मंदिर

महावीर जब बन जाते हैं हनुमान और बुद्ध तब होती है पूजा तीन धर्मों की

इस प्रतिमा को जैन धर्म के महावीर स्वामी, हिंदू इसे हनुमानजी एवं बौद्ध धर्म के लोग भगवान बुद्ध के रूप में पूजते हैं

Apr 02, 2015 / 10:53 am

चंदू निर्मलकर

प्रतिमा एक और उसे अपना आराध्य मानकर पूजने वाले तीन अलग-अलग धर्मों के लोग। असंभव सी लगने वाली यह बात दुर्ग के राजीव नगर में तालाब किनारे बाबा भंगड़देव मंदिर में स्थापित प्रतिमा को देखकर संभव हो जाती है। 1300 साल पुरानी तीर्थंकर भगवान महावीर की प्रतिमा की जहां जैन धर्म के लोग पूजा करते हैं, वहीं हिंदू इसे हनुमानजी और बौद्ध धर्म के लोग इन्हें भगवान गौतम बुद्ध के रूप में पूजते हैं। लोगों की आस्था देखकर रामचरितमानस की चौपाई ‘जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी’ यहां बिलकुल सटीक बैठती है। इस वर्ष भी यहां सर्वधर्म समभाव की झलक देखने को मिलेगी। 2 अप्रैल को भगवान महावीर की जयंती, 4 अपै्रल हनुमान जयंती और ४ मई को बुद्ध पूर्णिमा पर श्रद्धालु एकत्र होंगे।

मंदिर का इतिहास

पुरातत्व विभाग इस बात की पुष्टि कर चुका है कि यह प्रतिमा भगवान महावीर की है, जो करीब 1300 साल पुरानी है। अनुमान है कि कल्चुरी शासनकाल के आखिरी दौर में इसे बनाया गया है। यहां भगवान महावीर की दो प्रतिमा है। एक मंदिर के बाहर, जो छह साल पहले गाज गिरने से खंडित हो गई है। इसके बाद हूबहू एक प्रतिमा मंदिर के गर्भगृह में स्थापित की गई। प्रतिमा में महावीर स्वामी आसन की मुद्रा में हैं। सिर पर जटानुमा केश है। कानों में कुंडल है। लोगों के मुताबिक यह प्राचीन प्रतिमा तालाब गहरीकरण के लिए खुदाई के दौरान मिली थी, जिसे तालाब पार पर स्थित मंदिर में स्थापित किया गया। इस तालाब को लोग भंगड़देव तालाब के नाम से ही जानते हैं।

यह है पूजने की वजह

जैन तीर्थंकार और बौद्ध धर्म की मूर्तियों में वैसे तो समानता होती है। तालाब किनारे ऊंचे टीले पर पीपल पेड़ के नीचे प्रतिमा मिलने के कारण बुद्ध को मानने वाले कहते हैं कि भगवान बुद्ध को बोधी वृक्ष के नीचे ही ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। वहीं, भगवान महावीर स्वामी होने का कारण प्रतिमा का आसन की मुद्रा में बड़े-बड़े कान में कुंडल और वक्ष के मध्यम में श्रीवात्स होना हैं। ध्यानमुद्रा में होने के कारण हनुमान भक्त इसे हनुमानजी मानकर पूजा करते हैं। वे प्रतिमा में बंदन गुलाल लगाते हैं। कई अन्य छोटी-छोटी अन्य प्रतिमाएं भी यहां स्थापित है।

मूर्ति के भगवान महावीर होने कारण यह है कि जैन धर्म के देवताओं में 21 लक्षणों का वर्णन आता है, जिसमें धर्म, चक्र, चँवर, सिंहासन, तीन क्षत्र आदि प्रमुख बताए गए हैं। ऐसे ही इस मूर्ति के नीचे सिंह व दोनों और जैन यक्षणी की मूर्तियां है। इस हिसाब से हमने इसकी गणना की गई है।
जे.आर.भगत, पुरातत्वविद, रायपुर

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