कहते हैं कि जब भी इन चारों धामों को धारण करने वाली इस देवी के मंदिर में कोई या किसी भी प्रकार का परिवर्तन किया जाता है, तो उत्तराखंड के चारों धाम में जलजला आ जाता है। यहां तक की ये चारों धाम हिल जाते हैं।
वहीं इस मंदिर में मौजूद माता की मूर्ति दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है। मूर्ति सुबह में एक कन्या की तरह दिखती है, फिर दोपहर में युवती और शाम को एक बूढ़ी महिला की तरह नजर आती है। यह नजारा वाकई हैरान कर देने वाला होता है। कहते हैं मां धारी की प्रतिमा सुबह एक बच्चे के समान लगती है, दोपहर में उनमें युवा स्त्री की झलक मिलती है, जबकि शाम होते-होते प्रतिमा बुजुर्ग महिला जैसा रूप धर लेती है। कई श्रद्धालुओं की ओर से प्रतिमा में होने वाले परिवर्तन को साक्षात देखने का दावा भी किया जाता है।
इस मंदिर को उत्तराखंड के चार धामों को धारण के कारण ही धारी देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर नदी के ठीक बीचों-बीच स्थित है। दरअसल देवी काली को समर्पित इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां मौजूद मां धारी उत्तराखंड के चारधाम की रक्षा करती हैं। इस माता को पहाड़ों और तीर्थयात्रियों की रक्षक देवी माना जाता है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भीषण बाढ़ में यह माता की मूर्ति भी बह गई और वह धारो गांव के पास एक चट्टान से टकराकर रुक गई। कहते हैं कि उस मूर्ति से एक ईश्वरीय आवाज भी निकली, जिसने गांव वालों को उस जगह पर मूर्ति स्थापित करने का निर्देश दिया। इसके बाद गांव वालों ने मिलकर वहां माता का मंदिर बना दिया। पुजारियों की मानें तो मंदिर में मां धारी की प्रतिमा द्वापर युग से ही स्थापित है।
कहते हैं कि श्रीनगर में चल रहे हाइडिल-पॉवर प्रोजेक्ट के लिए मां धारी के मंदिर का स्थान परिवर्तन साल 2013 में किया गया था और उनकी मूर्ति को उनके मूल स्थान से हटा दिया गया था, इसी वजह से प्रतिमा हटाने के कुछ घंटे बाद ही केदारनाथ में तबाही आ गई थी। साथ ही उस साल उत्तराखंड में भयानक बाढ़ आई थी, जिसमें हजारों लोग मारे गए थे।
माना जाता है कि धारा देवी की प्रतिमा को 16 जून 2013 की शाम को हटाया गया था और उसके कुछ ही घंटों बाद राज्य में आपदा आई थी। बाद में उसी जगह पर फिर से मंदिर का निर्माण कराया गया।
बुजुर्गों का कहना है केदारनाथ विपदा का कारण मंदिर को तोड़कर मूर्ति को हटाया जाना है। ये प्रत्यक्ष देवी का प्रकोप है। पहाड़ के लोगों में यह मान्यता है कि पहाड़ के देवी-देवता जल्द ही रुष्ट हो जाते हैं और अपनी शक्ति से कैसी भी विनाशलीला रच डालते हैं। शाम छह बजे मूर्ति को उसके मूल स्थान से हटाया गया और रात्रि आठ बजे तबाही शुरू हो गई। उत्तराखंड के चारों धामों को यह मंदिर अपने में धारण किए हुए हैं। यहां तक की इन चारों धाम में आने वाली किसी आफत के संबंध में इस धारी देवी मां के मंदिर में संकेत मिलने शुरू हो जाते हैं।
धारी देवी मंदिर, देवी काली माता को समर्पित एक हिंदू मंदिर है। धारी देवी को उत्तराखंड की संरक्षक व पालक देवी के रूप में माना जाता है। धारी देवी का पवित्र मंदिर बद्रीनाथ रोड पर श्रीनगर और रुद्रप्रयाग के बीच अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है। धारी देवी की मूर्ति का ऊपरी आधा भाग अलकनंदा नदी में बहकर यहां आया था तब से मूर्ति यही पर है। तब से यहां देवी “धारी” के रूप में मूर्ति पूजा की जाती है।
मूर्ति की निचला आधा हिस्सा कालीमठ में स्थित है, जहां माता काली के रूप में आराधना की जाती है। मां धारी देवी जनकल्याणकारी होने के साथ ही दक्षिणी काली मां भी कहा जाता है। पुजारियों के अनुसार कालीमठ और कालीस्य मठों में मां काली की प्रतिमा क्रोध मुद्रा में है, परन्तु धारी देवी मंदिर में मां काली की प्रतिमा शांत मुद्रा में स्थित है ।
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मंदिर में मां धारी की पूजा-अर्चना धारी गांव के पंडितों द्वारा किया जाता है। यहां के तीन भाई पंडितों द्वारा चार-चार माह पूजा अर्चना की जाती है। मंदिर में स्थित प्रतिमाएँं साक्षात व जाग्रत के साथ ही पौराणिककाल से ही विधमान है। धारी देवी मंदिर में भक्त बड़ी संख्या में पूरे वर्ष मां के दर्शन के लिए आते रहते हैं।
दरअसल देवभूमि उत्तराखंड में देवी दुर्गा की अलग-अलग रूपों में पूजा होती है। ऐसे में बद्रीनाथ जाने वाले रास्ते में देवभूमि के श्रीनगर से 15 किमी दूरी पर कलियासौड़ में अलकनन्दा नदी के किनारे सिद्धपीठ मां धारी देवी का मंदिर स्थित है। जिन्हें छोटे चार धाम को धारण करने वाला माना जाता है। इनका नाम धारण करने वाली देवी के नाम से ही धारी देवी पड़ा।