नदी के बीच स्थित है मन्दिर…
दरअसल उत्तराखंड में गिरिजा देवी के रूप में मां भगवती का एक प्रमुख मंदिर विराजमान है। वैसे तो देवी की पूजा करने आने वाले यहां अनेक भक्त आते हैं, लेकिन शाम होते ही इस मंदिर के पास जाना माना कर दिया जाता है, इसका कारण यह है कि हर शाम यहां शेर आता है और मानाजाता है कि वह हर रोज देवी माता की परिक्रमा करता है । ऐसे में भक्तों की सुरक्षा के चलते यहां मंदिर के पास जाना निषेध कर दिया जाता है।
देवी मां का यह अदभुत रूप वाला ‘गिरिजा देवी मन्दिर’ उत्तराखंड के खूबसूरत वादियों के बीच है सुंदरखाल गांव में स्थित है, जो माता पार्वती के प्रमुख मंदिरों में से एक है।
गिरिराज हिमालय की पुत्री…
देवी माता का यह मंदिर श्रद्धा और विश्वास का अद्भुत उदाहरण है। उत्तराखंड का यह प्रसिद्ध मंदिर रामनगर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। नदी के लगा यह मंदिर छोटी पहाड़ी के ऊपर बना हुआ है, जो नदी में ज्यादा पानी आने पर नदी के बीच में आ जाता है। वहीं यहां का खूबसूरत वातावरण शांति और रमणीयता का एहसास दिलाता है, वहीं देवी के प्रसिद्ध मन्दिरों में गिरिजा देवी (गर्जिया देवी) का स्थान अद्वितीय है। गिरिराज हिमालय की पुत्री होने के कारण ही देवी को इस नाम से पुकारा जाता है।
गर्जिया क्षेत्र: करीब 3000 वर्षों का इतिहास…
माना जाता है कि कूर्मांचल (वर्तमान में कुँमाऊ) की सबसे प्राचीन बस्ती ढिकुली के पास थी, जहां पर वर्तमान रामनगर बसा हुआ है। यहां कोसी नदी के किनारे बसी इसी नगरी का नाम तब ‘वैराट पत्तन’ या ‘वैराट नगर’ था। कत्यूरी राजाओं के आने के पूर्व यहां कुरु राजवंश के राजा राज्य करते थे, जो प्राचीन इन्द्रप्रस्थ (आधुनिक दिल्ली) के साम्राज्य की छत्रछाया में रहते थे।
ढिकुली, गर्जिया क्षेत्र का लगभग 3000 वर्षों का अपना इतिहास रहा है। प्रख्यात कत्यूरी राजवंश, चन्द्र राजवंश, गोरखा वंश और अंग्रेज़ शासकों ने यहां की पवित्र भूमि का सुख भोगा है। गर्जिया नामक शक्ति स्थल सन् 1940 से पहले उपेक्षित अवस्था में था, किन्तु 1940 से पहले की भी अनेक दन्तश्रुतियां इस स्थान का इतिहास बताती हैं।
गर्जिया देवी को यहां भैरव देव ने रोका!
वर्ष 1940 से पूर्व इस मन्दिर की स्थिति आज जैसी नहीं थी, कालान्तर में इस देवी को उपटा देवी (उपरद्यौं) के नाम से जाना जाता था। तत्कालीन जनमानस की धारणा थी कि वर्तमान गर्जिया मंदिर जिस पहाड़ रूपी टीले में स्थित है, वह कोसी नदी की बाढ़ में कहीं ऊपरी क्षेत्र से बहकर आ रहा था। मंदिर को टीले के साथ बहते हुए आता देखकर भैरव देव द्वारा उसे रोकने के प्रयास से कहा गया- “थिरौ, बैणा थिरौ” अर्थात् ‘ठहरो, बहन ठहरो’, यहां पर मेरे साथ निवास करो, तभी से गर्जिया में देवी उपटा में निवास कर रही हैं।
भयंकर गर्जना का एहसास…
मान्यता है कि वर्ष 1940 से पूर्व यह क्षेत्र भयंकर जंगलों से भरा पड़ा था। सर्वप्रथम जंगल विभाग के तत्कालीन कर्मचारियों और स्थानीय छुट-पुट निवासियों द्वारा टीले पर मूर्तियों को देखा गया और उन्हें माता जगजननी के इस स्थान पर उपस्थित होने का एहसास हुआ। एकान्त सुनसान जंगली क्षेत्र, टीले के नीचे बहती कोसी नदी की प्रबल धारा, घास-फूस की सहायता से ऊपर टीले तक चढ़ना, जंगली जानवरों की भयंकर गर्जना के बावजूद भी भक्त इस स्थान पर मां के दर्शनों के लिए आने लगे। जंगल के तत्कालीन बड़े अधिकारी भी यहां पर आये थे। कहा जाता है कि टीले के पास मां दुर्गा का वाहन शेर भयंकर गर्जना किया करता था। कई बार शेर को इस टीले की परिक्रमा करते हुए भी लोगों द्वारा देखा गया।
सतोगुणी रूप में विद्यमान गिरिजा देवी…
भगवान शिव की अर्धांगिनी मां पार्वती का एक नाम ‘गिरिजा’ भी है। गिरिराज हिमालय की पुत्री होने के कारण उन्हें इस नाम से बुलाया जाता है। गर्जिया देवी मन्दिर में मां गिरिजा देवी सतोगुणी रूप में विद्यमान हैं, जो सच्ची श्रद्धा से ही प्रसन्न हो जाती हैं। यहां पर जटा नारियल, लाल वस्त्र, सिन्दूर, धूप, दीप आदि चढ़ा कर माता की वंदना की जाती है।
मनोकामना पूर्ण होने पर श्रद्धालु घण्टी या छत्र आदि चढ़ाते हैं। नव-विवाहित स्त्रियां यहां पर आकर अटल सुहाग की कामना करती हैं। वहीं निःसंतान दंपत्ति संतान प्राप्ति के लिए माता के चरणों में झोली फैलाते हैं।
स्थापित मूर्ति खुदाई के दौरान मिली…
वर्तमान में इस मंदिर में गर्जिया माता की 4.5 फिट ऊंची मूर्ति स्थापित हैँ इसके साथ ही माता सरस्वती, गणेश और बटुक भैरव की संगमरमर की मूर्तियां भी मुख्य मूर्ति के साथ स्थापित हैं। इसी परिसर में एक लक्ष्मी नारायण मंदिर भी स्थापित है। इस मंदिर में स्थापित मूर्ति यहीं पर हुई खुदाई के दौरान मिली थी।
सम्पूर्ण फल प्राप्ति के लिए मां गिरिजा की पूजा के बाद भैरव की पूजा आवश्यक…
कार्तिक पूर्णिमा को गंगा में स्नान के पावन पर्व पर माता गिरिजा देवी के दर्शनों और पतित पावनी कौशिकी (कोसी) नदी में स्नानार्थ भक्तों की भारी संख्या में भीड़ उमड़ती है। इसके अतिरिक्त गंगा दशहरा, नव दुर्गा, शिवरात्रि, उत्तरायणी, बसंत पंचमी में भी काफ़ी संख्या में दर्शनार्थी आते हैं। पूजा के विधान के अन्तर्गत माता गिरिजा की पूजा करने के बाद बाबा भैरव (जो माता के मूल में संस्थित है) को चावल और मास (उड़द) की दाल चढ़ाकर पूजा-अर्चना करना आवश्यक माना जाता है। कहा जाता है कि भैरव की पूजा के बाद ही मां गिरिजा की पूजा का सम्पूर्ण फल प्राप्त होता है।
इस मंदिर में पूजन का महत्व
इस मंदिर में भक्त भगवान जगन्नाथ और देवी गिरिजा की पूजा करते हैं और दैनिक अनुष्ठान करते हैं, जिसमें स्नान, अभिषेक, पुष्प अलंकार, दूप, दीप और भगवान जगन्नाथ को महा नैवेद्य शामिल हैं वहीं बिल्व के पत्तों की मदद से देवता के दांतों को साफ भी किया जाता है।
इसके पश्चात देवता को गंधमाला, हल्दी और चंदन का लेप, सरबौषधि और अन्य सुगंधित तेल लगाकर शाही स्नान के लिए तैयार किया जाता है। शाम को, धूप सेवा, निवेधानम, नीरंजना, मंत्र पुष्पम, दरबार सेवा और पावलिम्पु सेवा के साथ अनुष्ठान शुरू होते हैं। मान्यता है कि देवी गिरिजा का देवी बाण दुर्गा के मंत्रों से जाप करने पर पिछले जन्म के पाप दूर होते हैं, और शीघ्र विवाह का आशीर्वाद भी मिलता है इसके साथ ही भक्त को शत्रुओं पर विजय भी प्राप्त होती है।
इस मंदिर में पूजन के फ़ायदे (मान्यता के अनुसार)
: पिछले जन्म के पापों को दूर हो जाते हैं।
: कुंडली के सभी प्रकार के दोष दूर हो जाते हैं।
: स्थिर वित्तीय स्थिति प्राप्त होती है।
: आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करने के साथ ही नकारात्मकता भी दूर हो जाती है।
: रोगमुक्त जीवन का वरदान प्राप्त होता है।
: संतानहीन को संतान का व अविवाहित को शीघ्र विवाह का वरदान भी मिलता है।