बारिश के पानी को व्यर्थ न बहने दिया जाए। हमें जिले से निकलने वाली नदियों पर जहां भी संभव हो, एनीकट और स्टॉपडेम बनाकर पानी को सहेजना होगा। जिले के 102 गांवों की पेयजल योजना के लिए भी लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग एनीकट बांध बनाकर पानी सहेजने की बात कह रहा है।
इसके साथ ही जिले में बारिश के पानी को सहेजने के लिए बनाए गए तालाबों को बचाना होगा।

एक्सपर्ट व्यू: सहेजें पुरानी जल संरचनाएं

जिले के जलस्रोतों पर काम करने वाले इतिहासकार केपी त्रिपाठी बताते हैं कि जिले में भूमिगत जल की स्थिति अच्छी नहीं है। इसी के चलते चंदेली और बुंदेली शासनकाल में जिले में 1 हजार से अधिक छोटे-बड़े तालाबों का निर्माण किया गया था। हमारी उदासीनता के चलते अब जिले के बहुत से छोटे तालाब तो अस्तित्व में ही नहीं है। वहीं कुछ बड़े तालाबों पर भी प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा के चलते वह अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहे हैं। जिले में पेयजल और ङ्क्षसचाई के लिए केन-बेतवा से बेहतर विकल्प बड़ागांव के ऊपर धसान नदी पर बांध बनाना है। इससे जिले के सभी तालाबों तक पानी पहुंचाया जा सकता है।

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