हिन्दुओ में इन्हें कलयुग का एकमात्र दृश्य देव माना जाता है। सूर्य देव को ही सूर्य नारायण भी कहा जाता है। देश के कुछ स्थानों पर सूर्य मंदिरों का भी समय समय पर निर्माण होता रहा है। जो आज भी कई रहस्य लिए हुए हैं।
जानकारों के अनुसार भारत में मौजूद प्राचीन मंदिर आज भी इतिहास के साक्षी बने ज्यों के त्यों खड़े हैं। हालांकि कुछ प्राचीन मंदिर अब अपने असली आकार में नहीं हैं यानि खंडित हो चुके हैं लेकिन फिर भी यह मंदिर इतिहास की कई घटनाओं व कहानियों को समेटे हुए हैं।
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ऐसा ही एक मंदिर देवभुमि उत्तराखंड के पिथौरागढ़ की डीडीहाट तहसील में भी स्थिति है। डीडीहाट से 15 किमी की दूरी पर चौबाटी क़स्बा है, यहां मोटर मार्ग से करीब ढाई किमी की दूरी पर सूर्य का मंदिर है।
यह सूर्य का मंदिर इस जिले का सबसे बड़ा सूर्य का मंदिर Sun Temple in Pithoragarh है। 10 मंदिरों के इस समूह में मुख्य मंदिर सूर्यदेव का है। मंदिर में स्थित मूर्ति के आधार पर कहा जा सकता है कि यह मंदिर दसवीं सदी का है और यह मंदिर स्थानीय ग्रेनाईट प्रस्तर खण्डों का बना है।
मंदिर परिसर में सूर्य के अतिरिक्त शिव-पार्वती, विष्णु, भैरव, दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती आदि के भी छोटे-छोटे मंदिर हैं। सूर्य मंदिर के आधार पर इस गांव को आदित्यगांव भी कहा जाता है।
मंदिर में लगी सूर्य की मूर्ति सबसे बड़ी है। इस मूर्ति में सूर्यनारायण भगवान, सात अश्वों के एक चक्रीय रथ पर सुखासन में बैठे हैं जिनके दोनों हाथ कंधे तक उठे हैं।मंदिर के झुकने की जानकारी गांव वालों ने पुरात्व विभाग को दे दी गयी है, लेकिन ये मंदिर कब और कैसे पूर्व की ओर झुका इसका कारण आज तक रहस्य ही है। वहीं कुछ भक्तों के अनुसार ये सूर्य देव का ही चमत्कार है।
पुरात्तव विभाग के अंतर्गत आने के बावजूद इस मंदिर का रखरखाव गांव वाले आपस में धन जमाकर करते है। मंदिर के रख-रखाव के लिये दान करने वाले लोगों की एक सूची भी मंदिर परिसर में लगी हुई है।