मंदिर

अष्टविनायक के इस मंदिर में करीब 128 साल से जल रहा है दीया

श्री गणेश की अराधना के लिए एक दीया हमेशा प्रजव्लित रहता है…

Aug 15, 2020 / 01:47 pm

दीपेश तिवारी

Shri Ganesh Temple where Nandeep has been burning for 128 years

यूं तो भारत देश कई मामलों में चमत्कारों से भरा पड़ा है। लेकिन यहां के मंदिरों में होने वाले अद्भुत चमत्कार लोगों को झकझोर कर रख देते हैं। यहां तक की कई चमत्कारों के कारणों का पता करने में बड़े बड़े वैज्ञानिक तक असफल हो चुके हैं। ऐसा ही एक मंदिर है अष्टविनायक यात्रा का चौथा पड़ाव वरदनिनायक…

दरअलस यह मंदिर महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के कोल्हापुर क्षेत्र में एक सुन्दर पर्वतीय गांव महड में स्थित है। इस मंदिर से जुड़ी सबसे दिलचस्प बात है कि यहां श्री गणेश की अराधना के लिए एक दीया हमेशा प्रजव्लित रहता है और इस दीप को नंददीप कहा जाता है। यह दीपक साल 1892 से लगातार श्री गणेश की उपासना के लिए जल रहा है।

ऐसे समझें मंदिर का इतिहास
यह मंदिर अत्यंत प्राचीन है जिसका निर्माण 1725 में सूबेदार रामजी महादेव बिवलकर ने करवाया था। मंदिर का परिसर सुंदर तालाब के एक किनारे बना हुआ है। ये पूर्व मुखी अष्टविनायक मंदिर पूरे महाराष्ट्र में काफी प्रसिद्ध है। यहां गणपति के साथ उनकी पत्निया रिद्धि और सिद्धि की मूर्तियां भी स्थापित हैं।

मंदिर के चारों तरफ चार हाथियों की प्रतिमाएं बनाई गई हैं। मंदिर के ऊपर 25 फुट ऊंचा स्वर्ण शिखर निर्मित है। इसके नदी तट के उत्तरी भाग पर गौमुख है। मंदिर के पश्चिम में एक पवित्र तालाब भी बना है, जो इस मंदिर की शोभा बढ़ाता है । मंदिर में एक मुषक, नवग्रहों के देवताओं की मूर्तियां और एक शिवलिंग भी स्थापित है। अष्टविनायक वरदविनायक की खास बात है कि मंदिर के गर्भ गृह में भी श्रद्धालुओं को जाने की अनुमति है।

मंदिर की पौराणिक कथा
इस मंदिर की पौराणिक कथा के अनुसार सतयुग में देवराज इंद्र के वरदान से जन्मे कुत्समद ने पुष्पक वन में घोर तपस्या की। गजानन उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए और कुत्समद से वर मांगने को कहा। कुत्समद ने कहा,“हे भगवान मुझे ब्रह्मा ज्ञान की प्राप्ति हो और देवता और मनुष्य दोनों ही मेरी पूजा करें।

इसके अलावा कुत्समद ने यह वर भी मांगा कि पुष्पक वन बहुत सिद्ध हो और भक्तों के लिए सिद्धदायक साबित हो। भक्तों की मनोकामना पूरी करने के लिए आप यही पर वास करें। गजानन ने वरदान दिया कि वर्तमान युग सतयुग होने के कारण इस युग में इस क्षेत्र को पुष्पक कहा जाएगा, त्रेता युग में इसे मनीपुर कहा जाएगा, द्वापर युग में वनन और कलयुग में भद्रक कहा जाएगा।” इस प्रकार गजानन से वर प्राप्ति होने के बाद ऋषि कुत्समद ने एक उत्तम देवालय का निर्माण किया और गणेश मूर्ति का नाम वरदविनायक रखा।

ऐसे पहुंचे इस मंदिर
यह मंदिर मुंबई-पुणे हाइवे पर, पुणे से 80 किमी दूरी पर स्थित खोपोली में है। यहां मुबंई शहर से भी आसानी से जाया जा सकता है। भक्त अगर रेल के माध्यम से यहां जाना चाहते हैं तो कर्जत रेल्वे स्टेशन या फिर खोपोली से भी जाया जा सकता है।

माघ चतुर्थी जैसे पर्व के दिनों में इस मंदिर में लाखों लोगों की भीड़ होती है। यहां शुक्ल पक्ष की मध्याह्न व्यापिनी चतुर्थी के समय ‘वरदविनायक चतुर्थी’ का व्रत एवं पूजन करने का विशेष विधान है। शास्त्रों के अनुसार ‘वरदविनायक चतुर्थी’ का साल भर नियमपूर्वक व्रत करने से संपूर्ण मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।

पूजन में गणेशजी के विग्रह को दुर्वा, गुड़ या मोदक का भोग, सिंदूर या लाल चंदन चढ़ाने और एवं गणेश मंत्र का 108 बार जाप करने की मान्यता है। वरदविनायक मंदिर में त्रिकाल यानी कि पूरे दिन में कुल 3 बार पूजा होती हैं। सुबह 6 बजे पहली आरती, 11.30 बजे दूसरी आरती और फिर शाम को 8 बजे तीसरी आरती होती हैं।

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