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अष्टविनायक में नहीं होते हुए भी श्री गणेश का यह मंदिर कहलाता है सिद्धपीठ

भगवान गणेश प्रथम पूजनीय…

Aug 09, 2020 / 12:03 pm

दीपेश तिवारी

Siddhivinayak Temple of mumbai

Siddhivinayak Temple of mumbai

सनातन धर्म में भगवान गणेश को प्रथम पूजनीय माना जाता है। किसी भी शुभ कार्य विवाह, ग्रह प्रवेश और भूमि पूजन आदि से पहले गणेशजी की पूजा करके आगे का विधि विधान किया जाता है। पूजा चाहे किसी देव ही की हो लेकिन भोग सबसे पहले शिवनंदन को लगाया जाता है।

श्री गणेश के प्रमुख मंदिरों में पुणे के विभिन्‍न इलाकों में श्री गणेश के आठ मंदिर हैं, इन्‍हें अष्‍टविनायक कहा जाता है। इन मंदिरों को स्‍वयंभू मंदिर भी कहा जाता है। स्‍वयंभू का अर्थ है कि यहां भगवान स्‍वयं प्रकट हुए थे किसी ने उनकी प्रतिमा बना कर स्‍थापित नहीं की थी। इन मंदिरों का जिक्र विभिन्‍न पुराणों जैसे गणेश और मुद्गल पुराण में भी किया गया है। ये मंदिर अत्‍यंत प्राचीन हैं और इनका ऐतिहासिक महत्‍व भी है।

वहीं मुंबई में एक श्री गणेश मंदिर ऐसा भी है जो अष्टविनायक में नहीं होते हुए भी सिद्धपीठ कहलाता है। जी हां हम बात कर रहे हैं मुंबई के प्रभा देवी इलाके के सिद्धिविनायक मंदिर की, जिसके संबंध में मान्यता है कि वैसे तो सिद्घिविनायक गणपति के भक्त दुनिया के हर कोने में हैं लेकिन महाराष्ट्र में इनकी तादात सबसे ज्यादा है।

वहीं मुंबई के प्रभा देवी इलाके का सिद्धिविनायक मंदिर उन गणेश मंदिरों में से एक है, जहां सिर्फ हिंदू ही नहीं, बल्कि हर धर्म के लोग दर्शन और पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। हालांकि इस मंदिर की न तो महाराष्ट्र के ‘अष्टविनायकों ’ में गिनती होती है और न ही ‘सिद्ध टेक ’ से इसका कोई संबंध है, फिर भी यहां गणेश उत्सव में पूजा का खास महत्व है। अष्टविनायकों से अलग होते हुए भी इसकी महत्ता किसी सिद्धपीठ से कम नहीं।

सिद्धपीठ : इसलिए बने सिद्घिविनायक गणेश जी…
आमतौर पर बाईं तरफ मुड़ी सूड़ वाली गणेश प्रतिमा की ही प्रतिष्ठापना और पूजा-अर्चना करने का महात्म्य माना जाता है। इसके बावजूद दायीं ओर मुड़ी सूंड़ वाले गणपति की प्रतिमा की पूजा का भी अलग महत्व होता है। दाहिनी ओर मुड़ी सूड़ वाली गणेश प्रतिमाएं सिद्ध पीठ की होती हैं और मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर में गणेश जी की जो प्रतिमा है, उसकी सूंड़ भी दायीं ओर ही है, यानी यह मंदिर भी सिद्ध पीठ ही कहलायेगा।

सिद्घिविनायक गणेश जी का सबसे लोकप्रिय रूप है। कहते हैं कि सिद्धि विनायक की महिमा अपरंपार है, वे भक्तों की मनोकामना को तुरंत पूरा करते हैं। मान्यता है कि ऐसे गणपति बहुत ही जल्दी प्रसन्न होते हैं और उतनी ही जल्दी कुपित भी होते हैं।

ये भी हैं विशेषताएं…
सिद्धिविनायक की दूसरी विशेषता यह है कि वह चतुर्भुजी विग्रह है। उनके ऊपर वाले दाएं हाथ में कमल और बाएं हाथ में अंकुश है और नीचे के दाहिने हाथ में मोतियों की माला और बाएं हाथ में मोदक से भरा कटोरा है।
: गणपति के दोनों ओर उनकी दोनों पत्नियां रिद्धि और सिद्धि मौजूद हैं जो धन, ऐश्वर्य, सफलता और सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने का प्रतीक है।
: मस्तक पर अपने पिता शिव के समान एक तीसरा नेत्र और गले में एक सर्प हार के स्थान पर लिपटा है। सिद्धि विनायक का विग्रह ढाई फीट ऊंचा है और यह दो फीट चौड़े एक ही काले शिलाखंड से बना है।

ऐसे समझें मंदिर का स्वरूप
कहते हैं कि इस मंदिर का निर्माण संवत् 1692 में हुआ था। 1991 में महाराष्ट्र सरकार ने इस मंदिर के निर्माण के लिए 20 हजार वर्गफीट की जमीन प्रदान की। वर्तमान सिद्धि विनायक मंदिर की इमारत पांच मंजिला है।

जिसमें प्रवचन ग्रह, गणेश संग्रहालय व गणेश पीठ के अलावा दूसरी मंजिल पर अस्पताल भी है, जहां रोगियों की मुफ्त चिकित्सा की जाती है। इसी मंजिल पर रसोईघर है, जहां से एक लिफ्ट सीधे गर्भग्रह में आती है।

गणपति के लिए निर्मित प्रसाद व लड्डू इसी रास्ते से आते हैं। नवनिर्मित मंदिर के ‘गभारा ’ यानी गर्भग्रह को इस तरह बनाया गया है ताकि अधिक से अधिक भक्त गणपति का सभामंडप से सीधे दर्शन कर सकें।

पहले मंजिल की गैलरियां भी इस तरह बनाई गई हैं कि भक्त वहां से भी सीधे दर्शन कर सकते हैं। अष्टभुजी गर्भग्रह तकरीबन 10 फीट चौड़ा और 13 फीट ऊंचा है। गर्भग्रह के चबूतरे पर स्वर्ण शिखर वाला चांदी का सुंदर मंडप है, जिसमें सिद्धि विनायक विराजते हैं।

गर्भग्रह में भक्तों के जाने के लिए तीन दरवाजे हैं, जिन पर अष्टविनायक, अष्टलक्ष्मी और दशावतार की आकृतियां चित्रित हैं। वैसे तो सिद्धिविनायक मंदिर में हर मंगलवार को भारी संख्या में भक्तगण बप्पा के दर्शन के लिए हैं, परंतु हर साल भाद्रपद की चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक गणपति पूजा महोत्सव विशेष समारोह पूर्वक मनाया जाता है।

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