कहा जाता है की हम वैज्ञानिक काल में जी रहे हैं जहां असंभव को भी संभव किया जा सकता है। लेकिन इस मंदिर के चमत्कार के आगे वैज्ञनिकों नें भी अपने घुटने टेक दिए हैं। तमिलनाडु के तंजौर में स्थित यह शिव मंदिर बृहदेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह प्रसिद्ध मंदिर ग्यारहवीं सदी के आरंभ में बनाया गया था।
मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है की इस विशाल मंदिर को हजारों टन ग्रेनाइट से बनाया गया है और इसे जोड़ने के लिए ना तो किसी ग्लू का इस्तेमाल किया गया है और ना ही सीमेंट का, फिर सोचने वाली बात है की इस मंदिर को आखिर किस चीज़ से जोड़ा गया है तो आपको बता दें की मंदिर को पजल्स सिस्टम से जोड़ा गया है।
प्राचीन मंदिरों में से एक है बृहदेश्वर मंदिर। यह मंदिर दक्षिण भारत में स्थित प्राचीन वास्तुकला का एक नायाब नमूना है। यह तमिलनाडु के तंजौर में स्थित है जो 11वीं सदी के आरम्भ में बनाया गया था। विश्व में यह अपनी तरह का पहला और एकमात्र मंदिर है जो कि ग्रेनाइट का बना हुआ है।
इस विशेष तकनीक से जुड़े हैं इसके पत्थर
इस मंदिर को लगभग 13 लाख टन ग्रेनाइट के पत्थरों से बनाया गया है। आश्चर्य की बात यह है कि तंजौर में आस-पास 60 किमी तक न कोई पहाड़ और न ही पत्थरों की कोई चट्टानें हैं। बताया जाता है कि यहां 3 हजार हाथियों की मदद से इन पत्थरों को यहां लाया गया था।
इन पत्थरों को जोड़ने में कोई सीमेंट, प्लास्टर, सरिया या फिर अन्य किसी वस्तु का प्रयोग नहीं किया गया है। बल्कि पत्थरों को पजल तकनीक से आपस में जोड़कर तैयार किया गया है। मंदिर का मजबूत आधार इस प्रकार से तैयार किया गया है कि हजार साल बाद भी इतना ऊंचा मंदिर आज भी एकदम सीधा खड़ा है।
बृहदेश्वर मंदिर अपनी भव्यता, वास्तुशिल्प और इसके बीचोबीच बनी विशालकाय गुंबद से लोगों को आकर्षित करता है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण चोल शासक प्रथम राजराज चोल ने करवाया था। उसके नाम पर इसे राजराजेश्वर मंदिर का भी नाम दिया गया है। यह मंदिर द्रविड़ वास्तुकला का बेमिसाल उदाहरण है। जिसे देखकर आप दांतों तले उंगली दबा लेंगे। बृहदेश्वर मंदिर अपने समय की विश्व की विशालतम संरचनाओं में से एक गिना जाता था। इस मंदिर की ऊंचाई लगभग 66 मीटर है। मंदिर भगवान शिव की आराधना को समर्पित है।
विशालकाय है मंदिर का गुंबद
मंदिर का गुंबद अपने आप में एक आश्चर्य है। यह एक विशालकाय पत्थर से बना है। इसका वजन 80 टन से भी अधिक है। उस जमाने में जब कोई क्रेन या लिफ्ट वगैरह नहीं थी, इतने विशाल पत्थर को कैसे स्थापित किया गया होगा। मंदिर में विशालकाय शिवलिंग को भी स्थापित किया गया है। इस कारण इसे बृहदेश्वर नाम दिया गया है। मंदिर की खास बात एक यह भी है कि यहां भगवान शिव की सवारी कहलाने वाले नंदी बैल की भी विशालकाय प्रतिमा स्थापित है। इसे भी एक ही पत्थर से काटकर बनाया गया है। इसकी ऊंचाई 13 फीट है।
बृहदेश्वर मंदिर का इतिहास History of Brihadeshwara Temple
बताया जाता है कि बृहदेश्वर मंदिर का चोल राजा राजराजा प्रथम द्वारा सन 1003 ईस्वी से 1010 ईस्वी के बीच किया गया था। चालुक्य युग के शासन में 5 वीं से 9 वीं शताब्दी के बीच में हिंदू मंदिरों का बहुत विकास हुआ। इस समय के दौरान देश के विभिन्न हिस्सों में अनेक मंदिरों का निर्माण किया गया था। चालुक्य शासन का समय काल हिन्दू मंदिरों का स्वर्णिम काल था। चालुक्य वंश के बाद सन 850 ईस्वी से 1280 ईस्वी के बीच चोल राजवंश का विकास हुआ, उन्होंने भी अपनी भू-राजनीतिक सीमाओं को सुरक्षित करने और वास्तुकला का प्रचार प्रसार करने पर अधिक जोर दिया। अपनी धार्मिक विरासत को बढ़ावा देने के लिए प्रथम चोल राजा ने दक्षिण भारतीय शैली में बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया।
बृहदेश्वर मंदिर में मनाए जाने वाले त्यौहार Festivals celebrated at Brihadeeswarar Temple
1- चित्राई ब्रमोथ्सवम, यह त्यौहार अप्रैल से मई के बीच में 18 दिनों तक मनाया जाता है।
2- शिवराथिरी, यह त्यौहार फरवरी में 1 दिन के लिए मनाया जाता है।
3- नवराथिरी, यह त्यौहार सितंबर से अक्टूबर के बीच 9 दिनों तक मनाया जाता है।
4- अरुथरा दर्शनम, यह त्यौहार दिसंबर में 1 दिन के लिए मनाया जाता है।
5- सत्यविझा, यह त्यौहार अक्टूबर माह में 2 दिन के लिए मनाया जाता है।
6- पंचमी देवी, यह त्यौहार पंचमी एक पखवाड़े में मनाया जाता है।
7- गिरिवलम, यह त्यौहार प्रत्येक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।
8- आदि पूरम।
9- चित्राई ब्रह्मोत्सवम।
10- थानूरमाधा पूजा।