टीकमगढ़

जिले से ही उठा था नदियां जोडऩे का विचार

टीकमगढ़. देश की पहली नदी जोड़ो परियोजना की बुंदेलखंड के खजुराहो में बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आधारशिला रखी तो इसका विचार भी बुंदेलखंड से ही पैदा हुआ था। सन 1989-90 में उस समय के विचारक एवं प्रख्यात अधिवक्ता प्रताप नारायण तिवारी ने सबसे पहले इस विचार को जन्म देकर नदियों को जोडऩे की मांग उठाई थी। आज प्रताप नारायण तिवारी तो नहीं हैं, लेकिन उनका वह विचार फलीभूत होता दिखाई दे रहा है।

टीकमगढ़Dec 30, 2024 / 06:03 pm

Pramod Gour

टीकमगढ़. प्रताप नारायण तिवारी।

केन-बेतवा ङ्क्षलक परियोजना: समाजसेवी प्रताप नारायण तिवारी ने पैदल मार्च कर बांटे थे पर्चे, तीन प्रधानमंत्रियों को लिखे थे पत्र
टीकमगढ़. देश की पहली नदी जोड़ो परियोजना की बुंदेलखंड के खजुराहो में बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आधारशिला रखी तो इसका विचार भी बुंदेलखंड से ही पैदा हुआ था। सन 1989-90 में उस समय के विचारक एवं प्रख्यात अधिवक्ता प्रताप नारायण तिवारी ने सबसे पहले इस विचार को जन्म देकर नदियों को जोडऩे की मांग उठाई थी। आज प्रताप नारायण तिवारी तो नहीं हैं, लेकिन उनका वह विचार फलीभूत होता दिखाई दे रहा है।
बाढ़ के साथ देश के कई क्षेत्रों में तांडव मचाने वाली नदियों को सूखी नदियों से जोड़कर, बाढ़ से होने वाली जनहानि को रोकते हुए सूखे प्रदेशों में पानी पहुंचाने के लिए सबसे पहले शहर के प्रख्यात एडवोकेट एवं विचारक प्रताप नारायण तिवारी ने आवाज उठाई थी। वह अपने साथ एक छोटा सा सूटकेस लेकर चलते थे और जगह-जगह नदियां जोडऩे के पर्चे बांटते थे। उनके इस सूटकेस पर लिखा होता था कि नदियां जोड़ो, देश बचाव। इसके साथ ही उन्होंने नदियों को जोडऩे के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, एचडी देवगौड़ा के साथ ही पीवी नरङ्क्षसह राव को पत्र भी लिखे। उनके इस विचार को ही जिले के अन्य जनप्रतिनिधियों ने भी आगे बढ़ाया था। केन-बेतवा ङ्क्षलक परियोजना से अब बुंदेलखंड लहलाएगा तो इसके पीछे लोग एक बार फिर से प्रताप नारायण तिवारी को याद करते दिखाई दे रहे हैं।
उनके इस अभियान के प्रत्यक्षदर्शी साहित्यकार रामस्वरूप दीक्षित बताते हैं कि प्रताप नारायण तिवारी को लोग प्यार से दादा कहते थे। वह बहुत आगे की सोच रखने वाले व्यक्ति थे। उनकी इस सोच को उस समय के लोगों ने ध्यान नहीं दिया, लेकिन आज वहीं सोच केन-बेतवा ङ्क्षलक परियोजना के रूप में परिणित हो रही है और यह सूखे निर्जन बुंदेलखंड के लिए अमृत बताई जा रही है। दीक्षित बताते हैं कि दादा ने उस समय देश में बाढ़ से होने वाली त्रासदी को रोकने के लिए यह विचार दिया था। उनके कई आलेख उस समय के विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित होते थे और प्रधानमंत्री कार्यालय से भी जवाब आते थे। उन्होंने ही सबसे पहले ओरछा के जामनी और बेतवा नदियों के पुल के लिए आंदोलन शुरू किया था।

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