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10वीं-11वीं सदी का है मंदिर
माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 10वीं-11वीं सदी में किया गया। इस मंदिर में पूजा-पाठ और दर्शन करने मात्र से ही व्यक्ति पितृ-ऋण, देव-ऋण और गुरु-ऋण से मुक्ति पाता है। यही कारण है कि आस-पास के लोग और अधिकांश नर्मदा परिक्रमा करने आने वाले लोग इस मंदिर के दर्शन करने जरूर आते हैं।
एक मान्यता यह भी है कि यह मंदिर कल्चुरी कालीन है। यहां छह मंदिरों का समूह था, लेकिन मौसम और समय के प्रतिकूल प्रभावों से सभी खंडहर हो गए।
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अधिकांश मूर्तियों का हो चुका है क्षरण
यह मंदिर एक विशाल चबूतरे पर बना है। मंदिर के गर्भ गृह में विशाल शिव प्रतीक मौजूद है। मंदिर के मुख्य द्वार के सामने नंदी की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर में तीनों ओर प्रकोष्ठ बने हैं। मंदिर की दीवारों पर मूर्तियांं बनी हुई हैं। प्राचीन काल का होने के कारण अधिकांश मूर्तियों का क्षरण भी हो गया है। पहले इस स्थान पर 12 मूर्तियां थीं, जिनमे भगवान विष्णु ,भगवान हनुमान ,महावीर स्वामी , गौतम बुद्ध, शेर और कुत्ते सहित अन्य थी। मंदिर का रख रखाव पुरातत्व विभाग करता है।
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लगता है विशाल मेला
इस गांव में रहने वाले लोग इस मंदिर में पूजा-पाठ करने आते हैं। महाशिवरात्रि पर यहां विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। प्राचीन मड़ई भी यहीं लगती है।
शंकराचार्य ने करवाया था निर्माण
माना जाता है कि कल्चुरी नरेश कोकल्यदेव के सहयोग से तात्कालीन शंकराचार्य ने गुरुऋण से मुक्त होने के लिए इस मंदिर का निर्माण कराया था। इसीलिए इस मंदिर को ऋणमुक्तेेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। वहीं यह भी कहा जाता है कि यह मंदिर स्वान को समर्पित है। स्वान को कुकर भी कहा जाता है, इसीलिए इस मंदिर को कुकर्रामठ भी कहा जाता है।