मंदिर

चन्द्रमा ने बनवाया था सोमनाथ का स्वर्ण मंदिर

चन्द्रमा की 27 पत्नियां थी, जिसमें से रोहिणी को वे सबसे अधिक चाहते थे, जिसके कारण अन्य कन्याओं ने पिता दक्ष से शिकायत की

May 11, 2016 / 10:05 am

सुनील शर्मा

Somnath temple

देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में प्रथम एवं देश की पश्चिम दिशा में अरबी समुद्र के किनारे स्थित भगवान सोमनाथ महादेव के मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा दिवस बुधवार को है। 11 मई 1951 को भारत के तत्कालीन प्रथम राष्ट्रपति दिवंगत राजेन्द्र प्रसाद के हाथों इसकी प्राण प्रतिष्ठा विधि सम्पन्न हुई थी। पुराणों की कथाओं के अनुसार चन्द्रमा (सोम) ने सर्वप्रथम सोमनाथ महादेव का स्वर्ण मंदिर बनाया था, जिससे इसका नाम सोमनाथ मंदिर रखा गया।

दक्ष के श्राप से मुक्ति के लिए की पूजा
धर्मग्रंथों के अनुसार चन्द्रमा की 27 पत्नियां थी, जिसमें से रोहिणी को वे सबसे अधिक चाहते थे, जिसके कारण अन्य कन्याओं ने पिता दक्ष से शिकायत की। दक्ष ने चन्द्र को क्षय होने का श्राप दिया। श्राप के निवारण के लिए चन्द्रमा ने सोमनाथ के दरिया के किनारे तप किया, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने वरदान दिया कि 15 दिन चन्द्रमा की कला प्रकाशमय और 15 दिन कलाएं कम होती जाएंगी। चन्द्रमा ने सर्वप्रथम सोमनाथ महादेव का स्वर्ण मंदिर बनाया। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण सहित विभिन्न राजा एवं धर्मप्रेमियों ने समय-समय पर मंदिर का निर्माण कराया।

इतिहास की कथाएं
सोमनाथ मंदिर के निर्माण को लेकर अनेक कथाएं हैं। यह गाथाएं भारत के बाहर मुस्लिम शासकों तक पहुंची और महमूद गजनी ने सोमनाथ पर सर्वप्रथम आक्रमण किया और 11 मई 1025 को मंदिर को खंडिया किया था। बाद शिव भक्तों ने मंदिर का पुन:निर्माण कराया। मौजूदा मंदिर से पूर्व 18वीं सदी में तत्कालीन महारानी अहल्याबाई होलकर ने मंदिर बनवाया था।

वर्तमान मंदिर
भारत को आजादी मिलने के बाद जूनागढ की आरजी हुकुमत ने जूनागढ को 9 नवम्बर 1947 को पाकिस्तान से आजाद कराया। उस समय तत्कालीन उप प्रधानमंत्री दिवंगत सरदार वल्लभभाई पटेल ने सोमनाथ का दौरा किया और समुद्र का जल लेकर नए मंदिर का संकल्प किया। उनके संकल्प के बाद मंदिर का पुन: निर्माण हुआ।

मंदिर से जुड़े रोचक तथ्य
सोमनाथ मंदिर के निर्माण में सोमपुरा ब्राह्मण एवं वास्तु-शास्त्र के और मंदिर निर्माण के ज्ञाता प्रभाशंकर सोमपुरा का शिल्प कार्य महत्वपूर्ण रहा है। पाशुपात संप्रदाय का यह मंदिर कैलाश महामेरु प्रसाद शैली का बनाया गया है। मंदिर के शिखर का कलश 20 मन (करीब 400 किलो) का है। वर्ष 1951 में मंदिर बनने के बाद दर्शन के लिए हर वर्ष करीब एक करोड़ से अधिक शिव भक्त देश-विदेश से दर्शन करने के लिए आते हैं। रोजाना सुबह 7 बजे, दोपहर 12 बजे और शाम को 7 बजे आरती होती है। सावन महीने में, महाशिवरात्रि एवं कार्तिक पूर्णिमा पर यहां मेला लगता है।

महापूजा आज
प्राण प्रतिष्ठा दिवस के उपलक्ष्य में बुधवार को श्री सोमनाथ ट्रस्ट की ओर से यहां मंदिर में सुबह 8 बजे महापूजा एवं ध्वजा पूजन किया जाएगा। इसके अलावा सुबह 9 बजे सरदान वंदना, 9.15 बजे भूदेवों की ओर से मंत्रोच्चारण के साथ मंदिर में जाने की विधि, 9.20 बजे नृत्यकार दृष्टिबेन पंचाल की ओर से मंदिर में नृत्य मंडप में भरत नाट्यम का कार्यक्रम व शाम को 7 बजे श्रृंगार दर्शन और दीपमाळा का कार्यक्रम होगा।

मंदिर का स्वर्ण युग
प्राचीन समय में सोमनाथ मंदिर में 200 मन का घंटा था, जिसकी सोने की सांकळ थी। इस मंदिर की भव्यता एवं मंदिर का स्वर्ण युग पुन: आया है। सोमनाथ महादेव के भक्त दिलीप लेखी एवं उनके परिवार ने इस मंदिर को स्वर्ण जडि़त किया है। यह परिवार अभी तक 104 किलो सोने का दान कर चुका है और अभी भी जारी है।

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