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दुनिया का एकलौता शिव मंदिर, जो कहलाता है जागृत महादेव – जानें क्यों?

29 अप्रैल 2020 से यहां दर्शन शुरू होने की आशा…

Apr 17, 2020 / 04:52 pm

दीपेश तिवारी

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अब तक जो सूचना सामने आ रही है उसके अनुसार 29 अप्रैल 2020 को भगवान शिव के एक ऐसे ज्योतिर्लिंग कपाट खुलने जा रहे हैं, जिन्हें जागृत महादेव माना जाता है। माना जाता है कि इस मंदिर में शिव आज भी जागृत अवस्था में हैं और समय समय पर भक्तों की मदद के लिए अपने चमत्कार दिखाने के साथ ही भक्तों को दर्शन भी देते हैं।

इस मंदिर का द्वार आम दर्शनों के लिए मेष लग्न में सुबह 6:10 पर खोला जाएगा। इसके बाद छह माह तक अराध्य की पूजा-अर्चना धाम में ही होगी। दरअसल हम बात कर रहे हैं भगवान शिव के 11वें ज्योतिर्लिंग केदारनाथ की।

इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने के लिए भक्त करीब 6 माह तक का इंतजार करते हैं। यहां की चढ़ाई को बेहद ही मुश्किल माना जाता है, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि भोले बाबा जिसे दर्शन देने की ठान लेते हैं उसे दर्शन देकर ही रहते हैं। इसी बात से जुड़ी भगवान शिव के एक भक्त की कहानी है, जिसके बाद से केदरनाथ को जागृत महादेव कहा जाने लगा।

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केदारनाथ को ‘जागृत महादेव’ कहा जाता है। इसके पीछे एक प्रसंग प्रचलित है। प्रसंग के मुताबिक,बहुत समय पहले एक बार एक शिव-भक्त अपने गांव से केदारनाथ धाम की यात्रा पर निकला। पहले यातायात की सुविधाएं तो थी नहीं वह पैदल ही निकल पड़ा। रास्ते में जो भी मिलता उससे केदारनाथ का मार्ग पूछ लेता और मन में भगवान शिव का ध्यान करता रहता। चलते चलते उसको केदारनाथ धाम तक पहुंचने में महीनों लग गए।

आखिरकार एक दिन वह केदार धाम पहुंच ही गया। केदारनाथ में मंदिर के द्वार 6 महीने खुलते है और 6 महीने बंद रहते हैं। भक्त जब वहां पहुंचा तो उस समय केदारनाथ के द्वार 6 महीने के लिए बंद हो रहे थे। परंपरा के मुताबिक दोबारा ये द्वार 6 महीने के बाद ही खुलते।

भक्त ने पंडित जी से इस बात का अनुरोध किया कि द्वार खोल दिए जाएं ताकि वह प्रभु के दर्शन कर सके, लेकिन पंडित जी ने परंपरा का पालन करते हुए द्वार को बंद कर दिए, क्योंकि वहां का तो नियम है एक बार द्वार बंद तो बंद।

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इससे भक्त बहुत निराश हुआ और रोने लगा। इसके बाद वह बहुत रोया। बार-बार भगवन शिव को याद किया कि प्रभु बस एक बार दर्शन करा दो। वह प्रार्थना कर रहा था सभी से लेकिन उसकी किसी ने भी नहीं सुनी।


शिव भक्त को मिलें सन्यासी बाबा…
पंडित जी ने भक्त से कहा कि वह अपने घर चला जाए और दोबारा 6 महीने के बाद आए। लेकिन भक्त ने उनकी बात नहीं मानी और वहीं पर खड़ा होकर शिव का कृपा पाने की उम्मीद करने लगा। रात में समय भूख-प्यास से उसका बुरा हाल हो गया। इसी दौरान उसने रात के अंधेरे में एक सन्यासी बाबा के आने की आहट सुनी।

बाबा के आने व पूछने पर भक्त ने उनसे समस्त हाल कह सुनाया। फिर बहुत देर तक बाबा उससे बातें करते रहे। बाबा जी को उस पर दया आ गई। वह बोले, “बेटा मुझे लगता है, सुबह मन्दिर जरुर खुलेगा। तुम दर्शन जरूर करोगे।” इसके कुछ समय बातों-बातों में इस भक्त को ना जाने कब गहरी नींद आ गई।

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सुबह सूर्य के मद्धिम प्रकाश के साथ भक्त की आंख खुली। उसने इधर उधर बाबा को देखा किन्तु वह कहीं नहीं थे। इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता उसने देखा पंडित आ रहे है अपनी पूरी मंडली के साथ। उस ने पंडित को प्रणाम किया और बोला कल आप ने तो कहा था मन्दिर 6 महीने बाद खुलेगा? इस बीच कोई नहीं आएगा यहां लेकिन आप तो सुबह ही आ गये।

गौर से देखने पर पंडित जी ने उस भक्त को पहचान लिया औरपुछा, तुम वही हो जो मंदिर का द्वार बंद होने पर आये थे? जो मुझे मिले थे। 6 महीने होते ही वापस आ गए!

उस आदमी ने आश्चर्य से कहा नहीं, मैं कहीं नहीं गया। कल ही तो आप मिले थे रात में मैं यहीं सो गया था। मैं कहीं नहीं गया। पंडित के आश्चर्य का ठिकाना नहीं था। उन्होंने कहा लेकिन मैं तो 6 महीने पहले मंदिर बन्द करके गया था और आज 6 महीने बाद आया हूं। तुम 6 महीने तक यहां पर जिन्दा कैसे रह सकते हो? पंडित और सारी मंडली हैरान थी।

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इतनी सर्दी में एक अकेला व्यक्ति कैसे 6 महीने तक जिन्दा रह सकता है। तब उस भक्त ने उनको सन्यासी बाबा के मिलने और उसके साथ की गई सारी बाते बता दी कि एक सन्यासी आया था लम्बा था, बढ़ी-बढ़ी जटाये, एक हाथ में त्रिशुल और एक हाथ में डमरू लिए, मृग-शाला पहने हुआ था।

पंडित जी समझ गए कि इस भक्त से उस रात स्वयं शिव जी ही मिलने आए थे। यही वजह है कि केदारनाथ को ‘जागृत महादेव’ कहा जाता है।

इसके बाद पंडित और सब लोग उसके चरणों में गिर गये। बोले हमने तो जिंदगी लगा दी किन्तु प्रभु के दर्शन ना पा सके सच्चे भक्त तो तुम हो। तुमने तो साक्षात भगवान शिव के दर्शन किए हैं। उन्होंने ही अपनी योग-माया से तुम्हारे 6 महीने को एक रात में परिवर्तित कर दिया। काल-खंड को छोटा कर दिया। यह सब तुम्हारे पवित्र मन और तुम्हारे विश्वास के कारण ही हुआ है।

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